प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- चोल-चालुक्य संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
अथवा
चोल-चालुक्य सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
दक्षिण भारत के इतिहास में चोलों और चालुक्यों का संघर्ष अपना विशेष स्थान रखता है। चालुक्यों की निम्नलिखित तीन शाखाएँ थीं-
(i) बादामी (वातापी) के चालुक्य या पूर्वकालीन पश्चिमी चालुक्य,
(ii) कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्य, और
(iii) वेंगी के पूर्वी चालुक्य या पूर्वकालीन पश्चिमी चालुक्य।
इनमें से चोलों के प्रमुख युद्ध कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्यों से हुए लेकिन इनके साथ ही अन्य शाखाओं से भी चोलों के युद्ध हुए।
राजराज और चालुक्य - राजराज चोल नामक राजा लगभग 985 ई. में चोल सिंहासन पर बैठा। राजराज चोल का प्रारम्भिक नाम अरुमोलिवर्मन था। सिंहासन पर बैठने के बाद उसने राजराज की उपाधि धारण की। राजराज चोल ने चोल वंश के खोये हुए वैभव को दोबारा प्राप्त करने के लिए प्रयास किया था। उसके शासनकाल में दो प्रकार की शाखाएँ कार्यरत थीं। पहली शाखा को पश्चिमी शाखा के नाम से जाना जाता था। पहली शाखा का राज्य नर्मदा और तुंगभद्रा के बीच था। इसकी राजधानी मान्यखेट थी। इस शाखा में तैल द्वितीय का पुत्र सत्याश्रय राज्य कर रहा था। दूसरी शाखा को पूर्वी शाखा के नाम से जाना जाता है। इसकी राजधानी वेंगी थी। लोगों का मानना है कि तेलगू जटाचोड भीम ने जब वेंगी के राजा दानार्णव पर आक्रमण करके उसे मार डाला तो दानार्णव के दोनों पुत्र चोल नरेश राजराज की शरण में आये। राजराज ने दोनों को शरण दी। उसने अपनी पुत्री कुन्दवाँ देवी का विवाह दानार्णव के छोटे पुत्र के साथ कर दिया। राजराज ने दानार्णव के बड़े पुत्र शक्तिवर्मन प्रथम को यह विश्वास दिलाया कि वह उसे अपने पिता का राज्य वापस दिलवा देगा। अपने इस वचन को पूरा करने के लिए उसने वेंगी पर हमला किया और जटाचोड भीम को हरा दिया तथा शक्तिवर्मन को उसके पिता का राज्य हासिल करवा दिया। शक्तिवर्मन वहाँ का राजा बना और वेंगी की चालुक्य शाखा पर चोलों का आधिपत्य हो गया।
चालुक्यों की पश्चिमी शाखा पर सत्याश्रय नामक प्रतिभाशाली शासक का शासन था। उसके लिए यह असह्य था कि चोलों का प्रभाव चालुक्यों की पूर्वी शाखा पर हो जाये। परिणामस्वरूप 1006 ई. में सत्याश्रय ने वेंगी पर हमला किया और वहाँ के कुछ भाग को अपने अधिकार में कर लिया। राजराज चोल के लिए यह असह्य था। उसने पश्चिम की चालुक्य शाखा से लोहा लेने का निश्चय किया। राजराज ने अपने पुत्र राजेन्द्र को पश्चिम की चालुक्य शाखा के राज्य पर आक्रमण करने के लिये भेजा। राजेन्द्र चोल ने चालुक्य राज्य को नष्ट कर दिया और फिर राजधानी मान्यखेट पहुँचा। मान्यखेट में राजेन्द्र चोल की सेना ने बहुत लूटमार की। यहाँ तक कि स्त्री, बच्चों और ब्राह्मणों तक को नहीं छोड़ा। इस प्रकार सत्याश्रय ने विवश होकर राजधानी छोड़ दी।
श्री नीलकान्त शास्त्री के अनुसार - "इस सिद्धान्त का पालन करते हुए " कि आक्रमण सुरक्षा का श्रेष्ठतम उपाय है, राजराज ने अपने पुत्र राजेन्द्र को एक शक्तिशाली सेना के साथ पश्चिमी चालुक्यों पर आक्रमण के लिए (1007 ई. में) भेजा। राजेन्द्र ने बीजापुर जिले के दोनर नामक स्थान तक कूच किया और चालुक्य अभिलेख के अनुसार समस्त देश की स्त्रियों, बच्चों और ब्राह्मणों को मारते हुए रौंद डाला।"
