प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- गंग वंश की उत्पत्ति बताते हुए इस वंश के प्रमुख शासकों एवं उनकी उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।+
अथवा
गंग कौन थे? इस वंश के प्रारम्भिक शासकों का क्रमिक इतिहास बताइए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. गंग वंश की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं?
अथवा
गंगों के विषय में आप क्या जानते है?
2. पूर्वी गंग वंश पर टिप्पणी लिखिए।
3. गंग कौन थे?
4. गंग नरेश कोंकणिवर्मन के विषय में बताइए।
5. गंग नरेश दुर्विनीत की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
6. गंग शासक श्रीपुरुष का परिचय दीजिए।
7. गंगों का संक्षिप्त इतिहास बताइए।
8. गंग राज्य के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
गंग राजवंश
गंगों का मूल इतिहास लगभग अज्ञात है। उन्हें प्रमुख रूप से गंगा नदी से सम्बन्धित माना जाता है। इनका राज्य आधुनिक मैसूर के दक्षिण में स्थित था । इस स्थान को गंगवाड़ी कहा जाता था। यह राज्य कदम्ब एवं पल्लव राज्यों के मध्य में स्थित था। गंग राजवंश को सर्वप्रथम राजनीतिक महत्व प्रदान करने का श्रेय माधव प्रथम एवं कोंगणिवर्मन् (दिदिग) को दिया जाता है जिसने ईसा की चौथी शताब्दी में में इसे स्वतन्त्र राज्य का दर्जा दिलाया था। इस राज्य की प्रारम्भिक राजधानी कुवलाल (कोलार) थी जो बाद में तलकाड हो गई।
गंग सम्भवतः यदुवंशी क्षत्रिय थे। एक अनुश्रुति के अनुसार गंगों को श्रीकृष्ण का वंशज बताया गया है। अभिलेखों में इन्हें जाह्नक (गंगा का पुत्र) तथा काण्वायन गोत्रीय ब्राह्मण बताया गया है। इस प्रकार गंगों की उत्पत्ति एवं जाति आदि विषयों पर एकरूपता का अभाव है।
कोंकणिवर्मन (325-350 ई.) - गंग अभिलेखों के अनुसार इस वंश का प्रथम शासक कोंकणिवर्मन् था। उसे जाह्नवेय कुल (गंगा का वंश) तथा काण्वायन गोत्र का कहा गया है। उसके शासन काल की घटनाओं के विषय में निश्चित रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं होता, परन्तु अनुश्रुतियों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उसने कई युद्धों में ख्याति प्राप्त की तथा अपने लिये एक समृद्धिशाली राज्य का निर्माण किया। वह जैन धर्मावलम्बी था तथा उसे जैन आचार्य नन्दि का आशीर्वाद प्राप्त था। उसने 'धर्ममहाराजाधिराज' की उपाधि धारण की थी जो उसकी स्वतंत्र स्थिति का सूचक है। उसने सम्भवतः 325-350 ई. तक कोलार में शासन किया।
माधव प्रथम ( 350-375 ई.) - कोंकणिवर्मन् के बाद उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी महाराजाधिराज माधव प्रथम गंग राजगद्दी पर बैठा। वह एक विद्वान राजा था जिसे दत्तकसूत्र पर टीका- लिखने का श्रेय दिया गया। वह सभी शास्त्रों का ज्ञाता था। उसके शासन काल का शासनकोट ताम्रपत्र उपलब्ध हुआ है, जिसमें उसके समय की कुछ सूचनाएँ मिलती हैं। उसका शासनकाल 375 ई. तक बना रहा।
हरिवर्मन (375-400 ई.) - माधव प्रथम के बाद हरिवर्मन गंग वंश का उत्तराधिकारी हुआ। वह योद्धा होने के साथ-साथ शास्त्र इतिहास एवं पुराणों का भी ज्ञाता था। उसके अन्य नाम कृष्णवर्मन् एवं आर्यवर्मन् थे। उसने 400 ई. तक गंग साम्राज्य पर शासन किया।
माधव द्वितीय (400-420 ई.) - हरिवर्मन के पश्चात् उसका पुत्र माधव द्वितीय गंग वंश की गददी पर बैठा। उसका उपनाम सिंहवर्मन भी मिलता है। उसके राज्याभिषेक के समय पल्लव नरेश स्कन्दवर्मन् भी उपस्थित हुआ था जिसने माधव द्वितीय अर्थात् सिंहवर्मन को राजा बनाया था। माधव द्वितीय ने गंग वंश पर 420 ई. तक शासन किया।
