लोगों की राय

बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण

बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2762
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न-. वाणिज्य शिक्षा में वाणिज्य के मुख्य लक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।

अथवा
वाणिज्य शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य।

उत्तर-

वाणिज्य के अन्तर्गत हम व्यक्तियों की उन क्रियाओं का पठन करते हैं जो व्यक्तियों की जरूरतों की संतुष्टि करते हुए धन कमाने का कार्य पूरा करें। व्यक्ति की दिनचर्या पर वाणिज्यिक क्रियाओं की पूरी छाप देखी जा सकती है। हम जितनी वस्तुओं को उपयोग में लाते हैं वे सब वाणिज्यिक गतिविधियों के द्वारा ही प्रदत्त की जाती हैं। इसमें व्यक्ति कुछ सीमा तक आर्थिक क्रियाओं में व्यस्त या कार्यरत रहता है। ये क्रियों वस्तुओं के क्रय-विक्रय, उत्पादन एवं वितरण से संबंध रखती हैं तथा इनमें लाभ के तत्त्व पाये जाते हैं।वाणिज्य के निम्नलिखित लक्ष्य हैं-

(i) विक्रय, हस्तांतरण अथवा विनिमय - वाणिज्यिक क्रियाओं का सबसे मुख्य लक्ष्य यह है कि इसमें वस्तुओं अथवा सेवाओं का बिक्री तथा हस्तांतरण प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी न किसी रूप में समाज को अवश्य होता हो। ऐसा न होने पर ये क्रियाएँ वाणिज्यिक नहीं मानी जायेंगी। उदाहरणार्थ, यदि एक निर्माता किन्हीं वस्तुओं का उत्पादन, अपने स्वयं के उपभोग अथवा किसी मित्र को भेंट करने के लिए करता है तो इस क्रिया को वाणिज्यिक क्रिया नहीं कहेंगे, क्योंकि इस उत्पादन की न तो कोई बिक्री हुई है और न मूल्य के बदले हस्तांतरण अथवा विनिमय।इसी प्रकार यदि कोई स्त्री अपने बच्चे को दूघ पिलाती है तो इसमें कोई वाणिज्यिक क्रिया नहीं है। यदि वही औरत एक धनी व्यक्ति के बच्चे को 'आया' के रूप में दूध पिलाती है, तो यह 'वाणिज्यिक क्रिया होगी' क्योंकि दूध पिलाने के पारिश्रमिक हेतु उसे धन की प्राप्ति होगी।

(ii) वस्तुओं और क्रियाओं का लेन-देन - इसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं का लेन-देन होना जरूरी है। तैयार वस्तुओं के दो रूप हो सकते हैं-

(i) उपभोक्ता वस्तुएं - जैसे- कपड़े, जूते, सिगरेट, दूध, चीनी, चाय आदि और,
(ii) पूँजीगत वस्तुएँ - जैसे- मशीनें, यंत्रादि।

सेवाओं से अर्थ है वे अमूर्त और अदृश्य पदार्थ जिनका संचय नहीं किया जा सकता, जैसे- संचार, परिवहन, पानी, बिजली, गैस आदि।

(iii) लाभ प्रयोजन - 'लाभ प्रयोजन' वाणिज्यिक क्रियाओं का एक प्रमुख लक्ष्य है। वाणिज्यिक क्रियाएँ मुख्य रूप से धन कमाने हेतु की गई क्रिया है। लाभ - प्रेरणा से नियमितता बनी रहती है। यदि किसी को किसी विशेष धंधे में नुकसान या कम फायदा है तो वह दूसरा धंधा अपना सकता है। यहाँ यह भी स्मरणीय है कि व्यवसाय में लाभ की भावना के साथ-साथ सेवा-भाव भी होना चाहिए, अन्यथा व्यवसाय की वृद्धि नहीं हो सकती।

(iv) मानवीय क्रिया - व्यवसाय एक ऐसी क्रिया है जिसका निष्पादन व्यक्ति ही कर सकते हैं भले ही वे इनको पूर्ण करने के लिए भौतिक साधनों का सहारा क्यों न लें। वाणिज्य का सबसे प्रमुख लक्ष्य मानवीय आर्थिक क्रियाओं को पूरा करना है।

(v) आर्थिक क्रिया - वाणिज्य में केवल आर्थिक क्रियाओं को ही शामिल किया जाता है जो कि फायदा प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। सभी वाणिज्यिक क्रियाएँ तो आर्थिक होती ही हैं परन्तु सभी आर्थिक क्रियाएँ वाणिज्यिक नहीं होती।अतः सभी वाणिज्यिक क्रियाओं के पीछे उनका लक्ष्य लाभ प्राप्ति के साथ-साथ सेवा भाव भी होता है।

(vi) लेन-देन में नियमितता - वस्तुओं तथा सेवाओं के उसी विनिमय को व्यवसाय की संज्ञा दी जाती है, जो लगातार अथवा नियमित रूप से किया जाय। उदाहरण के लिए, यदि मोहन अपनी घड़ी बेचकर कुछ लाभ कमा ले तो वह व्यवसाय नहीं कहलाएगा, क्योंकि यह एक एकाकी सौदा है, जो बार-बार नहीं दोहराया जाएगा। किन्तु एक मनुष्य यदि घड़ियों का धंधा अपना ले तो उसका यह काम व्यवसाय कहलाएगा।

(vii) जोखिम का तत्त्व - प्रत्येक व्यवसाय में अग्रलिखित कारणों से जोखिम आवश्यक तौर पर बना रहता है। उपभोक्ताओं की रुचियों में परिवर्तन, वस्तुओं अथवा सेवाओं की मांग में परिवर्तन, व्यापार चक्र, तेजी या मंदी, सरकार की नीतियों में अचानक परिवर्तन आदि। परन्तु प्रतिफल की अनिश्चितता के साथ-साथ प्रत्येक व्यवसाय में भावी सफलता की उम्मीद भी रहती है, जिससे आकर्षित होकर व्यक्ति वाणिज्यिक क्रियाएँ करता है।

(viii) व्यापक क्षेत्र - इसके अन्तर्गत भौतिक पदार्थों के उत्पादन से लेकर अन्तिम उपभोक्ता तथा उसके पहुँचाने तक की सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है। वाणिज्य, व्यापार एवं निर्माण सम्बन्धी प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है तो दूसरी ओर वह बाजार को देखता है। इस मोड़ पर खड़ा होकर व्यवसायी या तो तकनीकी प्रक्रिया का निर्देशन करता है अथवा बाजार का मूल्यांकन करता है अथवा दोनों प्रक्रियाओं का निष्पादन करता है, परन्तु वह फायदा कमाने के लिए हमेशा क्रय-विक्रय में सक्रिय रहता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book