बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय-10 सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी : अर्थ, लाभ, प्रक्रिया एवं बाध्यताएँ
(Information and Communication Technology : Meaning, Advantages, Process and Barriers)
प्रश्न- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी क्या है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीक का अर्थ
सूचनाएं हमारे आस-पास के वातावरण के बारे में ज्ञान एवं समझ प्राप्त करने के आधार होते हैं। अतः व्यक्ति को इन सूचनाओं को प्राप्त करने, संग्रह करने तथा आवश्यकता पड़ने पर इसके प्रयोग का ज्ञान होना चाहिए। इस प्रकार की गतिविधियाँ सूचना तकनीकी हैं। परन्तु सम्प्रेषण की कला के बिना सूचनाओं की प्राप्ति एवं उपयोग अधूरा है। सम्प्रेषण एक द्वि-मार्गी क्रिया है जिसमें विचारों, विश्वास एवं सूचनाओं को दूसरों को बाँटते हैं। सूचना के स्रोत एवं ग्राह्य के मध्य आदान- प्रदान होता है जिससे ज्ञान की वृद्धि, समझ एवं इसके उपयोग में सहायता मिलती है। इस प्रकार ज्ञान को प्राप्त करने की क्रिया में सूचना एवं सम्प्रेषण दोनों ही आवश्यक हैं। अतः सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी वह तकनीकी है जिसके द्वारा सूचनाओं को शुद्ध एवं प्रभावी रूप में प्राप्त करने, संग्रह करने, प्रयोग करने, निरूपित करने तथा स्थानान्तरण में सहायक होती हैं। इसका उद्देश्य प्रयोगकर्ता के ज्ञान, सम्प्रेषण कौशल, निर्णय क्षमता तथा समस्या समाधानं क्षमता को बढ़ाना है।
उद्गम एवं विकास - प्राचीन काल में सूचनाएँ व्यक्ति के मस्तिष्क में ही संग्रहित होती थीं तथा अधिकर्ता को मौखिक रूप से ही स्थानांतरित होती थीं। कुछ महत्वपूर्ण तकनीकी विकास जो सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी में सहायक हुए निम्नलिखित हैं-
(1) फ्राँस के प्रो. ग्राफिन के द्वारा सन् 1900 में फोटोस्टेट का आविष्कार।
(2) 1940 में माइक्रोग्राफी का आविष्कार, जिसके द्वारा रिकॉर्ड की हुई सामग्री को बहुत छोटे रूप में कॉपी किया जा सकता है।
(3) 1960 में प्रिन्ट के लिए लेजर तकनीकी का आविष्कार।
(4) बीसवीं सदी मे चुम्बकीय वीडियो कैमरा, वीडियो डिस्क एवं कम्प्यूटर का विकास।
(5) टेलीफोन, टेलीग्राफ, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, टेलीविजन, सम्प्रेषण सैटेलाइट, फैक्स आदि का आविष्कार जिसने हमें सैटेलाइट युग में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सूचनाओं को एकत्र करने, संग्रह करने तथा आदान-प्रदान के नवीन साधनों से युक्त होने के उपरान्त 19वीं सदी में सूचना एवं सम्प्रेषण के ऊपर वैज्ञानिक नियंत्रण की दिशा में प्रयास हुए। 1950 में संयुक्त राज्य अमेरिका में सूचना विज्ञान शब्द का प्रतिपादन हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक सूचनाओं के संचार को अधिक प्रभावी बनाना तथा प्रयोगकर्ता को वैज्ञानिक सूचनाओं की प्राप्ति के लिये नये एवं विकसित विधियों के लिए प्रोग्राम बनाना था। 1960 के उपरान्त सूचना, एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग सभी क्षेत्रों, जैसे विज्ञान, उद्योगों, चिकित्सा, शिक्षा, बैंक, सरकारी कार्यालयों, प्रबन्धन आदि में प्रयुक्त होने लगा। आज हम इसका प्रयोग शिक्षण-अधिगम क्रिया, दूरस्थ एवं मुक्त शिक्षा, आभासी कक्षाओं आदि में बहुतायत से कर रहे हैं।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की प्रकृति-
(1) सम्प्रेषण में विचारों का आदान-प्रदान होता है तथा सम्प्रेषण तकनीकी में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं।
(2) सम्प्रेषण तकनीकी में एक व्यक्ति अपने संकेतों से दूसरे के विचारों व व्यवहार को प्रभावित कर देता है।
(3) सम्प्रेषण तकनीकी के प्रमुख तीन पक्ष अदा, प्रक्रिया और प्रदा होते हैं।
(4) सूचना व सम्प्रेषण तकनीकी पृष्ठपोषण सिद्धान्तों पर आधारित है।
(5) सम्प्रेषण तकनीकी ने शिक्षण प्रतिमानों, शिक्षण सिद्धान्तों तथा अधिनियमों का प्रतिपादन किया है। शिक्षण के स्वरूप का विश्लेषण व मूल्यांकन भी किया जाता है।
इस प्रकार सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने शिक्षा के क्षेत्र में पुरानी अवधारणाओं में वर्तमान संदर्भ के साथ अभूतपूर्व क्रांतिकारी परिवर्तन कर उन्हें एक नवीन स्वरूप प्रदान किया है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र - सम्प्रेषण एवं सूचना तकनीकी जन-शिक्षा के प्रसार में भी सहायता करती है। सम्प्रेषण तकनीकी उन व्यूह रचनाओं की विधियों की ओर संकेत करती है, जो विषय-वस्तु को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में हमें सहायता प्रदान करती है। सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र बहुत व्यापक है।
शिक्षा के क्षेत्र में सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र - निम्नांकित है-
(1) सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा शिक्षण-अधिगम हेतु प्रयुक्त की जाने वाली व्यूह रचनाओं और युक्तियों का चयन एवं विकास सुगमता से किया जा सकता है।
(2) सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षण प्रतिमानों का ज्ञान, विभिन्न प्रविधियों का ज्ञान और उनके चयन करने में सहायता कर सकती है।
(3) सम्प्रेषण तकनीकी में विभिन्न श्रव्य दृश्य सामग्रियों का चयन एवं विकास, उत्पादन और उपयोग किया जाता है।
(4) सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली तब तक सफल नहीं मानी जाती है जब तक उसका मूल्यांकन नहीं होता, यह मूल्यांकन शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु होता है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा मूल्यांकन या पृष्ठ-पोषण की विधियों का चयन व विकास सम्भव होता है।
(5) सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग हम सामान्य व्यवस्था, परीक्षण और अनुदेशन सम्बन्धी कार्य क्षेत्रों में भी कर सकते हैं।
(6) सम्प्रेषण तकनीकी में अदा से लेकर प्रदा तक सभी कार्य करने वाले तत्वों का विश्लेषण किया जा सकता है। इन तत्वों से सभी सम्भव कार्यों की जाँच की जा सकती है।
(7) सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र मशीनों एवं अन्य जनसम्पर्क माध्यमों तक विस्तृत है। जिसमें रेडियो, दूरदर्शन, टेपरिकॉर्डर, फिल्म प्रोजेक्टर एवं सैटेलाइट्स आदि सम्मिलित हैं।
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