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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2751
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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

 

 

 

 

अध्याय - 10
व्यक्तित्व के दृष्टिकोण :

विशेषता, प्रकार और मनोगतिकी सिद्धान्त, व्यक्तित्व के निर्धारक एवं व्यक्तित्व का मूल्यांकन
(Approaches to Personality : Trait, Types and Psychodynamic Theories, Determinants of Personality and Assessment of Personality)

प्रश्न- विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर व्यक्तित्व का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने अपना-अपना मत रखा है। प्राचीन अवधारणा के अनुसार व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द Personality का हिन्दी रूपान्तरण है। Personality शब्द के अर्थ को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया गया है-

1. भूमिका के अनुसार चेहरे को बदलना

2. उपर्युक्त भूमिका के आधार पर सम्पूर्ण व्यक्तित्व की भूमिका बनाना

3. भूमिका के आधार पर गुणों का विकास करना

4. एक नवीन व्यक्तित्व को धारण करन, जो वास्तविक से सर्वथा भिन्न हो।

 

नवीन अवधारणा के अनुसार व्यक्ति और व्यक्तित्व दोनों का एक-दूसरे से अकाट्य सम्बन्ध होते हुए भी इनमें बहुत बड़ा अन्तर है। यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने गुणों से अन्य को प्रभावित करता तथा वह अन्य से प्रभावित होता है। अतः वर्तमान समय में व्यक्तित्व को मध्यवर्ती चर के रूप में माना जा रहा है। मनोविज्ञान में यह सिद्ध हो चुका है कि किसी उद्दीपक के द्वारा अनुक्रिया तुरन्त या स्वतः नहीं हो जाती है। उद्दीपक सम्पूर्ण प्राणी को प्रभावित करता है तथा जो अनुक्रिया होती है, वह उद्दीपक तथा प्राणी दोनों का कार्य होता है। अतः उद्दीपक और अनुक्रिया के मध्य कुछ मध्यवर्ती चर होते हैं।

जैसे - बुद्धि, प्रेरक, पूर्व अनुभव, अभिवृप्ति, मानसिक सुझाव आदि।

मनोवैज्ञानिक भाषा में व्यक्ति अपने आप में जो कुछ भी है वही उसका व्यक्तित्व है। अपने प्रति और दूसरों के प्रति किये जाने वाले व्यवहार का यह एक समग्र चित्र है। इसमें व्यक्ति के पास शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी होता है वह सभी सम्मिलित होता है। कम शब्दों में कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व वह सब है जो एक व्यक्ति के पास होता है।

दार्शनिक दृष्टिकोण के आधार पर व्यक्तित्व आत्म-ज्ञान का दूसरा नाम है, यह पूर्णता का प्रतीक है तथा इस पूर्णता का आदर्श ही व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार पर व्यक्तित्व उन सभी तत्वों का संगठन है, जिसके द्वारा व्यक्ति को समाज में कोई स्थान प्राप्त होता है, इसलिये व्यक्तित्व का एक सामाजिक प्रभाव है। मनोविश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के जन्मदाता फ्रायड ने व्यक्तित्व को तीन भागों में बाँटा है - इदम् (Id), अहम् (Ego) तथा परम अहम ( Super Ego )। इनके अनुसार इदम् चेतन मन में स्थित प्राकृत शक्तियाँ है, जो अबोध व अज्ञात की अवस्था में मृत हैं। इसे तुरन्त ही संतुष्टि मिलनी चाहिये। अहम वह चेतन अथवा चेतन शक्ति है, जिसमें तर्क एवं बुद्धि का समावेश है। इसका सम्बन्ध इदम् तथा अहम् दोनों से है। परम अहम् व्यक्ति का आदर्श होता है। वह नैतिकता के आधार पर अहम की आलोचना करता है तथा उसे सही मार्ग दिखाता है।

सामान्य दृष्टिकोण के आधार पर व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के प्रभाव के उन गुणों से लिया जा सकता है, जो दूसरों के हृदय पर विजय पाने में सहायक होते हैं।

अतः हम यह कह सकते हैं कि व्यक्तित्व का अर्थ मनुष्य के व्यवहार की वह शैली है जिसे वह अपने आन्तरिक तथा बाहरी गुणों के आधार पर प्रकट करता है। व्यक्ति के बाहरी गुण पहनावा, बातचीत की शैली, हावभाव की मुद्राएँ, आदतें तथा अन्य अभिव्यक्तियाँ हैं। मनुष्य के आन्तरिक गुण उसकी अतः प्रेरणा, संवेग, प्रत्यक्ष इच्छा आदि। व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के समस्त मिश्रित गुणों का वह प्रतिरूप है जो उसकी विशेषताओं के कारण उसे अन्य व्यक्तियों से भिन्न इकाई के रूप में स्थापित करता है।

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