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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2760
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- हिन्दी शिक्षण के सिद्धान्त बताइये।

उत्तर-

हिन्दी शिक्षण के सिद्धान्त प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हरबर्ट स्पेंसर ने शिक्षण विधि पर विचार करते हुए शिक्षण प्रक्रिया के विश्लेषण के आधार पर कुछ सामान्य शिक्षण सिद्धान्तों का निर्धारण किया है। यह निम्न प्रकार है-

(1) रुचि जागृत करने का सिद्धान्त - शिक्षक द्वारा किया गया शिक्षण बालक के लिए उस समय तक कारगर नहीं होगा जब तक कि उसमें सीखने के लिए रुचि जागृत न हो जाय। प्राचीन काल में बालकों को कठोर दण्ड एवं अनुशासन के द्वारा नियन्त्रित करके ज्ञानार्जन के लिए प्रेरित / बाध्य किया जाता था परन्तु आधुनिक मनोवैज्ञानिक शिक्षण पद्धति मे इस बात पर बल दिया जाने लगा है कि बालक के शिक्षण में स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक तरीके से रुचि को जागृत किया जाना आवश्यक है।

(2) प्रेरणा का सिद्धान्त - रुचि एवं प्रेरणा के सिद्धान्त को अलग-अलग सिद्धान्तों के रूप में न देखकर एक ही सिद्धान्त के रूप में देखा जाना सर्वथा उपयुक्त होगा क्योंकि रुचि जागृत होने पर ही अधिगम की प्रेरणा मिलती है। और प्रेरणा से ही बालक में रुचि का विकास होता है।

प्रेरणा का सिद्धान्त अधिगम की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण व उपयोगी है। किन्तु उचित अवसर पर ही उसका उचित प्रयोग आवश्यक है। रुचि, आवश्यकता व प्रयोजन शिक्षा की दृष्टि से उपयोगी प्रेरक हैं। उद्देश्य हीन, प्रयोजन-रहित कार्य मानसिक शिथिलता को जन्म देती है तथा सीखने की प्रवृत्ति को कम करती है। अत- भाषा शिक्षण भी प्रयोजन पूर्ण तथा सोद्देश्य होना चाहिए।

(3) क्रिया द्वारा अधिगम का सिद्धान्त - क्रिया द्वारा अधिगम का सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण है। बालक को भी सीखने मे उसी समय आनन्द आता है जब वह क्रिया द्वारा अपने आप सीखता है। इस सिद्धान्त का मतलब यह है कि जो कुछ भी बालक को सिखाया जाय वह उसे निष्क्रिय स्रोता बना कर नही अपितु उसकी सहभागिता बढ़ाकर उसके अधिगम को सुनिश्चित किया जाय। हिन्दी भाषा मे गद्य अथवा पद्य का शिक्षण करते समय बालकों को भी उच्चारण, अनुकरण, वाचन व सस्वर वाचन के लिए प्रेरित किया जाय तथा उन्हे प्रश्नोत्तर के लिए प्रेरित एवं तैयार किया जाय।

(4) जीवन से जोड़ने का सिद्धान्त - भाषा शिक्षण में इस सिद्धान्त का तात्पर्य है कि विषय को पढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विषय-वस्तु को जीवन से सम्बन्धित करके ही शिक्षण कार्य करना चाहिए गीत काव्य, कहानी, नाटकं, दृष्टान्त, घटना, यात्रा वर्णन करते समय उसका प्रस्तुतीकरण इस प्रकार हो कि प्रत्येक छात्र ऐसा महसूस करे कि जैसे वह वर्णन उसके व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित है या भविष्य मे यह उसके जीवन का अंग बन सकता है।

इसके अतिरिक्त हिन्दी शिक्षण के सिद्धान्तों के अन्तर्गत आवश्यक है कि शिक्षण उद्देश्य पूर्ण हो, पाठ्य सामग्री उद्देश्योन्मुख हो, पाठ्यक्रम को इस प्रकार विभाजित किया जाय ताकि सरलता से बालकों को सिखाया जा सके पुनरावृत्ति के सिद्धान्त का अनुसरण किया जाय इससे बालक का अधिगम सुदृढ़ होता है साथ ही उसकी बोधगम्यता मे स्पष्टता आती है।

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