बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- ई-लर्निंग की सीमाएँ क्या हैं? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर-
ई-लर्निंग के दोष या सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) प्रत्यक्ष अन्तः क्रिया का अभाव - ई-लर्निंग में परम्परागत कक्षा शिक्षण की भाँति मेल-जोल के अवसर नहीं होते। विद्यार्थी न तो अपने साथियों से मिल पाते हैं और न ही अपने माता-पिता से। अधिगमकर्ता अलग-थलग पड़ जाते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि विद्यार्थियों में सामाजिक गुणों का विकास नहीं हो पाता।
(2) आधुनिक सुविधाओं का अभाव - ई-लर्निंग का तभी लाभ हो सकता है यदि अधिगमकर्ताओं को सभी सुविधाएँ प्रदान की जायें, जैसे- लैपटॉप, कम्प्यूटर, मल्टीमीडिया, इंटरनेट आदि। ये सुविधाएँ स्कूल तथा घर में मिलनी चाहिए। लेकिन ये सभी सुविधाएँ पर्याप्त नहीं।
(3) कुशलता का अभाव - ई-लर्निंग में विद्यार्थियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इंटरनेट, कम्प्यूटर तथा वेब टेक्नोलॉजी को उपयोग करने की कुशलता रखते हैं। तभी ई-लर्निंग का वे लाभ उठा पायेंगे। लेकिन इस कुशलता का पर्याप्त अभाव देखने को मिलता है।
(4) प्रशासनिक उदासीनता - प्रशासनिक स्तर पर भी उदासीनता देखने को मिलती है। स्कूलों में तथा घरों में ऐसी व्यवस्थाएँ नहीं हो पातीं। कुछ गिनती के चुने हुए पब्लिक स्कूलों में ही ऐसी व्यवस्थाएँ हो पाई हैं जिनमें ई-लर्निंग की व्यवस्था संभव हो सकी।
(5) नकारात्मक दृष्टिकोण - ई-लर्निंग का सम्प्रत्यय नया-नया होने के कारण इसके समर्थन में अभी अधिकतर लोगों का दृष्टिकोण विकसित नहीं हो पाया है। अधिकतर लोग इसके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण ही रखते हैं जो कि ई-लर्निंग को अपनाने में बाधक सिद्ध होता है।
(6) शिक्षक प्रशिक्षण का अभाव - ई-लर्निंग नवीन सम्प्रत्यय होने के कारण इससे पूर्णरूप से परिचित होने में कुछ समय लगेगा। इस सम्बन्ध में वांछित कौशलों का भी अभाव है। इन अभावों के होते हुए ई-लर्निंग को लोकप्रिय बनाना किस प्रकार से संभव हो सकता है।
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