चोल शासक राजेन्द्र प्रथम और चालुक्य - सन् 1014 ई. में राजराज चोल ने अपना शरीर त्याग दिया। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र राजेन्द्र चोल ने कार्यभार संभाला और सिंहासन पर बैठा। राजेन्द्र चोल अपने पिता की तरह ही एक साम्राज्यवादी एवं महत्वाकाँक्षी शासक था। इस समय पश्चिमी चालुक्य शाखा पर राजा जयसिंह द्वितीय शासन कर रहा था। जयसिंह राजेन्द्र प्रथम का घोर विरोधी था। जयसिंह और राजेन्द्र प्रथम के बीच वेंगी की चालुक्य शाखा के उत्तराधिकारी के प्रश्न को लेकर युद्ध शुरू हो गया। शक्तिवर्मन चालुक्य की मृत्यु के बाद वेंगी के चालुक्य शाखा के सिंहासन पर विक्रमादित्य बैठा। विक्रमादित्य ने केवल 7 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद उसके दोनों पुत्रों विजयादित्य चालुक्य और राजराज चालुक्य के बीच वेंगी के सिंहासन को लेकर युद्ध हुआ। जयसिंह द्वितीय ने विजयादित्य को वेंगी के सिंहासन पर बैठाना चाहा लेकिन राजेन्द्र प्रथम राजराज चोल को सिंहासन पर बैठाना चाहता था। इस प्रकार राजेन्द्र चोल और जयसिंह के बीच युद्ध हुआ। यह युद्ध 3-4 वर्ष तक लगातार चलता रहा। अन्त में राजेन्द्र चोल ने जयसिंह और विक्रमादित्य को पराजित कर दिया और 1022 ई. में राजराज को वेंगी के सिंहासन पर बैठा दिया। 1031 ई. में जयसिंह और विजयादित्य ने वेंगी का सिंहासन छीन लिया और जयसिंह द्वितीय विष्णु विजयादित्य सप्तम के नाम से सिंहासन पर बैठा लेकिन वह ज्यादा दिन तक न ठहर सका। उसने केवल 4 वर्ष तक शासन किया। 1035 ई. में चोलों की 4 तक शासन के नाम से सहायता से राजराज ने पुनः वेंगी का सिंहासन अपने कब्जे में कर लिया। इस समय जयसिंह द्वितीय जीवित नहीं था और पश्चिमी चालुक्यों की शाखा का राजा सोमेश्वर प्रथम हो गया। सोमेश्वर प्रथम ने विजयादित्य का साथ दिया और वेंगी पर आक्रमण किया। राजेन्द्र प्रथम चोल ने राजराज की मदद की तथा उसकी सहायता के लिए एक सेना भेजी। यह युद्ध अभी समाप्त भी न हुआ था कि राजेन्द्र प्रथम परलोक सिधार गया और इस प्रकार राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में चोलों और चालुक्यों के बीच हुये युद्ध का कोई निश्चित परिणाम नहीं निकल सका।
चोल नरेश राजाधिराज प्रथम का चालुक्यों से संघर्ष - राजेन्द्र प्रथम का पुत्र राजाधिराज प्रथम था। राजेन्द्र प्रथम की मृत्यु के बाद राजाधिराज प्रथम 1044 ई. में सिंहासन पर बैठा। उसको अभी शासन-कार्य का पर्याप्त अनुभव नहीं था। उसने पश्चिमी चालुक्यों पर आक्रमण किया। उस समय सोमेश्वर चालुक्यों का राजा था। सर्वप्रथम मान्यखेट के युद्ध में उसने चालुक्य नरेश सोमेश्वर के राजप्रासाद को नष्ट किया और फिर पुण्डूर के युद्ध में चालुक्यों को हराया। अन्त में इसने चालुक्यों की राजधानी कल्याणी पर भी आक्रमण किया तथा उसे अपने अधिकार में कर लिया। राजाधिराज प्रथम ने अपना वीराभिषेक करके 'वीर राजेन्द्र' की पदवी धारण की। इस प्रकार पूर्वी चालुक्य शाखा का राजा राजराज पूर्णरूप से राजाधिराज के प्रभाव में आ गया।
