बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- हिन्दी भाषा-शिक्षण का अर्थ बताइए तथा इसकी विशेषताओं तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हिन्दी भाषा - शिक्षण की विशेषताओं को परिभाषा सहित समझाइए
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. हिन्दी भाषा - शिक्षण का अर्थ बताइये।
उत्तर-
हिन्दी भाषा-शिक्षण
भाषा-शिक्षण दो शब्दों से मिलकर बना है- भाषा तथा शिक्षण। यह दोनों ही शब्द अपने में स्वतन्त्र हैं अतः दोनों का अर्थ और उनकी प्रकृति समझना आवश्यक है तभी भाषा शिक्षण का शुद्ध बोध हो सकेगा। शिक्षण प्रकरण में एक अन्य प्रकरण निहित है जिसे अधिगम या सीखना कहते हैं। शिक्षण का लक्ष्य होता है सिखाना, इसके बिना शिक्षण का कोई अर्थ नहीं होता है। शिक्षण तथा अधिगम क्रियायें साथ-साथ सम्पादित होती हैं। कक्षा में शिक्षक का कार्य शिक्षण करना और छात्रों का कार्य सीखना होता है। कक्षागत परिस्थितियों में शिक्षण तथा अधिगम की प्रक्रियायें एक साथ चलती हैं। शिक्षक का कर्त्तव्य छात्रों को सीखाना होता है।
भाषा भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम तथा साधन होता है। भाषा की प्रमुख क्रियायें बोलना, लिखना, पढ़ना तथा सुनना है। भाषा की शुद्धता से तात्पर्य शुद्ध बोलना, शुद्ध लिखना, शुद्ध पढ़ना तथा शुद्ध सुनने से होता है। इन क्रियाओं की शुद्धता व्याकरण पर आधारित होती है अर्थात् व्याकरण से इनमें शुद्धता आती है। भाषा का अमूल्य वरदान मनुष्य को ही प्राप्त होता है। भाषा ईश्वरीय व प्रकृति की देन है परन्तु भाषा का निर्माण व्यक्ति ने स्वयं किया है। विश्व में अनेक भाषाओं का निर्माण हुआ है जिससे वहाँ के निवासी अपने भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति एवं सम्प्रेषण करते हैं। भाषा मानवीय कलाकृति है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने के कारण उसे सदैव विचारों का आदान-प्रदान करना पड़ता है। इस विचार-विनिमय का सर्वोत्तम एवं मानवीय साधन भाषा है। इस प्रकार जिस वार्तालाप या लेख के माध्यम से हम अपने विचारों को प्रकट करते हैं वही भाषा है। भाषा के दो रूप हैं-
1. मौखिक भाषा,
2. लिखित भाषा
भाषा की परिभाषा - भाषा के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों की परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
स्वीट के अनुसार- " ध्वन्यात्मक शब्दों के द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है। "
भोलानाथ तिवारी के अनुसार- " भाषा उच्चारण-अवयवों से उच्चारित स्वेच्छाचारी ध्वनि प्रतीकों की वह अवस्था है जिसके द्वारा एक समाज के लोग आपस में भावों और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। "
रामचन्द्र वर्मा के अनुसार- "मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिसके द्वारा मन की बात बतायी जाती है भाषा कहलाती है। "
प्लेटो के अनुसार- "विचार आत्मा की मूक या ध्वन्यात्मक बातचीत है, पर वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।"
वान्दिरा के शब्दों में- "भाषा एक प्रकार का चिन्ह है, चिन्ह से आशय उन प्रतीकों से है जिनके द्वारा मानव अपना विचार दूसरों पर प्रकट करता है। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं। जैसे- स्पर्श, ग्राह्य, नेत्रग्राह्य और श्रोता ग्राह्य।"
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