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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2746
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 1
एपिक्यूरियन : दार्शनिक एपिक्यूरस
(Epicurean : Philosopher Epicurus)

एपिक्यूरियन सम्प्रदाय को जन्म देने वाले एपिक्यूरस हैं। इनका जन्म ई० पू० 342 में सेंमॉस में हुआ। ई० पू० 306 में एपिक्यूरस ने अपने सम्प्रदाय की स्थापना की। उनका गृह-उद्यान ही इस सम्प्रदाय का दर्शन पीठ था। इसीलिये इस सम्प्रदाय के दार्शनिकों को उद्यान के दार्शनिक कहते हैं। यह सम्प्रदाय प्रायः 600 वर्ष तक चलता रहा। इस सम्प्रदाय के प्रसिद्ध दर्शनिकों के नाम हैं-हर्मेशस, पॉलिसट्रेटस, डायनिसियस, अपोलोडोरस, फीड्स एवं ल्यूक्रेटियस केरस आदि।

एपिक्यूरस के अनुसार - सुखमय जीवन व्यतीत करना ही जीवन का उद्देश्य है। इनके अनुसार सुख ही परम शुभ है तथा दुःख ही अशुभ है। नैतिकता का आधार सुख प्राप्ति है जो कार्य जितना ही सुखप्रद है उतना ही वह नैतिक भी है। सद्गुण का स्वतः कोई मूल्य नहीं, उसका . मूल्य इसलिये है कि वह सुखोत्पत्ति का साधन है, परन्तु एपिक्यूरस भौतिक दुःख को नहीं, वरन् आध्यामिक सुख को जीवन का लक्ष्य मानते हैं।

एपिक्यूरस ने डिमॉक्रिटस के समान भौतिक यन्त्रवादी दर्शन पर अपने नीतिशास्त्र को स्थापित किया। इनके अनुसार संसार की प्रत्येक घटना यान्त्रिक है, जगत का कोई प्रयोजन नहीं, आत्मा परमाणु द्वारा निर्मित है।

एपिक्यूरस के दार्शनिक विचारों को हम दो प्रमुख भागों में विभाजित कर सकते हैं-

(1) ज्ञान सिद्धान्त - एपिक्यूरस के दर्शन में दार्शनिक ज्ञान को शीर्ष ज्ञान माना गया है। इसका कारण यह है कि दर्शनशास्त्र में ही हम धर्म तथा सद्गुण के विषय में विचार करते हैं। ज्ञान की उत्पत्ति तथा इसकी प्रामाणिकता दोनों संवेदनाजन्य हैं।

(2) नीति सिद्धान्त - एपिक्यूरस के अनुसार सुख प्राप्ति और दुःख परिहार ही मानव के कर्तव्य का मूल है। हम कोई कार्य इसलिए करते हैं कि हमें सुख मिले और दुःख न मिले। अतः सुख का भाव और दुःख का अभाव ही हमारे कर्म के प्रेरक तत्व हैं।

(क) संसार के सभी मुनष्य स्वभाव से ही सुख चाहते हैं तथा दुःख नहीं चाहते। अतः और दुःख का विचार ही मूल प्रेरक तत्व है। यही सुखवाद है।

(ख) यद्यपि सुख और दुःख की भावना से ही हम प्रेरित होकर कोई कार्य करते हैं; परन्तु हमारा लक्ष्य केवल वर्तमान सुख का उपभोग ही नहीं होता।

(ग) एपिक्यूरस का नैतिक सुखवाद विवेकमूलक है।

(घ) एपिक्यूरस का नैतिक सुखवाद व्यक्ति और समाज दोनों के सुख को लक्ष्य मानता है।

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