बी ए - एम ए >> बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- व्यक्तित्व के विकास में शारीरिक गतिविधियों की क्या भूमिका होती है?
उत्तर-
व्यक्तित्व के विकास में शारीरिक गतिविधियों की भूमिका
ये व्यक्तित्व के मौलिक रूप को निर्धारित करते हैं, व्यक्तित्व संबंधी गुण इन अंगों के द्वारा प्राप्त होते हैं-
(1) शरीर,
(2) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ,
(3) तंत्रिका तंत्र,
(4) बुद्धि। ये चारों तत्व जन्मजात होते हैं, इसलिए इन्हें आनुवंशिक कहते हैं।
(1) शरीर - शारीरिक तत्व के अन्तर्गत रूप-रंग, शारीरिक गठन, भार, कद, वाणी या स्वर आते हैं। साधारण बोलचाल में किसी सुन्दर, आकर्षक शारीरिक रचना, रूप, रंग और स्वस्थ शरीर को देखकर उसके व्यक्तित्व को अच्छा मान लिया जाता है।
(2) अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ - हमारे शरीर में कुछ अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ हैं। इनसे जो आन्तरिक स्राव होता है उसे रस या हारमोन्स कहते हैं। आंतरिक ग्रन्थि स्राव रक्त में मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँचता है। ये ग्रन्थियाँ जब उचित रूप से कार्य नहीं करती हैं अर्थात् उचित मात्रा में ग्रन्थि स्त्राव रक्त में मिलकर शरीर के सभी अंगों में न पहुँचता रहे तो सम्बन्धित अंगों की कार्य प्रणाली और विकास में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। इससे व्यक्ति की आकृति, गठन, स्वास्थ्य, संवेगशीलता, बुद्धि और व्यक्तित्व के अन्य पहलू प्रभावित होते हैं। यहाँ पर कुछ ग्रन्थियों के प्रभाव का उल्लेख किया जायेगा-
(i) गलग्रन्थि - इस ग्रन्थि का व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इस ग्रन्थि से अधिक मात्रा में स्त्राव होने पर व्यक्ति तनाव, चिन्ता, बेचैनी और उत्तेजना का अनुभव करता है, उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। इसी प्रकार ग्रन्थि के अभाव में व्यक्ति थकावट और मानसिक दुर्बलता का अनुभव करता है। यदि ग्रन्थि उचित या आनुपातिक मात्रा में रस उत्पन्न नहीं करती तो व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक विकास भली-भाँति नहीं हो पाता। वे मंदबुद्धि, दुर्बल और बौने कद के होते हैं। अतः अभिभावकों और शिक्षकों को बालक के इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए और उसका उचित उपचार करना चाहिए।
(ii) उपवृक्क ग्रन्थि - इस ग्रन्थि में एड्रिनल नामक स्राव होता है। यह व्यक्ति के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करती है। इस ग्रन्थि के स्राव से अतिरिक्त शक्ति प्राप्त होती है। इससे अधिक स्राव होने से व्यक्ति झगड़ालू स्वभाव के एवं परिश्रमी होते हैं।
(iii) पोष/पियूष ग्रन्थि - इस ग्रन्थि से उत्पन्न स्राव अन्य ग्रन्थियों पर नियंत्रण रखते हैं। इससे उत्पन्न स्राव या रस अन्य ग्रन्थि रसों में अनुपात बनाये रखते हैं। इस ग्रन्थि के अधिक क्रियाशील होने पर शरीर की लम्बाई अधिक, 8 या 9 फीट तक जा सकती है। इसके विपरीत होने पर शारीरिक विकास ठीक नहीं हो पाता, व्यक्ति में बौनेपन का दोष आ जाता है। इस प्रकार इस ग्रन्थि स्राव की अधिकता या कमी से विचित्र दोष उत्पन्न हो जाते हैं। यदि यह ग्रंथि ठीक से कार्य करती है तो व्यक्ति प्रसन्नचित्त, शांत स्वभाव वाला, धैर्यवान और स्वस्थ रहता है।
(iv) यौन ग्रन्थि - इस ग्रन्थि के उचित विकास से स्त्रियों में स्त्री सुलभ गुणों और लक्षणों का तथा पुरुषों में पुरुषोचित गुणों का स्वाभाविक रूप से विकास होता है।
(3) तंत्रिका तंत्र - इसका सर्वप्रथम अंग मस्तिष्क होता है। किसी उद्दीपन या परिस्थिति विशेष का ज्ञान तंत्रिकाओं के सहारे मस्तिष्क को होता है, फिर मस्तिष्क तंत्रिकाओं द्वारा आदेश देता है, तब व्यक्ति उद्दीपन या परिस्थिति के प्रति अनुक्रिया करता है। इस प्रकार व्यक्ति तंत्रिकातंत्र की सहायता से परिस्थितियों को समझता है और व्यवहार करता है। उसके व्यक्तित्व का परिचायक बहुत अंशों में उसका व्यवहार होता है।
(4) बुद्धि - व्यक्तित्व को निर्धारित करने वाला एक प्रमुख तत्व बुद्धि है। तीव्र बुद्धि, सामान्य बुद्धि और मंद बुद्धि व्यक्ति के व्यक्तित्व में भिन्नता दिखाई देती है।
इस प्रकार व्यक्तित्व के विकास में शारीरिक गतिविधियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।
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