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बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के प्रकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
1. दैनिक प्रार्थना सभा - छात्रों तथा अध्यापकों दोनों के ही दृष्टिकोण से इसका बहुत महत्त्व होता है। छात्र इसमें नियमितता, अनुशासन, नैतिकता आदि बातें सीखता है। शिक्षाशास्त्रियों का मानना है कि शिक्षा का कोई भी उद्देश्य तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक छात्रों में नैतिक मूल्यों का विकास नहीं होता है।
2. विषय सम्बन्धी समिति का गठन - विद्यालय में सभी विषयों की समितियों का गठन किया जाना चाहिए। इन समितियों के निर्माण का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इनसे छात्रों के विषय के प्रति रुचि को विभिन्न माध्यमों से विकसित किया जा सकता है, साथ ही यदि किसी विषय में छात्रों को कुछ भी कठिनाइयाँ हो, तो उनका भी निराकरण किया जा सकता है।
3. खेलकूद सम्बन्धी क्रियाएँ - स्कूलों में खेलकूद गतिविधियों की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए। जहाँ खेल अपने मनोरंजनात्मक, महत्त्व के लिए स्वीकार किये जाते हैं, वहीं इनका शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय दृष्टि से भी बहुत महत्त्व होता है।
4. विद्यालय प्रकाशन - पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के अन्तर्गत विद्यालय पत्रिका प्रकाशन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। विद्यालयों में प्रकाशन मासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध- वार्षिक या वार्षिक हो सकता है। प्रकाशन से छात्रों को लेखन हेतु प्रोत्साहन मिलता है, उनमें आत्म-सम्मान की भावना का विकास होता है।
5. पिकनिक व शैक्षिक भ्रमण - ज्ञान को व्यावहारिक रूप देने हेतु आवश्यक है कि छात्रों के लिए पिकनिक व शैक्षिक भ्रमण आयोजित किये जायें। भ्रमण का इतिहास, भूगोल तथा वनस्पति विज्ञान जैसे विषय में तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। उपयोगी अनुभवों के लिए यह आवश्यक है कि हम शिक्षण प्रक्रिया में पिकनिक तथा भ्रमण को महत्त्वपूर्ण स्थान दें।
6. छात्र परिषद् - छात्र परिषद्, शिक्षा परिषद्, विद्यालय सभा, छात्र सभा या छात्र संघ यह सब एक प्रकार की गतिविधि है । गुड के शब्दकोश के अनुसार - "छात्र स्वशासन, सम्पूर्ण विद्यार्थी समाज में स्वयं छात्रों के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा विद्यालयों में व्यवस्था तथा आचरण सम्बन्धी मामलों का विनियमन करता है। यह छात्रों में स्वयं निर्णय लेने की क्षमता भी उत्पन्न करता है, परन्तु छात्र परिषद् में छात्रों को पूर्णतः स्वतंत्र नहीं छोड़ देना चाहिए। इसका संरक्षक किसी अध्यापक को बनाया जाना चाहिए।"
7. वाद-विवाद और भाषण - स्कूलों में वाद-विवाद तथा भाषण प्रतियोगिता भी होनी चाहिए। वाद-विवाद तथा भाषण प्रतियोगिता छात्रों की अभिव्यक्ति शक्ति का विकास तो करती ही
साथ ही उसकी तर्क, चिन्तन व कल्पनाशक्ति का भी विकास करती है। इसके द्वारा छात्र अपने विचारों को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत कर सकता है और उसके आचरण में शुद्धता आती है, साथ ही वह अध्ययन के प्रति रुचि लेता है।
8. समाज कल्याण हेतु की गयी क्रियाएँ - विद्यालय में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के अन्तर्गत कुछ क्रियाएँ ऐसी होती हैं जो बालकों में सामाजिक गुणों का विकास करती हैं। समाज कल्याण हेतु इन क्रियाओं का समायोजन करना अनिवार्य है। इसके अन्तर्गत साक्षरता कार्यक्रम, एन.एस.एस., स्काउटिंग / गाइडिंग, श्रमदान, रेडक्रास व होमगार्ड सम्बन्धित गतिविधियाँ आती हैं। इन सभी को जहाँ छात्र अपने लिए अपनाता है, वहीं इसके द्वारा वह समाज का भी कल्याण करना चाहता है।
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