बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 15
दहेज प्रथा
(Dowry System)
दहेज प्रथा का जो वीभत्स रूप आज समाज में दृष्टिगोचर हो रहा है वह समाज के लिए एक अभिशाप सा है। प्रारम्भ से ही उपहारस्वरूप विवाह में वर तथा कन्या को कुछ दिया जाता रहा है लेकिन उसका रूप कठोर नहीं था। अभिभावक आसानी से जो दे देते थे वर पक्ष के लोग उसे ले लेते थे। जैसे अल्टेकर महोदय ने लिखा है कि "निःसन्देह स्मृतियों में इस बात की अनुमति मिलती है कि विवाह में वर तथा कन्या को कुछ दिया जाता रहा है लेकिन उसका रूप कठोर नहीं था। अभिभावक आसानी से जो दे देते थे वर पक्ष के लोग उसे लेते थे।" अल्टेकर ने लिखा है कि- "निःसन्देह स्मृतियों में इस बात की अनुमति मिलती है कि विवाह में कन्या किन्हीं उपयुक्त आभूषणों के साथ दी जानी चाहिए, किन्तु उनकी संख्या और मूल्य पूर्ण रूप से कन्या के पिता की इच्छा पर छोड़ दिया जाता है।" इस उपहार या दहेज का सम्बन्ध दान से है। दहेज की मात्रा में वृद्धि बारहवीं, तेरहवीं सदी में प्रारम्भ हुई और वह निरंतर बढ़ती ही गई।
वर्तमान समय में दहेज ने इतना भयंकर रूप धारण कर लिया है कि इसके कारण अनेक कन्याओं का जीवन बरबाद हुआ है, कुछ युवतियों की दहेज के कारण हत्या भी कर दी जाती है जिसे दहेज हत्या के नाम से जाना जाता है। जिन व्यक्तियों के पास दहेज देने को नहीं होता है उन्हें अपनी बेटियों के विवाह में काफी परेशानी उठानी पड़ती है, कुछ व्यक्ति तो अपनी पुत्रियों का विवाह दहेज के कारण नहीं कर पाते हैं और उन्हें कुंआरी ही रहना पड़ता है इससे क्षुब्ध होकर कभी-कभी माता-पिता स्वयं ही आत्महत्या कर लेते हैं। इस प्रकार दहेज एक सामाजिक कोढ़ बन चुका है। आज दहेज का स्वरूप अत्यन्त विकराल रूप धारण करता चला जा रहा है। आज दहेज वर - मूल्य समझा जाता है। कुछ लोग दान और दहेज को एक ही मानते हैं। जबकि इन दोनों में अन्तर है। दान वह धन है जो विवाह के समय कन्या पक्ष, वर पक्ष को अपनी स्वेच्छा से देता है जबकि दहेज वह धन है जो कन्या पक्ष विवाह से पूर्व वर पक्ष को देता है। व्यावहारिक रूप से दहेज वर मूल्य ही होता है। आज यह समस्या इतनी गम्भीर हो गई है कि दहेज के कारण नवविवाहित स्त्रियों को जला देने के समाचार आए दिन आते रहते हैं।
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