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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2747
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 21
मानव विकास
(Human Development)

मानव विकास का सम्बन्ध लोगों के विकल्पों में वृद्धि से है, ताकि वे आत्मसम्मान के साथ दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें। मानव विकास लोगों की स्वतन्त्रता और अवसरों को बढ़ाने और उनकी भलाई में सुधार करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है। मानव विकास का उद्देश्य मानव जाति के हर सदस्य को समृद्ध, स्वस्थ और समृद्ध जीवन जीने का अवसर देना है। मानव विकास संचार प्रणाली में समाज, राजनीति, आर्थिक व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं। इसका उद्देश्य समाज में समृद्धि, सुख और समाज में सुधार होना है। शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारक शामिल हैं। शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास के साथ-साथ एक व्यक्ति की स्वयं की अवधारणा पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने में सक्षम होने के लिए इन कारकों का ज्ञान आवश्यक है। मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय गणना है जिसका उपयोग किसी देश की सामाजिक, आर्थिक आयामों के लगभग सभी उपलब्धियों को मापने के लिए किया जाता है। किसी देश के सामाजिक और आर्थिक आयाम लोगों के स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा और उनके जीवन-स्तर पर आधारित होते हैं। मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय गणना है जिसका उपयोग किसी देश की सामाजिक, आर्थिक आयामों के लगभग सभी उपलब्धियों को मापने के लिए किया जाता है। किसी देश के सामाजिक और आर्थिक आयाम लोगों के स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा और उनके जीवन-स्तर पर आधारित होते हैं। मानव विकास का ध्येय लोगों की स्वतन्त्रता में वृद्धि से है। लोगों की स्वतन्त्रताओं में वृद्धि मानव विकास का सर्वाधिक प्रभावशाली माध्यम है।

डॉ. सेन के अनुसार - स्वतन्त्रता की वृद्धि में सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

उनके अनुसार इस प्रकार के विकास का केन्द्र-बिन्दु मानव ही है। विकास का मुख्य उद्देश्य देश में ऐसी दशाओं को उत्पन्न करना है जिससे लोग सार्थक जीवन जी सके। सार्थक जीवन का तात्पर्य दीर्घकालीन नहीं होता बल्कि जीवन उद्देश्यपूर्ण हो। जीवन का कोई लक्ष्य हो, लोग स्वस्थ हों और अपने विवेक बुद्धि का प्रयोग करके अपने लक्ष्यों को पूरा करने में स्वतन्त्र हों और वे समाज और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें। आर्थिक विकास का प्रमुख लक्ष्य - कुपोषण, बीमारी, निरक्षरता, बेरोजगारी, विषमता आदि को प्रगतिशील रूप से कम करना तथा अन्तिम रूप से समाप्त करना है। आर्थिक विकास एक विस्तृत अवधारणा है, जो अपने में आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक क्षेत्र विकास तथा समावेशी विकास को सम्मिलित किये हुए है। यदि किसी देश की जी०डी० पी० और जनसंख्या में समान दर से वृद्धि हो तब भी हमें यह कहना पड़ेगा कि उस देश का विकास नहीं हुआ है। इसी प्रकार यदि किसी कारण से किसी देश की जनसंख्या घट जाए किन्तु जी०डी०पी० स्थिर रहे तो कहना पड़ेगा कि उस देश का विकास हुआ है। कुछ विद्वानों का मत है कि विकास का अंतिम लक्ष्य लोगों के रहन - सहन व जीवन - स्तर में वृद्धि करना होता है और रहन - सहन का स्तर उपभोग के लिए उपलब्ध वस्तुओं व सेवाओं की मात्रा पर निर्भर करता है। अतः प्रति व्यक्ति उपभोग का स्तर आर्थिक विकास का सर्वोत्तम मापदंड है। किन्तु इस माप की भी अपनी एक कठिनाई है। प्रत्येक देश को भविष्य में अधिक उत्पादन करने के लिए पूंजी संचय व बचत की आवश्यकता होती है और इसके लिए उपभोग को कम करके बचत व पूँजी निर्माण में वृद्धि कर रहा होगा तो प्रति व्यक्ति उपभोग स्तर को विकास का मापदंड मान लेने पर उस देश का आर्थिक विकास नहीं माना जाएगा। दूसरी ओर यदि कोई देश वर्तमान में अपने उपभोग स्तर में तो काफी वृद्धि कर लेता है किन्तु उसकी बचत व पूँजी निर्माण कम हो जाता है तो इससे भविष्य में उसके कुल उत्पादन में कमी आने की संभावना उत्पन्न हो जाएगी। किन्तु प्रति व्यक्ति उपभोग स्तर के मापदंड के अनुसार उस देश का आर्थिक विकास हुआ है यही कहा जाएगा। कुछ विद्वानों के अनुसार आर्थिक कल्याण ही आर्थिक विकास का सर्वोत्तम मापदंड हो सकता है। आर्थिक कल्याण का विचार करते समय केवल यही नहीं देखा जाता अपितु प्रत्येक मनुष्य की आय का स्रोत क्या है और वह उससे कितना कमा लेता है ये सब भी विकास का ही हिस्सा माना जाता है। आर्थिक समृद्धि से तात्पर्य है अधिक उत्पादन, जबकि आर्थिक विकास में अधिक उत्पादन तथा तकनीकी एवं संस्थागत व्यवस्थाओं में परिवर्तन, दोनों बातें शामिल हैं। इस प्रकार आर्थिक समृद्धि की तुलना में आर्थिक विकास एक विस्तृत अवधारणा है।

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