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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2747
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 20
विकास की अवधारणा,
आर्थिक एवं सामाजिक विकास
(Concept of Development,
Economic and Social Development)

विकास एक अनवरत प्रक्रिया है। विकास का कार्य शान्तिपूर्ण वातावरण में सम्भव है। विकास के लिए राजनीतिक स्थिरता, प्रशासनिक कुशलता और स्थिरता, उचित सांस्कृतिक और नियोजन व्यवस्था, जन-सहभागिता, सुदृढ़ आर्थिक नीति, अनुकूल आर्थिक, सामाजिक राजनीतिक पर्यावरण आदि शासन की अवधारणा का प्रतिपादन किया। सामाजिक विकास से तात्पर्य यह है कि विकास ऐसे परिवर्तनों को लक्षित करता है जो प्रगति की ओर उन्मुख रहते हैं। विकास एक सामाजिक प्रक्रिया है। इसका सम्बन्ध आर्थिक पहलू से अधिक है। लेकिन सामाजिक विकास केवल आर्थिक पहलू से ही सम्बन्धित नहीं है अपितु तत्वों तथा सामाजिक संस्थाओं से भी सम्बन्धित है।

'सामाजिक विकास' विकास के समाजशास्त्र का केन्द्र बिन्दु है अतः सामाजिक विकास की विवेचना करना आवश्यक है।

जे०ए० पान्सीओ ने सामाजिक विकास को परिभाषित करते हुए कहा है कि - "विकास एक आंशिक अथवा शुद्ध प्रक्रिया है जो आर्थिक पहलू में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है। आर्थिक जगत में विकास से तात्पर्य प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से लगाया जाता है। सामाजिक विकास से तात्पर्य जन सम्बन्धों तथा ढाँचे से है जो किसी समाज को इस योग्य बनाती है कि उसके सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।"

बी० एस० डिसूजा के अनुसार - "सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके कारण अपेक्षाकृत सरल समाज एक विकसित समाज के रूप में परिवर्तित होता है।" औद्योगीकरण सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन है। औद्योगीकरण के बिना सामाजिक विकास सम्भव नहीं है। विकसित समाजों में राष्ट्रीय आय में वृद्धि औद्योगीकरण के फलस्वरूप ही सम्भव हो पाई है अतः विकासशील देश भी औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दे रहे हैं। राष्ट्र संघ के आर्थिक एवं सामाजिक विषय विभाग का विचार है कि - "अल्पविकसित क्षेत्रों की प्रचलित परिस्थितियों में रहन-सहन के औसत स्तरों को उगने का उद्देश्य समुदाय के बहुसंख्यकों की आयों में सुदृढ़ वृद्धियों के स्थान पर थोड़े से अल्पसंख्यकों की आय में अधिक वृद्धि करना है। अधिकांश कम विकसित देशों में ये बहुसंख्यक विशाल और ग्रामीण होते हैं जो ऐसे कृषि कार्य करते हैं जिनकी न्यूनतम उत्पादन क्षमता बहुत ही कम होती है। कुछ देशों में औसत उत्पादिता को बढ़ाना आर्थिक विकास का प्रधान कार्य है। अधिक उन्नत देशों में विकास द्वारा प्रारम्भ नए कार्यों की उत्पादिता कृषि की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। ऐसी स्थिति में गौण उद्योग विकास का एक महत्वपूर्ण साधन बनता है। इसी प्रकार नगरीकरण भी आर्थिक तथा सामाजिक विकास की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है और गाँवों से कस्बों की ओर स्थानान्तरण ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में रहन-सहन के स्तर, विभिन्न आकार के कस्बों में आर्थिक एवं सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने के लिए सापेक्ष व्यय, जनसंख्या के विभिन्न अंगों के लिए आवास की व्यवस्था, जलपूर्ति, सफाई, परिवहन एवं शक्ति जैसी सेवाओं का प्रावधान, आर्थिक विकास का स्वरूप, उद्योगों का स्थान निर्धारण एवं विकिरण, नागरिक प्रशासन, वित्तीय नीतियों और भूमि उपयोग के नियोजन जैसी अनेक समस्याओं के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। इन अंगों का महत्व उन शहरी क्षेत्रों में है जो बड़ी तेजी से विकसित हो रहे हैं, विशेष हो जाता है। नगरीकरण के कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाती है तथा रहन-सहन का स्तर भी ऊँचा हो रहा है जो सामाजिक विकास में सहायक है। आर्थिक स्थिति तथा सामाजिक विकास आपस में घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। जो समाज आर्थिक दृष्टिकोण से सुदृढ़ है वे समाज विकास की ओर निरन्तर अग्रसर है। इसके विपरीत कमजोर आर्थिक स्थिति वाले समाज में विकास की गति बहुत धीमी है। सामाजिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो। व्यावसायिक गतिशीलता के परिणामस्वरूप भी सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो रही है जो सामाजिक विकास के मार्ग में सहायक है। शिक्षा सामाजिक-आर्थिक प्रगति की सूचक है। शिक्षा का प्रमुख कार्य मनुष्य के जीवन के विभिन्न पक्षों तथा बौद्धिक, भावात्मक, शारीरिक, सामाजिक आदि का समुचित विकास करता है । अतः शिक्षा को सामाजिक विकास की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। शिक्षा का बढ़ता हुआ प्रभाव सामाजिक विकास में काफी सहायक रहा है। सामाजिक विकास तथा राजनैतिक व्यवस्था का आपस में अटूट सम्बन्ध है।

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