प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- "पाण्ड्यों का राज्य एक प्राचीनतम राज्य था।' इस कथन पर प्रकाश डालिए।
"पाण्ड्य राज्य एक प्राचीन राज्य था।' सिद्ध कीजिए ।
अथवा
पाण्ड्य राज्य एक प्राचीन राज्य था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पाण्ड्य राज्य : एक प्राचीन राज्य के रूप में
सभी इतिहासकारों का कहना है कि पाण्ड्य राज्य दक्षिण भारत का एक प्राचीनतम् राज्य था। इसकी उत्पत्ति के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। रामायण में पाण्ड्य राज्य का वर्णन है। साथ ही महाभारत में भी इस राज्य का उल्लेख देखा जाता है। बौद्ध धर्म के महावंश में भी इस राज्य का वर्णन है। अशोक महान के अभिलेखों में भी इस राज्य के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है "चोडा पाण्डय सतिपुत्रया"। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में इस राज्य का नाम देखने को मिलता है। इन सबके आधार पर यह राज्य प्राचीनतम राज्य अवश्य है लेकिन इसके राजनैतिक इतिहास की घटनाएँ लुप्त रूप में देखी जाती हैं। समय के बदलाव ने पाण्ड्य राज्य के राजनैतिक इतिहास को इस तरह से मिटाकर रख दिया है कि उनमें से किसी भी घटना का पता तक नहीं चलता है। यहाँ साहित्य में पाण्ड्य शासक 'नेडियोन' का नाम भी उल्लेखनीय है। नेडियोन की राजधानी मदुरा थी। इसके बाद दूसरे पाण्ड्य नरेश का नाम पलशोले था। उसके बाद नेडुजेलियन इस राजगद्दी का स्वामी बना। संगम साहित्य से यह ज्ञात होता है कि लगभग 210 ई. के प्रारम्भ में पाण्ड्य नरेश नेडूजेलियन शासन करता था। वह अनेक गुणों के साथ-साथ कलाप्रेमी एवं साहित्य का संरक्षक भी था। संगम साहित्य में इस शासक के चरित्र के अनेक गुणों का पता चलती है। इसके बाद का इतिहास पता नहीं चलता है। एक इतिहास के विद्वान के शब्दों में तलैवलंगानम केनेडुजेलियन के उपरान्त पाण्ड्यों का राजनीतिक इतिहास गायब हो जाता है, लेकिन उनके नामों का वर्णन कहीं-कहीं मिलता है। ऐसा लगता है कि पल्लव राजवंश द्वारा राजनीतिक महत्व प्राप्त कर लिये जाने से उनका महत्व और राजनीतिक अस्तित्व समाप्त हो गया। आन्ध्र साम्राज्य की बढ़ोत्तरी से भी उन्हें क्षति पहुँची होगी। कलभ्रों के आक्रमणों के फलस्वरूप उनको भारी क्षति उठानी पड़ी। छठी शताब्दी ई. के अन्तिम वर्षों में पाण्ड्यों ने बर्बर और क्रूर कलाओं से पाण्ड्य राज्य को स्वतंत्र करा लिया। सातवीं शताब्दी ई. से हम पाण्डयों को एक राजनैतिक शक्ति के रूप में अव्यवस्थित देखते हैं।
वह अत्यन्त भ्रामक है तथा उसके आधार पर हम क्रमबद्ध विवरण नहीं जान सकते। इस वंश का सबसे मुख्य एवं शक्तिशाली राजा नेडुजेलियम लगभग 210 ई में था। इस प्रकार से पाण्ड्य राज्य दक्षिण भारतीय क्षेत्र का एक प्राचीन राज्य स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है।
पाण्ड्य राज्य - संगम साहित्य उस प्राचीन युग से कहीं अधिक विशाल साहित्य का मात्र एक अंश है। दसवी सदी के आरम्भ में एक शिलालेख में शुरू के पाण्ड्य राजाओं की अनेक उपलब्धियों में तमिल भाषा में महाभारत का अनुवाद तथा मदुरा में एक संगम की स्थापना का भी उल्लेख है। यह अनुवाद आज अप्राप्य है। यद्यपि नीचे जिन आठ संग्रह ग्रन्थों के नाम हैं उनमें छः के प्रारम्भ में जो स्त्रोत्र है वे 'भारतम के गायक पैरुन्देवकर द्वारा रचित हैं। ये सभी आठ ग्रन्थ निम्न है-
