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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2758
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भारत में भविष्य के लिए शैक्षिक तकनीकी की प्राथमिकताएँ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

भविष्य में शैक्षिक तकनीकी की प्राथमिकताएँ

शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में भारत में शैक्षिक तकनीकी का प्रमुख केंद्र शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण केंद्र है। इसके विभिन्न विभाग जैसे शिक्षा मनोविज्ञान विभाग, शिक्षा आधार केंद्र, शैक्षिक तकनीकी केंद्र और प्रशिक्षण सामग्री विभाग इसके अंतर्गत कार्यरत हैं। शैक्षिक अनुसंधान केंद्र भी शैक्षिक तकनीकी के अंतर्गत कार्यरत हैं। शैक्षिक अनुसंधान केंद्र प्रशिक्षण केंद्र में शैक्षिक तकनीकी से संबंधित खोज और अनुसंधान किए जा रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने हेतु अनौपचारिक शिक्षा की प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिए भी अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं। 5 से 12 वर्ष के ग्रामीण बच्चों के लिए क्रियात्मक अध्ययन कार्यक्रम की आवश्यकता तथा निर्देशात्मक सहायता सामग्री का भी विकास किया जा रहा है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण केंद्र में सभी नवीन शैक्षिक कार्यक्रमों के विकास में हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर उपागमों के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। इसके लिए यहाँ पर फिल्म्स, टेपरिकॉर्डर, स्लाइड्स, रेडियो कार्यक्रम, पत्राचार पाठ्यक्रम आदि के विकास पर जोर दिया जा रहा है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण केंद्र की प्रमुख प्रोजेक्ट "बच्चों का माध्यम प्रयोगशाला" द्वारा अनेक विकासात्मक कार्य हो रहे हैं जो यूनीसेफ और यूनेस्को से संबंधित हैं। इसमें शिक्षा के विकास के लिए अनेक कार्यक्रम, जैसे- शैक्षिक खेल, तस्वीरें, किताबें, रेडियो कार्यक्रम, फिल्म आदि चलाए जा रहे हैं जो 4 से 8 वर्ष के आयु वर्ग के छात्रों के लिए निर्देशात्मक शिक्षा देने के लिए तैयार किए जाते हैं। इस केंद्र में मॉडल भी तैयार किए जाते हैं जो विशेष रूप से भाषा कौशल तथा श्रव्य कार्यक्रमों की रिकॉर्डिंग से सम्बन्धित होते हैं।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण केंद्र के अतिरिक्त विश्वविद्यालय शैक्षिक तकनीकी तथा निर्देश अधिगम के लिए प्रशिक्षण विकास तथा शोध कार्यों में संलग्न हैं जिनमें प्रमुख हैं - एम. एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा, हिमाचल विश्वविद्यालय, साउथ गुजरात विश्वविद्यालय, एस. एन. टी. टी. वूमेन विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, मेरठ विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय तथा राष्ट्रीय केंद्र जैसे सेंटर फॉर एडवान्स स्टडी इन एजूकेशन, बड़ौदा तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान केंद्र के अंतर्गत चल रहे क्षेत्रीय कॉलेजों तथा टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, मद्रास हैं।

भारत में शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रयास किए जा रहे हैं। शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से शिक्षा का विकास करने, उसमें गुणात्मक सुधार लाने, अधिगम को वास्तविक बनाने तथा दैनिक जीवन से संबंधित करने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं। शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से सीखने की विशेषता एवं अधिगम पर बल दिया जा रहा है।

भारत में भविष्य के लिए शैक्षिक तकनीकी की प्राथमिकताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) तकनीकी यंत्रों की कीमत कम करना - भारत के शैक्षिक संस्थाओं में शैक्षिक तकनीकी के यंत्रों, जैसे- टेलीविजन, ओवरहेड प्रोजेक्टर, फिल्म स्ट्रिप्स, कम्प्यूटर आदि के कम प्रयोग का कारण इनकी अधिक कीमत है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में इनका बहुतायत से प्रयोग तभी संभव है जब इनकी कीमत में कमी की जाए। अतः भवष्यि में इन तकनीकी यंत्रों की कीमत को कम करना एक बड़ी प्राथमिकता है।

