बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 2
अपराध एवं बाल अपराध
(Crime and Juvenile Delinquency)
अपराध एक सार्वभौमिक समस्या है, जो कि प्रत्येक समाज में किसी न किसी रूप में पायी जाती है। प्रत्येक समाज में सदस्यों के हितों व सुरक्षा को ध्यान में रखकर नियम बनाये गये। समाज द्वारा निर्मित इन नियमों का पालन करना सभी के लिए आवश्यक होता है जो नियमों का उल्लंघन करता है उसे समाज द्वारा दण्डित किया जाता है। सरल शब्दों में अपराध कानून का उल्लंघन है चाहे कोई कार्य कितना भी अनैतिक और गलत क्यों न हो। किन्तु अपराध नहीं कहलाता है, जब तक अपराधी कानून में उसे अपराध न माना गया हो। कानून का उल्लंघन अपराध कहलाता है। अपराध की धारणा हर समाज में प्राचीन काल से ही मिलती है किन्तु अपराध की वैज्ञानिक अवधारणा का विकास हुए अधिक दिन नहीं हुए हैं। पहले अपराध को एक व्यक्तिगत घटना माना जाता था तथा "एक बार का अपराधी सदा अपराधी' में व्यापक रूप से विश्वास किया जाता था। यही कारण है कि अपराधी को कठोर से कठोर दण्ड देने का प्रचलन था आधुनिक समय में अपराधी को एक रोगी माना जाता है, वह सहानुभूति का पात्र समझा जाता है। अतः दण्ड के स्थान पर आज सुधार पर अधिक जोर दिया जाता है।
अपराध की अवधारणा राज्य के विकास के साथ-साथ स्पष्ट होती गयी। साधारणतः यदि कोई किसी की हत्या कर देता है तो हत्यारे को मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास की सजा की जाती है, जबकि युद्ध में अधिकाधिक दुश्मनों को मारने वाले को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। अति प्राचीन समय में और आदिम समाजों में आज भी तथा ग्रामीणों यह विश्वास है कि अपराध ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन है, अतः वह पाप है। अपराध को नैतिक दृष्टि से ऐसा कार्य समझा गया जिसे नीतिशास्त्र अनैतिक मानता है। सामाजिक दृष्टि से अपराध में समाज के नियमों का उल्लंघन होता है और उससे समाज की हानि होती है। राज्य के शक्ति ग्रहण करने के साथ-साथ व्यक्ति के व्यवहारों को राज्य के नियमों से सम्बद्ध किया गया और ऐसे सभी कार्य जिनसे राज्य के नियमों का उल्लंघन होता हो अपराध माने जाने लगे।
बालकों द्वारा किया जाने वाला समाज-विरोधी कार्य ही बाल-अपराध कहा जाता है। कानून की दृष्टि से एक खास आयु के बालक द्वारा समाज की रीति-नीतियों, प्रथाओं एवं मान्यताओं का उल्लंघन ही बाल अपराध है। बाल अपराध की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
डॉ. सुशील चन्द्र - यह समाज विज्ञान की वह शाखा है जो बालकों के असामाजिक व्यवहारों का अध्ययन करती है। प्रत्येक समाज, चाहे वह उन्नत हो या अशिक्षित, सामाजिक मूल्यों के एक संग्रह को जो इनकी संस्कृति और पीढ़ी की देन होती है, रखता है। इस समाज के रीति-रिवाज, प्रथाएँ-परम्पराएँ एवं रूढियाँ सामाजिक आचरण को परिभाषित करती हैं ताकि मौलिक मूल्यों की रक्षा हो सके और वे टिक सकें। इस प्रकार से स्थापित आदर्श आचरण, जो सामाजिक सामान्य आचरण होते हैं, से अलगाव अपराधी-आचरण का द्योतक होती है।"
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