1. नाट्रिणे
2. कुरंदोगे
3 एंगुरूनुरु
4 पदिट्रपत्तु
5. परियाडल
6 कलित्तोगे
7. अहनानुरु
8. पुरनानुरु
पेरून्देबनार नामक एक व्यक्ति द्वारा रचित तमिल 'भारतम' के कुछ अंश प्राप्त होते हैं किन्तु यह लेखक पल्लव राजा नन्दिवर्मन तृतीय (नवीं सदी) का समकालीन था और सम्भवतः संगमकालीन संग्रह ग्रन्थों में वर्णित इसी के नाम के लेखक से भिन्न व्यक्ति है।
मदुरा में राजकीय संरक्षण में तमिल कवियों का एक संगम कुछ समय तक अच्छी तरह चलता रहा, यह बात सही हो सकती है। किन्तु इसका सबसे प्राचीन वृत्तान्त जो 'इड़ईयनार अगप्पोरूल, पर लिखित नाटय (750 ई.) की भूमिका में मिलती है, उपाख्यानों से ढँका हुआ है। यह तीन संगमों का उल्लेख करता है जो लम्बे अन्तरालों के साथ कुल मिलाकर बहुत वर्षों तक रहें। इस अवधि में 8598 कवि जिनमें सम्प्रदाय के कुछ देवता भी शामिल है तथा उनके संरक्षण के रुप में 197 पाण्ड्य राजाओं के नाम गिनाए गए है। कदुन्गोन तथा उग्रत्पेरुवल्लुदी जैसे कुछ कवियों तथा राजाओं के नाम शिलालेखों तथा अन्य विश्वसनीय अभिलेखों में भी मिलते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि बहुत सारी कल्पनाओं के साथ कुछ तथ्य भी मिल गए हैं जिनसे कुछ भी महत्वपूर्ण निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता, कविताओं के अन्त में दी गई टिप्पणियों में बताए गए राजाओं, सरदारों तथा कवियों की समसामयिकता का सावधानी के साथ अध्ययन करने से संकेत मिलता है कि यह सम्पूर्ण साहित्य अधिक से अधिक चार या पाँच सतत पीढ़ियों दूसरे शब्दों में 120 या 150 वर्ष की घटनाओं कों प्रतिबिम्बित करता है। उसके आधार पर हम सिर्फ चेर वंश के शासकों की अविच्छिन्न वंशावली तैयार कर सकते हैं।
पाण्ड्य राज्य भारतीय प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तथा दक्षिण पूर्वी भाग में था। इसमें आधुनिक तमिलनाडु के तिन्नवेल्ली, रामनद और मदुरा जिले सम्मिलित हैं। पाण्ड्य शासकों की राजधानी मदुरा थी इनकी प्राचीनतम राजधानी कोरकई थी तथा इनका राजचिन्ह मछली था। पाण्ड्य वंश का प्रथम शासक नेडियोन था। नेडियोन का अर्थ है लम्बेकद वाला। नेडियोन ने पहरूली नदी को जन्म दिया अर्थात् अस्तित्व प्रदान किया था। नेडियोन ने ही सर्वप्रथम समुद्र पूजा आरम्भ करवाई थी परन्तु इसकी ऐतिहासिकता संदिग्ध है।
इसके पश्चात् पत्शालइमुदुकुडुमी पाण्ड्य वंश का प्रथम ऐतिहासिक शासक माना जाता है। पलशालै का अर्थ है अनेक यज्ञशालाएं बनाने वाला। पलशालै ने अनेक यज्ञ भी किए थें। पाण्ड्य वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक नेडजेलियन था। इसके समय का सबसे प्रसिद्ध युद्ध तलैयालंगानम का युद्ध हुआ था। नेडुजेलियन इस युद्ध को जीतने के कारण बहुत प्रसिद्ध हुआ था। इस युद्ध में उसने चोल तथा चेर शासकों एवं अन्य पाँच मित्र सामन्तों के गुट को पराजित किया। इसी युद्ध में उसने चेर शासक शेय (हाथी की आँख वाला) को बन्दी बनाकर पाण्ड्य राज्य के बन्दीगृह में डाल दिया। इस विजय के पश्चात् उसने तलैयालंगानम् की उपाधि धारण की। प्रसिद्ध ग्रन्थ 'मदुरै - कांचि में नेडुजेलियन के कुशल शासन का विवरण प्राप्त होता है। नल्लिवकोडन संगम युग का अन्तिम ज्ञात पाण्ड्य शासक था।
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