बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 9
अवधान व रुचि
(Attention and Interest)
अवधान का अर्थ व परिभाषा
चेतना व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है। चेतना के ही कारण उसे विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता है। यदि वह कमरे में बैठा हुआ पुस्तक पढ़ रहा है तो उसे वहाँ की सब वस्तुओं की कुछ-न-कुछ चेतना अवश्य होती है जैसे- मेज, कुर्सी, अलमारी आदि। पर उसकी चेतना का केन्द्र वह पुस्तक है जिस वह पढ़ रहा है। चेतना के किसी वस्तु पर इस प्रकार के केन्द्रित होने को 'अवधान' कहते हैं। दूसरे शब्दों में किसी वस्तु पर चेतना को केन्द्रित करने की मानसिक प्रक्रिया को अवधान कहते हैं-
अवधान के अर्थ को हम निम्नांकित परिभाषाओं से पूर्ण रूप से स्पष्ट कर सकते हैं-
1. डमविल - "किसी दूसरी वस्तु के बजाये एक ही वस्तु पर चेतना का केन्द्रीयकरण अवधान है।"
2. रास - "अवधान, विचार की किसी वस्तु को मस्तिष्क के सामने स्पष्ट रूप से उपस्थित करने की प्रक्रिया है।"
3. वेलेंटाइन - "अवधान, मस्तिष्क की शक्ति न होकर सम्पूर्ण रूप से मस्तिष्क की क्रिया या अभिवृत्ति है।"
अवधान के पहलू
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के अनुसार- अवधान में सचेत जीवन के तीन पहलू होते हैं- जानना, अनुभव करना और अच्छा करना (Knowing, Feeling & Willing) | किसी. कार्य के प्रति ध्यान देते समय हमें उसका ज्ञान रहता है। हम रुचि के रूप में किसी भावना या संवेग में प्रेरित होकर उसे करने में ध्यान लगाते हैं। जितनी देर हमारा ध्यान उस कार्य में लगा रहता है उतनी देर हमारा मस्तिष्क क्रियाशील रहता है। इस प्रकार जैसा कि भाटिया ने लिखा है - " अवधान - ज्ञानात्मक, क्रियात्मक और भावात्मक होता है।"
रुचि का अर्थ व परिभाषा
Interest की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Interesse से हुई है। Stout के अनुसार इसका अर्थ है - इसके कारण अन्तर होता है। Ross के अनुसार इस शब्द का अर्थ है - 'यह महत्त्वपूर्ण होती है या इसमें लगाव होता है। इस प्रकार जिस वस्तु में हमें रुचि होती है वह हमारे लिए दूसरी वस्तुओं से भिन्न और महत्त्वपूर्ण होती है एवं हमें उससे लगाव होता है।'
रुचि के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम कुछ परिभाषाएं दे रहे हैं-
1. भाटिया - रुचि का अर्थ है- अंतर करना। हमें वस्तुओं में इसलिए रुचि होती है, क्योंकि हमारे लिये उनमें और दूसरी वस्तुओं में अन्तर होता है, क्योंकि उनका हमसे सम्बन्ध होता है।
2. क्रो व क्रो- "रुचि वह प्रेरक शक्ति है, जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है।"
रुचि के पहलू
अवधान के समान रुचि के भी तीन पहलू हैं - जानना, अनुभव करना और इच्छा करना (Knowing, Feeling & Willing) । जब हमें किसी वस्तु में रुचि होती है तब हम उसका निरीक्षण और अवलोकन करते हैं। ऐसा करने से हमें सुख या सन्तोष मिलता है और हम उसे परिवर्तित करने या न करने के लिए कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार, जैसा कि भाटिया ने लिखा है- 'रुचि - ज्ञानात्मक, क्रियात्मक और भावात्मक होती है।'
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