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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पर्यावरण शिक्षा में अध्यापक की भूमिका का वर्ण कीजिए।

उत्तर-

पर्यावरण शिक्षा के कौशल, विकास एवं क्षमता विकास में शिक्षक की महती भूमिका होती है । वह इन क्षेत्रों में निम्नलिखित रूपों में कार्य कर सकता है-

1. नियोजक के रूप में (As a Planner) - प्रभावशाली अध्यापक पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक प्रकार की योजना तैयार कर सकता है। पर्यावरण शिक्षा का शिक्षक अपवाद स्वरूप नहीं है । उसे पर्यायवरण से सम्बन्धित पाठ योजना तथा वार्षिक योजना बनानी चाहिए।

2. आयोजक के रूप में (As an Organiger) - योजना बनाने के उपरान्त उसको निपुणता से चलाना महत्वपूर्ण विषय है। यह उस योजना के आयोजक की कार्य कुशलता पर निर्भर करती है उसकी सफलता महत्वपूर्ण ढंग से चलाने पर भी निर्भर करती है। इस कार्य के लिए पर्यावरण शिक्षा के शिक्षक को अपने शिक्षण को छात्रों की अधिगम क्षमता के अनुसार प्रदर्शित करना चाहिए। उसे सन्दर्भदाता सहित स्थानीय उपलब्ध संसाधनों को अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयोग करना चाहिए।

3. पथ-प्रदर्शक के रूप में (As a Guide) - पर्यावरण शिक्षक का कार्य शिक्षण करने से ही समाप्त नहीं हो जाता। उसे छात्रों का मित्र, दार्शनिक एवं पथ-प्रदर्शक भी होना चाहिए। उसका छात्रों के साथ मित्र जैसा व्यवहार होना चाहिए। विभिन्न प्रकार की विचार धाराओं एवं दर्शन के विचारों से सम्बन्ध स्थापित करते हुए योजना का भी ध्यान रखना चाहिए। छात्रों को पर्यावरणीय संरक्षण कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर भाग लेना चाहिए।

4. अन्वेषक के रूप में (As an Explore) - पर्यावरण के घटक अधिकांश बाहरी जगत से सम्बन्धि हैं। अतः पर्यावरण शिक्षा की क्रियायें भी घर के बाहर से ही जुड़ी हैं। पर्यावरण शिक्षा शिक्षण का सैद्धान्तिक पक्ष कक्षा में कराया जा सकता है। लेकिन छात्र वास्तविक ज्ञान तथा अनुभ्पव तभी प्राप्त कर सकता है जब वह घर से बाहर निकलकर अन्वेषणत्मक क्रिय कलापों में भाग ले तथा उनको भली-भांति समझ ले। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अध्यापकों को स्वयं भी अधिगम में अन्वेषणत्मक विधि की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। इस कार्य के लिए अध्यापक को छात्रों को कोई परियोजना प्रस्तुत करनी चाहिए जिससे छात्र उस दिशा में स्वयं कार्य कर सकें और उन्हें पर्यावरण शिक्षक के रूप में स्वयं सोचने के लिए बाध्य करना चाहिए।

5. अभिलेखक के रूप में (As a Recorder) - अध्यापक को यह अनुभव कराना चाहिए कि पर्यावरण शिक्षा प्रयोगात्मक अधिगमों द्वारा सबसे प्रभावी ढंग से दी जा सकती है। इस कार्य के लिए उसे खोजबीन करना चाहिए और इसके उपरान्त सूचनओं तथा आंकड़ों को एकत्र करना चाहिए। इसके उपरान्त आकड़ों का विश्लेषण करना चाहिए। पर्यावरण में परिवर्तनों को लिखकर छात्रों को उन परिवर्तनों को भलीभांति समझ देना चाहिए। जब तक समस्या से सम्बन्धित सूचना को संग्रहित नहीं किया जायेगा तब तक विश्लेषण भी होना चाहिए। तभी सूचनाओं का अभिलेखन करना चाहिए।

6. संयोजक के रूप में (As an Co-ordinator ) - यह सत्य है कि शिक्षक पर्यावरण की समस्याओं से सम्बन्धि सूचनाओं को घर बैठे या कक्षा में ही शिक्षण के समय छात्रों को प्रदान नहीं कर सकता है। वास्तव में इस विषय को कक्षा की अपेक्षा वास्तविक परिस्थितियों में ही पढ़ाना चाहिए। पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षण को संसाधनों तथा विभिन्न अस्तित्व को एक साथ रखने में समर्थ होना चाहिए।

शिक्षक पर्यावरण शिक्षा के विकास में केन्द्रीय भूमिका का निर्वाह कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के विशेषज्ञ तथा शोध संगणन जैसे राष्ट्रीय भौगोलिक शिक्षा परिषद ने सेनानियों का गठन किया है जो पर्यावरण के धारणा विकास पर प्रकाश डालते हैं। भारत में भी पर्यावरण शिक्षा की दिशा में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद कार्य कर रही है। इस सभी कार्य के लिए शिक्षक इन प्रतिष्ठानों से सहायता प्राप्त कर सकता है।

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