बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखेसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 12 - आय का संकलन तथा हानियों की पूर्ति एवं उन्हें आगे ले जाना
(Aggregation of Income and Set-off and Carry Forward of Losses)
सामान्यतया एक करदाता अपनी आय पर ही आय-कर देने को दायी होता है, किन्तु कुछ दशाओं में वह दूसरों की आय पर भी आय-कर देने को बाध्य होता है। यद्यपि इससे आय कर अधिनियम के इस सामान्य सिद्धान्त कि 'प्रत्येक करदाता अपनी आयों पर ही कर देने को दायी हैं' का उल्लंघन होता है। आप कर करदाता की आयों की आय बढ़ती हुई दरों से लगाया जाता है, क्योंकि ज्यों-ज्यों करदाता की आय बढ़ती है, उस पर आय-कर बढ़ी हुई दरों से लागू होने लगता है। अतः प्रत्येक करदाता का यह प्रयास रहता है कि वह अपनी कुल आय को एक निश्चित सीमा से बढ़ने न दे। इसके लिए वह अपनी आयों का हस्तान्तरण अपनी पत्नी तथा बच्चों आदि के पक्ष में करता है ताकि आयों का अधिक व्यक्तियों में विभाजन हो तथा प्रत्येक को आय की 'न्यूनतम सीमा' की छूट प्राप्त हो एवं साथ ही साथ कम दर से आय कर दायित्व उत्पन्न हो। इस पद्धति को रोकने के लिए आय कर अधिनियम की धारा 60 से 64 तक महत्वपूर्ण है। इन धाराओं के प्रभाव से कुछ अन्य व्यक्तियों की आयें करदाता की आय मानी जायेगी तथा करदाता की आय में जोड़कर उन पर आय-कर लगाया जायेगा। दूसरे व्यक्तियों की ऐसी आयें, जो करदाता की आय में जोड़ी जाती है मानी गई आयें कही जाती है और इस आय को करदाता की आय में जोड़ने की प्रक्रिया को 'आय का मिलाना' कहा जाता है।
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