बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला बीए सेमेस्टर-4 चित्रकलासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- रीति सम्प्रदाय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
रीति सम्प्रदाय (गत) : आचार्य वामन (8वीं शताब्दी) (Rii School Vhaman (8th Century)] वामन ने रीति को काव्य की आत्मा माना है। विशिष्ट शैली अथवा पद रचना। प्रथम काव्यकृति के शरीर से मिल रीति से तात्पर्य है रचना की काव्य की आत्मा' की चर्चा की है। काव्य के शरीर को उन्होंने भामह के अनुसार ही अंलकारपूर्ण माना है किन्तु वकोवित्त तथा रस को काव्य का सारतत्व स्वीकार किया है। आचार्य वामन के अनुसार, रचना की विशेष - शैली अथवा पद रचना ही रीति है। रचना में जो गुण या विशेषताएँ रीति की उद्भावना में सहायक हैं, वे निम्न हैं-
(1) ओज
(2) प्रसाद
(3) श्लेष
(4) समता
(5) समाधि
(6) सुकुमारता
(7) मधुरता
(8) उदारता
(9) अर्थ प्राकट्य
(10) कान्ति|
ये गुण शब्द और अर्थ दोनों में होने चाहिए और वही सर्वोत्तम कृति है जिसमें ये सभी गुण विद्यमान हों। इन गुणों के अलग-अलग संयोग से तीन रीतियाँ निर्मित होती हैं में वैदर्भी, गौड़ी तथा पांचाली। इनमें से वैदर्भी में सभी गुण निहित हैं। परन्तु अन्य दोनों रीतियों में केवल कुछ ही गुण मिलते हैं। माधुर्य व्यंजक वर्णों से युक्त तथा समासरहित ललित रचना वैदर्भी रीति से युक्त होती है। ओज को प्रकाशित करने वाले वर्णों से युक्त अनेक समासों तथा आडम्बरों से बोझिल रचना गौड़ी रीति के अन्तर्गत समझी जाती है। वैदर्भी तथा गौड़ी रीतियों में प्रयोग किये जाने वाले वर्गों से बचे हुए वर्णों से युक्त पाँच या छः पद के समास वाली रचना पांचाली रीति से बनी होती है। इन तीनों रीतियों में काव्य उसी प्रकार प्रतिष्ठित है जिस प्रकार रेखाओं में चित्र प्रतिष्ठित होता है।
आचार्य वामन के मत की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) अलंकारों के अतिरिक्त काव्य के गुणों पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया।
(2) उन्होंने विदर्भ देश के आधार पर वैदर्भी, गौड़ प्रदेश के आधार पर गौड़ी तथा पांचाल (मध्य प्रदेश) के आधार पर पांचाली रीतियों का विभाजन किया था।
(3) वामन ने सभी प्रकार के काव्य रचनाओं में दश-रूपक (दस प्रकार के नाटक) को ही श्रेष्ठ माना, क्योंकि उनमें चित्र पट के समान सभी विशेषताएँ होती हैं।
ये काव्य के ध्वन्यर्थ को भी मानते हैं किन्तु वे इसे भाषा की लक्षणाशक्ति का ही परिणाम मानते हैं।
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