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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2746
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 19
जार्ज विल्हेल्म फ्रेड्रिक हीगल
(George Wilhelm Friedrich Hegel)

जॉर्ज विल्हेल्म फ्रेड्रिक हीगल उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक था। हीगल का जन्म जर्मनी के एक नगर स्टुटगार्ट में सन् 1770 ई. में हुआ था। एक उच्च राज्य कर्मचारी का पुत्र होने के कारण हीगल का पालन-पोषण तथा शिक्षा व्यवस्थित ढंग से हुई। अपने अध्ययन काल में उस पर यूनानी दार्शनिक के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। उसका कहना था कि, यूनान का नाम सुनते ही सुसंस्कृत जर्मन प्रफुल्लित हो उठता है। हीगल का दर्शन उसकी अनेक कृतियों में निहित है। उसका राजनीतिक चिन्तन मुख्यत: 'फिलॉसफी ऑफ राइट' (सत्य दर्शन) (1821) के अन्तर्गत मिलता है। जब वह विद्यार्थी था, तभी फ्रांस में राज्य क्रान्ति हुई और उससे भी वह बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसे 'शानदार बौद्धिक उषाकाल' कह संज्ञा दी। रूसो के दर्शन का उसने विस्तृत अध्ययन किया और उसने ईसामसीह जीवन चरित्र लिखकर ईसाई धर्म की नैतिक असत्यताओं का उल्लेख किया। प्लेटो की तरह हीगल भी राजनीतिक दर्शन के इतिहास के एक बड़े पद्धति निर्माता थे। जर्मनी की आदर्शवादी परम्परा का वह काण्ट के बाद सर्वाधिक महान् प्रतिनिधि माना जाता है।

1793 ई. में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उसने विभिन्न शैक्षणिक पदों पर कार्य किया। न्यूरेम्बर्ग के एक स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर रहे और उस पद पर रहते हुए उसने कठिन परिश्रम करके अपने ग्रन्थ 'Science of Logic' को पूर्ण किया। इस ग्रन्थ के प्रकाशन के साथ ही उसकी प्रसिद्धि चारों और फैल गई। फलस्वरूप 1816 ई. में उसकी हीडलबर्ग विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति हो गई। 1817 ई. में उसने अपना प्रसिद्ध एवं विशाल ग्रन्थ 'Encyclopaedia of the Philosophical Science' लिखा जिसने उसकी ख्याति को और बढ़ा दिया। फलतः उसे विश्व प्रसिद्ध बर्लिन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर पद पर नियुक्ति मिली इस स्थिति में उसने बहुत प्रतिष्ठित और ख्यातिपूर्ण दार्शनिक जीवन व्यतीत किया बाद में वह विश्वविद्यालय का प्रधान बना गया।

राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में हीगल का मुख्य योगदान उसके इतिहास दर्शन, नागरिक समाज और राज्य तथा स्वतन्त्रता की संकल्पनाओं के क्षेत्र में है। उसकी रचनाओं में राजनीतिक आदर्शवाद की चरम परिणति सहज ही देखी जा सकती है। अपने ग्रन्थों Philosophy of Right और Philosophy of History के आधार पर उसने एशिया के निरंकुश राजतन्त्र का दार्शनिक आधार पर उग्र समर्थन किया। निरंकुश राजतन्त्र के इस

गुणगान के फलस्वरूप वह सरकारी दार्शनिक के रूप में जाना जाने लगा। सन् 1831 में 61 वर्ष बाद उनका आकस्मिक देहावसान हो गया।

जार्ज विल्हेल्म फ्रेड्रिक हीगल के महत्वपूर्ण कथन

मनुष्य का सारा मूल्य और महत्त्व उसकी समूची आध्यात्मिक सत्ता केवल राज्य में ही सम्भव है।

राज्य पृथ्वी पर परमेश्वर की अवतारण है। यह पृथ्वी पर विद्यमान एक दैवीय विचार है।

वास्तविक व्यक्तित्व रखने वाली सत्ता एक विश्वात्मा की अभिव्यक्ति है।

इतिहास में राज्य ही व्यक्ति है और आत्मकथा में जो स्थान व्यक्ति का होता है इतिहास में वही स्थान राज्य का है।

विवेकशीलता ही वास्तविकता है और वास्तविकता सदैव विवेकपूर्ण होती है।

राज्य निरंकुश, सर्वशक्तिमान और अभ्रान्त है। राज्य तो पृथ्वी पर परमेश्वर का अवतार है।

वह पृथ्वी पर अस्तित्वमान एक दैवीय विचार है।

राज्य आध्यात्मिक जगत और भौतिक जगत दोनों का केन्द्र माना जाता है।

राज्य व्यक्ति से उच्चतर है क्योंकि यह व्यक्ति के विशुद्ध और सार्वभौमिक तत्त्व का साकार रूप है जिससे व्यक्ति का अस्थिर रूप निकाल दिया गया है।

राज्य एक दैवीय संस्था है।

महत्वपूर्ण पुस्तकें

Philosophy of Law or Philosophy of Right
Philosophy of History
Science of Logic
The Phenomenology of Spirit
Encyclopaedia of Philosophical Sciences
Constitution of Germany

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