सोमेश्वर प्रथम हार जाने के बाद भी हताश नहीं हुआ और 1051 ई. के लगभग उसने पुनः चोल सेना को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया और पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण करके वहाँ के राजा राजाधिराज को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया। फलस्वरूप 1052 ई. में चोलों और चालुक्यों में भयंकर संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में राजाधिराज मारा गया।
श्री नीलकान्त शास्त्री के अनुसार - "राजाधिराज ने अपने छोटे भाई युवराज राजेन्द्र द्वितीय की सहायता से सोमेश्वर (1053 ई.-1054 ई.) के विरुद्ध एक और अभियान का नेतृत्व किया और कोप्पम् (कोपवल) कृष्णा नदी के तट पर प्राकृतिक शक्ति के महान स्थान पर युद्ध हुआ। उसका कड़ा मुकाबला हुआ और राजाधिराज घायल करके मारा गया।'
यद्यपि राजाधिराज मार डाला गया लेकिन इसके भाई राजेन्द्र द्वितीय ने युद्ध बन्द नहीं किया। अन्त में चालुक्य सोमेश्वर की हार हुई और राजेन्द्र चोल ने उससे बहुत से हाथी, घोड़े और ऊँट छीन लिये। अनेक चालुक्य सेनापतियों, रानियों आदि को कैद कर लिया गया। इस विजय के उपलक्ष्य में राजेन्द्र द्वितीय ने कोलापुर में अपना जय स्तम्भ स्थापित किया।
चोल नरेश द्वितीय का चालुक्य से संघर्ष - राजेन्द्र द्वितीय का शासनकाल 1052 ई. से 1064 ई. तक था। 1061 ई. में चालुक्यों की पूर्वी शाखा के राजा राजराज ने दम तोड़ दिया। कल्याणी के चालुक्य शाखा के राजा सोमेश्वर ने विजयादित्य सप्तम के पुत्र शक्तिवर्मन द्वितीय को वेंगी के सिंहासन पर बैठा दिया। इसके अतिरिक्त सोमेश्वर ने एक सेना चोल राज्य के गंगवाड़ी प्रदेश पर आक्रमण करने के लिए भेजी जिससे राजेन्द्र द्वितीय और सोमेश्वर में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में चोलों ने चालुक्यों को पराजित किया और चामुण्डराज तथा शक्तिवर्मन को मार डाला। गंगवाड़ी कुण्डल संगम नामक स्थान पर यह युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी चालुक्य बुरी तरह पराजित हुए।
चोल नरेश वीर राजेन्द्र और चालुक्य - 1064 ई. में वीर राजेन्द्र चोल ने राजसिंहासन ग्रहण किया। 1066 ई. में तुंगभद्रा नदी के किनारे चोलों और चालुक्यों के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में चोलों ने चालुक्यों को पराजित किया। चोलों और चालुक्यों के बीच एक दूसरा युद्ध कुण्डल - संगम नामक स्थान पर भी हुआ। इसमें चोल नरेश वीर राजेन्द्र ने विजय प्राप्त की और इस विजय के उपलक्ष्य में तुंगभद्रा नदी के किनारे उसने अपना विजय स्तम्भ स्थापित किया।
श्री नीलकान्त शास्त्री के अनुसार - "पश्चिम में कदाचित तुंगभद्रा नदी के किनारे सोमेश्वर की सेनाएँ अत्यधिक नुकसान के साथ 1066 ई. में पराजित हुईं लेकिन उसने शीघ्र ही अपनी सेनाओं को पुनर्गठित कर लिया और वीर राजेन्द्र को कुण्डल संगम नामक स्थान पर दूसरे युद्ध के लिए चुनौती देते हुए सन्देश भेजा। वीर राजेन्द्र ने चालुक्य सेना पर आक्रमण किया, उसे बुरी तरह पराजित किया और तुंगभद्रा नदी के किनारे उसने अपना विजय स्तम्भ स्थापित किया।'
इसके बाद वेजवाड़ा के पास चोलों और चालुक्यों में दोबारा युद्ध हुआ जिसमें चोलों ने हीं चालुक्यों को फिर पराजित किया। इसके बाद दोनों में कलिंग युद्ध प्रारम्भ हुआ। लेकिन इस बीच चालुक्य नरेश सोमेश्वर ने आहत्महत्या कर ली।