विष्णुगोप ( 420-440 ई.) - विष्णुगोप माधव द्वितीय का छोटा भाई तथा उत्तराधिकारी था जो 420 ई. में गंग वंश की गद्दी पर बैठा । उसका शासनकाल 440 ई. तक बना रहा।
माधव तृतीय ( 440-469 ई.) - माधव तृतीय विष्णुगोप का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसने 469 ई. तक शासन किया। माधव तृतीय के समय में गंगों एवं कदम्बों में गम्भीर संघर्ष शुरू हो गया था तथा इसका लाभ पल्लव शासक उठाने लगे थे। अन्त में कदम्ब नरेश कृष्णवर्मन प्रथम ने माधव तृतीय के साथ अपनी बहन का विवाह कर दोनों राजवंशों के आपसी वैमनस्य को समाप्त कर दिया।
अविनीत (469-529 ई.) - माधव तृतीय का पुत्र अविनीत 469 ई. में गंग वंश का उत्तराधिकारी हुआ। वह बचपन में ही राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया गया था। उसने लगभग 60 वर्ष की दीर्घावधि तक शासन किया। अपने शासनकाल में उसने विद्रोही सामन्तों को परास्त कर गंग साम्राज्य को सुदृढ़ किया।
दुर्विनीत (529-579 ई.) - अविनीत के बाद गंग राजसिंहासन पर दुर्विनीत आसीन हुआ। उसने अपने वंश को पल्लवों की अधीनता से मुक्त किया। उसने पुन्नाड (दक्षिणी मैसूर) तथा कोंगू प्रदेश की विजय की। उसका चालुक्यों के साथ मैत्री सम्बन्ध था। दुर्विनीत वीर एवं साहसी होने के साथ-साथ महान रचनाकार भी था। 'बृहत्कथा' का 'बड्डकथा' के नाम से अनुवाद उसने किया तथा महाकवि भारवि की कृति 'किरातार्जुनीयम्' पर भाष्य भी तैयार किया। उसने गंग साम्राज्य पर 579 ई. तक शासन किया।
मुष्कर (579-604 ई.) - दुर्विनीत के बाद उसका पुत्र मुष्कर उत्तराधिकारी हुआ। उसकी उपलब्धियों के विषय में बहुत ही कम जानकारी प्राप्त होती है।
पोलवीर (604-629 ई.) - पोलवीर मुष्कर का भाई था जो पल्लव नरेश काडुवेट्टी तथा वातापी के चालुक्य नरेश बल्लपरस की सहायता से 604 ई. में गंग वंश की गद्दी पर बैठा। पोलवीर का शासन 629 ई. तक बना रहा।
विक्रम (629-654 ई.) - विक्रम मुष्कर का पुत्र था जो अपने चाचा पोलवीर के बाद राजसिंहासन पर बैठा। उसने गंग वंश पर 654 ई. तक शासन किया।
भूविक्रम (654-679 ई.) - विक्रम के उपरान्त उसका पुत्र भूविक्रम राजगद्दी पर बैठा। उसने चालुक्य नरेश विक्रमादित्य प्रथम के साथ पल्लव नरेश परमेश्वरवर्मन के विरुद्ध संघर्ष किया था।
शिवमार प्रथम (679-725 ई.) - शिवमार भूविक्रम का अनुज तथा उत्तराधिकारी था। उसके शासनकाल का हल्लीमेरी दानपत्र उपलब्ध है। उसने 'अवनिमहेन्द्र', 'स्थिरविनीत', 'शिष्टप्रिय' आदि उपाधियों को धारण किया था।
श्रीपुरुष (725-788 ई.) - श्रीपुरुष शिवमार प्रथम का पौत्र एवं उसका उत्तराधिकारी था। वह इस वंश का एक महत्वपूर्ण शासक हुआ। उसके समय में कोंगू प्रदेश पर पाण्ड्यों का अधिकार हो गया तथा वह पाण्ड्यों की अधीनता में शासन करने लगा। उसने अपनी राजधानी मान्यपुर में स्थानान्तरित कर दी। श्रीपुरुष का शासन समृद्धि का काल था। नोलम्बवाडि के लोग उसकी अधीनता मानते थे।
गंग राज्य का पतन - श्रीपुरुष के बाद गंग राज्य का पतन होना प्रारम्भ हो गया। उसके उत्तराधिकारी शिवमार द्वितीय को राष्ट्रकूट ध्रुव तथा गोविन्द तृतीय ने पराजित किया और बन्दी बनाया। अमोघवर्ष के काल में नीतिमार्ग (837-870 ई.) के नेतृत्व में गंगों ने पुनः अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी। कृष्णं तृतीय (839-967 ई.) ने पुनः गंग राज्य पर विजय की तथा वहाँ अपने साले भुतुग द्वितीय को शासक बना दिया। इसके बाद गंगवंशी शासक पाण्ड्यों तथा चोलों से लड़ते रहे। चोल शासक राजराज प्रथम ने 1004 ई. में गगों को जीता तथा उन्होंने चोलों की अधीनता में रहना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार क्रमशः गंग राज्य की समाप्ति हो गई।
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