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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2758
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर

 

 

अध्याय-5 ई-लर्निंग : अर्थ, प्रकृति, विशेषताएँ, प्रकार एवं शैली, सहायक अधिगम एवं मिश्रित अधिगम

(E-Learning : Meaning, Nature, Characteristics, Modes and Style- Support Learning, Blended Learning)

प्रश्न- ई-लर्निंग से आप क्या समझते हैं? ई-लर्निंग के मूल तत्त्व एवं विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

ई-लर्निंग का सम्प्रत्यय

ई-लर्निंग से अभिप्राय है - इलेक्ट्रॉनिक लर्निंग। अध्यापक और विद्यार्थी में अन्तः क्रिया करने के लिए 'ऑन लाइन तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। इसमें आमने-सामने व्यक्तियों की अन्तःक्रिया नहीं होती। ई-लर्निंग का प्रयोग विभिन्न संदर्भों में किया जाता है, जैसे-

(i) कम्पनियों में अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए।

(ii) दूरस्थ शिक्षा के लिए।

(iii) व्यापार क्षेत्र में भी मूल्य-प्रभाव के ऑन लाइन प्रशिक्षण के रूप में।

(iv) शैक्षिक वेबसाइट से भी यह संबंधित है।
(v) कम्प्यूटरों का शिक्षा में प्रयोग करते समय।

ई-लर्निंग औपचारिक और अनौपचारिक होती है। इसमें इंटरनेट का प्रयोग होता है तथा LAN और WAN नेटवर्क, प्रयोग में लाए जाते हैं। कुछ लोग ई-लर्निंग के लिए 'ऑन लाइन' अधिगम शब्द का प्रयोग करते हैं।

रोजनबर्ग के अनुसार - "ई-लर्निंग से अभिप्राय है- इंटरनेट तकनीक के ऐसे उपयोग जिनके द्वारा ज्ञान और कार्य क्षमता में वृद्धि के विभिन्न रास्ते खुल जाएँ।"

ई-लर्निंग के मूल तत्व - ई-लर्निंग में शामिल मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं-

(1) शिक्षाशास्त्र - शिक्षा का विज्ञान 'पैडागोजी' (Pedagogy) कहलाता है। यह विज्ञान के ज्ञान पर आधारित व्यवस्थित प्रयोग होता है। इसका अर्थ - कक्षा-कक्ष विधियाँ और शैक्षिक तकनीकियाँ।

ई-लर्निंग में शिक्षण शास्त्र का भारी महत्व होता है। यह किसी शैक्षिक सामग्री की संरचनाओं अथवा घटकों को परिभाषित करने का प्रयास करता है। जैसे - कोई पाठ, बहुविकल्पी प्रश्न, कोई के अध्ययन इत्यादि। ये घटक सभी स्वतंत्र होते हैं।

किसी भी विषय-वस्तु के निर्माण के प्रारम्भ में उसकी विधियों का मूल्यांकन करना अति आवश्यक है। शिक्षण काल में कठिनाई स्तर को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। यह न तो अधिक हो और न ही कम होना चाहिये। ई-लर्निंग में शैक्षिक सामग्री के निर्माण में इन उपागमों का प्रयोग किया जाता है-

(i) ज्ञानात्मक एवं भावात्मक पक्ष - विषय-वस्तु के निर्माण के दौरान विद्यार्थियों के ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्ष की ओर ध्यान देना बहुत ही आवश्यक होता है। इससे यह पता चलता है कि अधिगम प्रक्रिया में मानव मस्तिष्क किस प्रकार कार्य करता है। इसी प्रकार भावनात्मक पक्ष जैसे अभिप्रेरक, रुचियाँ, मनोरंजन आदि का भी महत्व होता है।

(ii) व्यवहारात्मक और संदर्भ पक्ष - शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य होता है - छात्र के व्यवहार में परिवर्तन करना शिक्षण कला में छात्र के व्यवहारात्मक और संदर्भ पक्षों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। जैसे कौशल, व्यवहार का ज्ञान, दूसरे व्यक्तियों से मुलाकात, सामूहिक अनुसंधान तथा अध्ययन की सहायता करना इत्यादि।

(iii) सामाजिक निर्माण उपागम - शिक्षण कला में सामाजिक संरचना की ओर ध्यान देना भी आवश्यक होता है। बच्चों में सम्प्रत्यय की रचना करने की क्षमता होती है तथा समूहों में सम्प्रत्यय रचना की क्षमता का विकास किया जा सकता है।

(iv) अनुदेशनात्मक रूपरेखा - किसी पाठ्यक्रम को निर्धारित करके उसमें से अनुदेशन तैयार किया जाता है। इस दौरान अध्यापक या अध्यापकों के समूह की सहायता ली जा सकती है। ई-लर्निंग के लिए पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए विद्यार्थियों के स्तर पर अवश्य ध्याम देना चाहिए।

(2) मानकीकरण - ऐसे मानव भी निश्चित होने चाहिए जिन पर अनुदेशनात्मक सामग्री खरी उतरे। इसका ध्यान अनुदेशनात्मक सामग्री तैयार करते समय ही किया जाना चाहिए।

(3) पुनः उपयोगिता - ई-लर्निंग में इसकी सामग्री के छोटे-छोटे भागों में बाँटा गया है। जिनका प्रयोग विद्यार्थी बार-बार कर सकते हैं। ये सभी हिस्सों या भागों को क्रमबद्ध तरीके से व्यवस्थित किया गया होता है।

ई-लर्निंग की विशेषताएँ - ई-लर्निंग की विशेषताएँ निम्नलिखित होती है-

(1) अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना - ई-अधिगम तकनीक की सहायता से अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने में सहायता मिलती है।

(2) लचीली और ज्ञानपूर्ण शिक्षण विधियाँ - ई-लर्निंग की शिक्षण विधियाँ व्यापक ज्ञान से भरपूर होती हैं, जिसका लाभ अधिगमकर्ता को मिलता है।

(3) मूल्यांकन में शीघ्रता - ई-लर्निंग के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया का तत्काल मूल्यांकन संभव होता है।

(4) ज्ञान प्रबन्ध - ई-लर्निंग द्वारा ज्ञान का प्रबन्धन संभव होता है। इस प्रणाली द्वारा अधिगम के उद्देश्यों को स्थापित करने के साथ-साथ उन उद्देश्यों की प्राप्ति में अर्जित प्रगति को मापा जा सकता है।

(5) सुविधानुसार अधिगम - इस विधि द्वारा हम अपनी सुविधानुसार सीख सकते हैं। इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, टेलीकॉन्फ्रेंसिंग आदि का प्रयोग किया जा सकता है।

(6) किसी तकनीकी की उप-प्रणाली नहीं - ई-लर्निंग किसी तकनीकी की उप- प्रणाली नहीं है।

(7) अधिक विस्तृत सम्प्रत्यय - ई-लर्निंग सम्प्रत्यय में कम्प्यूटर और वेब तकनीकियों का प्रयोग किया जाता है।

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