कल्याणी के चालुक्य - सोमेश्वर नरेश की आत्महत्या के बाद उसके बड़े पुत्र सोमेश्वर द्वितीय ने राजसिंहासन के कार्यों को भली-भाँति निभाया। उसे भी वीर राजेन्द्र से युद्ध करना पड़ा। जब वह शासन कर रहा था तब वीर राजेन्द्र ने कम्पिलि पर आक्रमण किया। ऐसी संकट की स्थिति में सोमेश्वर द्वितीय के छोटे भाई विक्रमादित्य ने उसे धोखा दिया। वह वीर राजेन्द्र से जा मिला। वीर राजेन्द्र बहुत ही चतुर था। इस कारण उसने विक्रमादित्य का स्वागत किया और उसे अपना दामाद बना लिया। इसलिए विक्रमादित्य चालुक्य साम्राज्य के दक्षिण भाग का सम्राट बन गया।
चोल नरेश अधिराजेन्द्र और चालुक्य - 1070 ई. में राजेन्द्र द्वितीय की मृत्यु हो गयी। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र अधिराजेन्द्र गद्दी पर बैठा। अधिराजेन्द्र चालुक्य राजा विक्रमादित्य का साला था। चोल सिंहासन के लिए राजेन्द्र द्वितीय जो पूर्वी चालुक्यों के राजा राजराज का प्रथम पुत्र था, हकदार था। क्योंकि उसकी माता चोल सम्राट राजराज प्रथम की पुत्री थी। वैसे राजा बनने का हक राजेन्द्र द्वितीय का था लेकिन अधिराजेन्द्र के पिता वीर राजेन्द्र ने उसे इस हक से वंचित कर दिया। इस कारण राजेन्द्र द्वितीय ने विद्रोह कर दिया और अधिराजेन्द्र को मार डाला और वेंगी की चालुक्य शाखा तथा चोल सिंहासन दोनों पर ही शासन जमा लिया।
कुलोतुंग प्रथम और चालुक्य - 1120 ई. में कुलोतुंग प्रथम ने अपना शरीर त्याग दिया। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र विक्रमचोल सिंहासन पर बैठा। उसके शासन के समय वेंगी पर चालुक्य राजा विक्रमादित्य षष्ठ्म राज्य कर रहा था। 1126 ई. में विक्रमादित्य की मृत्यु हो गयी तब उसका पुत्र सोमेश्वर राजा बना। विक्रम चोल ने सोमेश्वर से वेंगी का प्रदेश छीन लिया।
चोल नरेश कुलोतुंग द्वितीय और चालुक्य - 1135 ई. में कुलोतुंग द्वितीय चोल राजा बना । कुलोतुंग द्वितीय ने चालुक्यों के राजा सोमेश्वर तृतीय पर आक्रमण किया और उससे आन्ध्र प्रदेश छीन लिया लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ समय बाद सोमेश्वर तृतीय ने पुनः अपना राज्य ले लिया।
चोल-चालुक्य संघर्ष के अन्तिम चरण - कुलोतुंग द्वितीय के बाद चोल-चालुक्य संघर्ष निश्चित रूप से परिलक्षित नहीं होता। कुलोतुंग तृतीय की मृत्यु सन् 1150 ई. में हुई। 1150 ई. से 1156 ई. तक कल्याणी के चालुक्य शाखा में अनेक छोटे-छोटे राजा हुए लेकिन उनके और चोलों के युद्ध के विषय में कोई भी अभिलेख प्राप्त नहीं होता। 1157 ई. से 1181 ई. तक कल्याणी के चालुक्यों के राज्य पर कल्चुरियों का अधिकार रहा। 1184 ई. में जब सोमेश्वर चतुर्थ ने पुनः चालुक्य की नींव डाली तो चोलों का राजा कुलोतुंग तृतीय था। उसमें और सोमेश्वर चतुर्थ में युद्ध होने का वर्णन नहीं मिलता। 1190 ई. में सोमेश्वर चतुर्थ को होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय ने हराकर उससे अनेक प्रदेश छीन लिये। काकातीय नरेश रुद्र ने भी सोमेश्वर चतुर्थ के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया और इस प्रकार कल्याणी के चालुक्यों का राज्य समाप्त हो गया।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यद्यपि चालुक्यों के राज्य को समाप्त करने का यश कल्चुरियों, होयसलों और काकतीयों को है लेकिन चालुक्यों की शक्ति चोलों के युद्ध के साथ नष्ट होने लगी और चोलों को भी चालुक्यों से युद्ध के फलस्वरूप हानि उठानी पड़ी और बाद में चोल राज्य पाण्डयों के अधीन हो गया।
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