बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्व बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्व - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 1 - उद्यमिता : आशय, अवधारणा, आवश्यकता तथा कार्य
(Entrepreneurship : Meaning, Concept, Need and Functions)
सामान्यतया अपना कारोबार स्थापित करना जो किसी अन्य आर्थिक क्रिया के अनुकरण से हटकर हो, उद्यमिता कहा जाता है। उद्यमिता के अन्तर्गत नवाचार, जोखिम उठाना, ध्येय तथा संगठनात्मक दक्षताएँ शामिल होती हैं। संसाधनों को निर्माणकारी क्रियाओं की ओर उन्मुख करना तथा नई तकनीक, नई क्रियाओं व साहसपूर्ण निर्णयों द्वारा नई उपयोगिता का सृजन करना उद्यमिता पर निर्भर है। उद्यमिता को आर्थिक विकास का अग्रदूत कहा जा सकता है क्योंकि आर्थिक बदलाव लाने में इसकी अग्रणी भूमिका रहती है। उद्यमिता का उपयोग धन-सृजन, लाभार्जन व धन बढ़ाने हेतु किया जाता है। उद्यमिता औद्योगिक, आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति का आधार स्तम्भ है। उद्यमिता से देश की गरीबी, बेकारी, निम्न उत्पादकता तथा आर्थिक असमानता का निवारण होता है।
वैश्वीकरण के युग में आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों का सामना तथा अवसरों की विद्यमानता प्रत्येक राष्ट्र के समाने है। इससे देशों की अर्थव्यवस्था प्रबन्धकीय अर्थव्यवस्था से साहसिक अर्थव्यवस्था में बदल रही है। प्रत्येक देश उद्यमी प्रवृत्तियों को प्रेरणा देने के लिए अनुकूल वातावरण, नीतियों तथा कार्य प्रणालियों का निर्माण कर रहा है। उद्यमिता के माध्यम से ही अमेरिका, फ्रांस, जापान, रूस, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन आदि देशों ने विकास के नये कीर्तिमान प्राप्त किए हैं। उद्यमिता ही प्रत्येक देश में आर्थिक व औद्योगिक क्रान्ति का आधार है। यह मात्र जीविकोपार्जन की प्रणाली न होकर कौशल तथा व्यक्तित्व विकास की प्रभावपूर्ण तकनीकी है।
विश्व में उद्यमिता के सतत् रूप से बढ़ते हुए महत्व को बताते हुए प्रो. जिम्मेरर तथा स्कार बौरो ने कहा है कि, "उद्यमवृत्ति की भावना का विकास नये व्यावसायिक इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है।'
उद्यमिता का विकास लगभग विगत दो सौ वर्षों से होता आ रहा है। उद्यमिता के विकास में अधिक रुचि 21वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही देख जा रही है। अर्नस्ट तथा यंग नामक संस्था ने यह पाया है कि 78 प्रतिशत प्रभावशाली अमरीकियों का यह विश्वास है कि उद्यमिता ही इस शताब्दी का रुख निर्धारित करेगी।"
उद्यमिता का भाविष्य सुनहरा है। विश्व के सभी देशों में उद्यमिता का तीव्र गति से विकास हुआ है। विश्व में उद्यमिता के विकास का सूचकांक यही दर्शाता है।
आँकड़े बताते हैं कि 70 प्रतिशत से भी अधिक नये उपक्रम किसी न किसी कारण असफल हो जाते हैं। ऐसे में उद्यमिता अपनाते समय सफलता की आशा अवश्य करनी चाहिये किन्तु जोखिम को ध्यान में रहना चाहिए।
भूतपूर्ण महामहिम राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. कलाम ने यह सुझाया है कि "उद्यमिता के प्रति अभिरूचि प्रारम्भ से एवं विश्वविद्यालयी वातावरण में ही उत्पन्न करनी चाहिये। हमें अपने विद्यार्थियों को व्यापक हितों के लिए अपने पारम्परिक मूल्यों के भीतर अच्छे अवसरों में नपी तुली जोखिम उठाने की शिक्षा देनी चाहिये। उन्हें सही कार्य करने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिये। यही क्षमता उन्हें भविष्य में चुनौतिपूर्ण कार्य करने के योग्य बनायेगी।'
21वीं सदी उद्यमिता की सदी है। उद्यमिता युवा पीढ़ी के सपनों को साकार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगी तथा दुनिया के आर्थिक स्वरूप में भी आमूल-चूल परिवर्तन कर देगी। प्रो. मार्क डोलिंगर के अनुसार, "भविष्य उद्यमिता के अवसरों से भरा पड़ा है तथा नये उपक्रमों के सृजन एवं उद्यमिता से दुनिया का व्यावसायिक एवं आर्थिक स्वरूप परिवर्तित हो रहा है। आधुनिक बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में नये व्यवसायों का सृजन करना ही तकनीकी एवं आर्थिक विकास की कुंजी है। उद्यमिता के माध्यम से लोग बेहतर दीर्घायु एवं अधिक समृद्ध जीवन जीते रहेंगे।"
भारत में आज उद्यमिता के विकास हेतु पर्याप्त सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। वित्तीय साधन अपेक्षाकृत कम लागत पर उपलब्ध हैं, बेहतर आधारभूत ढाँचागत सुविधाएँ उपलब्ध हैं, सरकार अनेक प्रेरणाएँ एवं छूटें दे रही है, सरकारी नियंत्रण भी उदार बनाए जा रहे हैं, तथा प्रशिक्षण की सुविधाएँ भी विकसित कर दी गई हैं। भारत में उद्यमिता का विकास निरन्तर हो रहा है। उद्यमिता केवल लघु उद्योग क्षेत्र में ही नहीं वरन् वृहद् स्तरीय उद्योग क्षेत्र में भी विकसित हो रही है। इन्टरनेट के माध्यम से लेन-देन की सुविधा ने तो उद्यमिता के इतिहास में नया अध्याय ही जोड़ दिया है। ऐसे में उद्यमिता के तीव्र गति से विकास की ज्यादा सम्भावना है।
देश में उद्यमिता का भाविष्य काफी उज्जवल दिखायी दे रहा है।
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