(2) प्रयोगकर्त्ताओं को विशेष ज्ञान एवं कौशल उपलब्ध कराना - भारत के शैक्षिक संस्थाओं में जो उपलब्ध शैक्षिक तकनीकी के यंत्र हैं उनका प्रयोग भी शिक्षकों द्वारा सही ढंग से नहीं किया जाता है। इसका प्रमुख कारण शिक्षकों से संबंधित ज्ञान एवं कौशल की कमी है। उनमें शिक्षण सहायक सामग्री के प्रयोग से संबंधित रुचि एवं उत्साह में भी कमी है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि विभिन्न कार्यशालाओं तथा गोष्ठियों के द्वारा शिक्षकों तथा छात्राध्यापकों को शैक्षिक तकनीकी से संबंधित विशेष ज्ञान एवं कौशल प्रदान किया जाय तथा इसके प्रयोग के लिए उनमें रुचि एवं उत्साह उत्पन्न किया जाय।

(3) उपयुक्त हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर उपागमों का विस्तृत संख्या में उत्पादन करना - छात्रों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखकर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर उपागमों का बड़ी संख्या में उत्पादन करना भी भविष्य के लिए शैक्षिक तकनीकी की विशेष प्राथमिकता है।

(4) शोध द्वारा निरन्तर सुधार - शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न आयामों जैसे कम्प्यूटर आधारित शिक्षण, कम्प्यूटर सह अधिगम शिक्षण प्रतिमानों व्यूह रचनाओं आदि से संबंधित शोधकार्य किए जा रहे हैं। इन शोधों के द्वारा निरन्तर सुधार करना शैक्षिक तकनीकी की प्राथमिकता है।

(5) शैक्षिक संस्थाओं को नवीन तकनीकों के प्रयोग के लिए जागरूक बनाना - शैक्षिक संस्थाओं को नवीनतम तकनीकों की जानकारी प्राप्त नहीं हो जाती है जिससे उनके प्रयोग से वंचित रह जाते हैं। इसके अतिरिक्त शैक्षिक संस्थाओं में नवीन संसाधन केंद्रों की जानकारी उपलब्ध कराना आवश्यक है तथा उन्हें नवीनतम तकनीकों के प्रयोग के लिए जागरूक बनाना भी एक बड़ी प्राथमिकता है।

(6) दूरवर्ती शिक्षा में शैक्षिक तकनीकी का अधिकतम प्रयोग करना -  दूरवर्ती शिक्षा में शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न आयामों का प्रयोग अत्यंत आवश्यक होता है। जनमाध्यमों का प्रयोग भी दूरवर्ती शिक्षा में अत्यंत प्रभावी होता है। अतः दूरवर्ती शिक्षा में शैक्षिक तकनीकी का अधिकतम प्रयोग करके इसे प्रभावी बनाया जा सकता है।

(7) नवाचारों के अनुसार पाठ्यक्रम में बदलाव करना - शैक्षिक तकनीकी के नवाचारों के अनुसार पाठ्यक्रम में बदलाव आवश्यक है। पाठ्यक्रम में बदलाव होने पर ही नवाचारों का लाभ उठाया जा सकता है।

(8) सेवाकालीन शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु उचित प्रविधियों का प्रयोग करना - शैक्षिक तकनीकी के प्रभावी प्रयोग के लिए सेवाकालीन शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उचित प्रविधियों का प्रयोग करना भी भविष्य के लिए प्राथमिकताओं में से एक है। सेवाकालीन शिक्षकों हेतु कार्यशालाओं एवं गोष्ठियों का आयोजन करना आवश्यक है।

(9) शैक्षिक तकनीकी के तीव्र विकास एवं नवाचारों की जानकारी लोगों तक पहुँचाना - लोगों को शैक्षिक तकनीकी के नवाचारों एवं विकास की जानकारी पहुँचाना भी एक प्रमुख आवश्यकता है। लोगों में इसके प्रति उत्साह एवं रुचि जागृत करना भी इसकी एक प्राथमिकता है।

(10) छात्रों को बहुसंचार माध्यमों तथा इंटरनेट युक्त कम्प्यूटर उपलब्ध कराना - सूचना एवं संचार क्रान्ति के इस युग में छात्रों को बहुसंचार माध्यमों एवं इंटरनेट की अति आवश्यकता है। नवीन तकनीकों की उपलब्धता के बिना वर्तमान समय में अधिगम सम्भव नहीं है। अतः छात्रों को बहुसंचार माध्यमों तथा इंटरनेट युक्तं कम्प्यूटर उपलब्ध कराना शैक्षिक तकनीकी की प्राथमिकता है।

(11) वर्ल्ड वाइड वेब के लिए प्रमाणीकृत अनुदेशन सामग्री का निर्माण - व्यक्तिगत अनुदेशन के लिए प्रमाणीकृत अनुदेशन सामग्री की आवश्यकता होती है। विभिन्न विषय-वस्तु पर छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं क्षमताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की अनुदेशन सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए। अतः प्रमाणीकृत अनुदेशन सामग्री का निर्माण भी एक बड़ी प्राथमिकता है।

 

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