बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 7
आत्महत्या
(Suicide)
आत्महत्या वैयक्तिक विघटन की चरम अभिव्यक्ति है कि वह अपना जीवन समाप्त कर लेता है, तब इसी स्थिति को हम आत्महत्या कहते हैं। जब कोई व्यक्ति अपने जीवन से किसी कारणवश ऊबकर या हारकर किन्हीं अस्वाभाविक उपायों से अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है तो इस प्रकार की मृत्यु आत्महत्या कहलाती है। जीवन एक संघर्ष है जिसका मुकाबला प्रत्येक व्यक्ति को हंसकर करना चाहिए और यदि व्यक्ति को मरना ही है तो उसे देश की सेवा करते हुए या फिर कोई महान् कार्य करते हुए मरना चाहिए जिससे उसके मरने के बाद भी लोग उसे याद रखें। आत्महत्या तो कायरों का शास्त्र है न कि वीरों का, जो व्यक्ति अपने जीवन की समस्याओं का सामना नहीं कर पाते हैं, वही आत्महत्या करते हैं। हत्या तथा आत्महत्या की घटनाएं प्रत्येक समाज में कुछ न कुछ सीमा तक पायी जाती है। दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धान्त आज भी एक वैज्ञानिक सिद्धान्त माना जाता है। आत्महत्या किसी व्यक्ति की ऐसी क्रिया है जिससे वह अपने जीवन का अन्त करने के लिए तैयार हो जाता है। साथ ही यह आकस्मिक न होकर पूर्व नियोजित है। जहाँ तक आत्महत्या की ऐतिहासिकता का सम्बन्ध है इसे केवल औद्योगीकरण तथा नगरीकरण से उत्पन्न तनावों का परिणाम न मानकर विभिन्न संस्कृतियों के उपलक्षण के रूप में ही देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए जापान में एक लम्बे समय से व्यक्ति अपनी भावुकता को व्यक्त करने के लिए "हाराकीरी' (आत्म-बलिदान) को एक गौरवपूर्ण व्यवहार के रूप में देखते रहे हैं। रोम में भी आत्महत्या की धारणा को वैयक्तिक सम्मान से सम्बद्ध किया जाता रहा है। हमारे समाज में व्यक्तिगत स्वार्थों को पूरा करने के लिए की गई आत्महत्या को 'कायरता' तथा 'पाप' माना गया।
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