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बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2752
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

आयकर किसी व्यक्ति की कर योग्य वार्षिक आय पर केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाया जाने वाला प्रत्यक्ष कर है। प्रत्यक्ष कर इसलिए है क्योंकि आयकर का भार उसी व्यक्ति पर पड़ता है जो आय अर्जित करता है अर्थात् आयकर को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता।

जिस वर्ष में कमाई जाती है, उसे गत वर्ष कहते हैं।

जिस वर्ष में इस आय पर कर का निर्धारण होता है, उसे कर निर्धारण वर्ष कहते है। आय के पाँचों शीर्षकों की कर योग्य आय के योग को सकल कुल आय कहते हैं। भारत में आय कर सर्वप्रथम सन् 1860 में लगाया गया था।

भारत में आयकर अधिनियम, 1961 में पास हुआ।
आय कर, आय की खण्ड-प्रणाली के आधार पर लगाया जाता है।

पुरुषों/महिलाओं (60 वर्ष से कम) तथा हिन्दू अविभाजित परिवार के लिये 250,000, वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष या इससे अधिक किन्तु 80 वर्ष से कम) के लिये 3,00,000 तक अति वरिष्ठ नागरिकों (80 वर्ष या अधिक) के लिए 5,00,000 तक की आय पर आय-कर नहीं चुकाया जाएगा।

आयकर नियम, 1961 के अन्तर्गत कुल आय को पाँच भागों में विभाजित किया गया है। जैसे - वेतन से आय, मकान सम्पत्ति से आय, व्यापार और पैसे से लाभ, पूँजीगत लाभ और अन्य साधनों से आय।

व्यक्ति, हिन्दू अविभाजित परिवार, साझेदारी फर्मों, कम्पनियाँट्रस्ट, संस्थान आदि सभी व्यक्ति आय-कर चुकाने के लिए उत्तरदायी होते हैं।

इस सकल कुल आय में से जीवन बीमा प्रीमियम, प्रॉविडेण्ट फण्ड में अंशदान, चिकित्सा, बीमा, दान, नए उपक्रमों के लाभ आदि के सम्बन्ध में धारा 80 की कटौतियाँ घटाने के बाद ज्ञात आय कुल आय या कर योग्य आय कहलाती है।

कुछ आयें कर मुक्त हैं, जिन्हें कर योग्य आय में शामिल नहीं किया जाता, जैसे- भारत में कृषि आय पोस्ट ऑफिस बचत खाते में जमाधन पर प्राप्त ब्याज, अनिवासियों की कुछ आयें, सार्वजनिक संस्थाओं की आयें आदि।

जिनकर दाताओं पर 10,000 रुपये से अधिक आयकर चुकाने का दायित्व है, उन्हें अग्रिम कर चुकाना होता है।

कर-निर्धारण वर्ष से ठीक पहले -31 मार्च को समाप्त हुई अवधि (अधिक से अधिक 12 माह) गत वर्ष कहलाती है।

अपनी आय पर जो व्यक्ति कर चुकाने के लिए उत्तरदायी होता है। उसे करदाता कहते हैं। जो व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की आय पर आय-कर चुकाने के लिये करदाता माना गया हो उसे माना हुआ करदाता कहते हैं।

व्यक्ति की आय में से जो व्यक्ति कर की कटौती करने के लिए उत्तरदायी हो या कर की कटौती करके सरकार के खजाने में जमा न करने पर चूक में करदाता कहलाता है। आय के पाँचों शीर्षकों में होने वाली आय के योग को सकल कुल आय कहते हैं।

सकल कुल आय में से धारा 80C से 80 U' तक की कटौतियाँ घटाने के बाद शेष आय को कुल आय कहते हैं।

 

कुल आय को 10 के गुणक से पूर्णांकित किया जाता है।

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