बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पर्यावरण की परिभाषा स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
पर्यावरण वह परिवृत्ति है जो मानव को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उसके जीवन व क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। इस परिवृत्ति अथवा परिस्थिति में मनुष्य से बाहर के समस्त तथ्य, वस्तुएँ, स्थितियाँ तथा दशायें सम्मिलित होती हैं जिनकी क्रियायें मनुष्य के जीवन विकास को प्रभावित करती हैं।
फिटिंग के अनुसार - "जीवों के पारिस्थितिकी कारकों का योग पर्यावरण है। अर्थात् जीवन की पारिस्थितिकी के समस्त तथ्य मिलकर वातावरण कहलाते हैं।"
टॉसले के अनुसार - “वातावरण उन सभी बाहरी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव रहते हैं, वातावरण कहलाता है।"
हर्सकोविट्स के अनुसार - " वातावरण उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है, जो प्राणी के जीवन और विकास पर प्रभाव डालते हैं। "
मैकाइवर के अनुसार - “पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृतिक दशायें - प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज पदार्थ, पौधे, पशु तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियाँ जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।"
सोरोकिन के अनुसार - “भौगोलिक पर्यावरण का तात्पर्य ऐसी दशाओं और घटनाओं से है जिनका अस्तित्व मनुष्य के कार्यों से स्वतन्त्र है, जो मानव रचित नहीं हैं और बिना मनुष्य के अस्तित्व और कार्यों से प्रभावित हुए स्वतः परिवर्तित होती हैं।"
भूगोल परिभाषा कोष के अनुसार - "चारों ओर की उन बाहरी दशाओं का सम्पूर्ण योग, जिसके अन्दर एक जीव अथवा समुदाय रहता है या कोई वस्तु उपस्थित रहती है ।"
टी.एन. खुश के अनुसार - “उन सब दशाओं का योग जो कि जीवधारियों के जीवन और विकास को प्रभावित करता हो, पर्यावरण है।"
वस्तुतः पर्यावरण विभिन्न अन्तर्निर्भर घटकों-सजीव एवं निर्जीव के मध्य सामंजस्य एवं पूर्णता की अवधारणा है। पर्यावरण का निर्जीव घटक पांच मुख्य उपघटकों में विभाजित है। जैसे—ऊर्जा, पानी, मिट्टी, हवा तथा अंतरिक्ष । सजीवों के अनेक उपघटक हैं जो न तो उत्पन्न किये जा सकते हैं और न ही समाप्त। हाँ इन्हें एक से दूसरे में रूपान्तरित किया जा सकता है। इस प्रकार सजीव तथा निर्जीव में कोई मूलभूत अन्तर नहीं है। एक स्वरूप में यदि कोई उत्पादक है, तो वह दूसरे रूप में उत्पाद भी हो सकता है। यही प्रकृति भी है।
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