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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- चोल नरेश राजेन्द्र प्रथम के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी राजनीतिक गतिविधियों का उल्लेख कीजिए।

अथवा
चोल शासक राजेन्द्र प्रथम की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
राजेन्द्र प्रथम की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए। 

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. राजेन्द्र प्रथम के विषय में आप क्या जानते हैं?
2. चोल नरेश राजेन्द्र प्रथम के विषय में बताइए।
3. राजेन्द्र प्रथम की केरल व पाण्ड्य राज्यों की विजय का उल्लेख कीजिए।

अथवा
राजेन्द्र चोल कौन था?
4. राजेन्द्र प्रथम के पूर्वी भारत पर आक्रमण का उल्लेख कीजिए।
5. राजेन्द्र प्रथम की सिंहल (लंका) पर विजय का वर्णन कीजिए।
6. चोल नरेश राजेन्द्र प्रथम की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए। 

उत्तर-

चोल शासक राजेन्द्र प्रथम ( 1014-1044 ई.)

राजेन्द्र प्रथम राजराज प्रथम का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था जो अपने पिता की मृत्यु के बाद 1014 ई. में चोल राज्य की गद्दी पर बैठा। राजेन्द्र प्रथम अपने पिता की भाँति वीर, कूटनीतिज्ञ एवं साम्राज्य विस्तारक था जिसने अपने युवराज काल में ही राज्य संचालन का पूर्ण अनुभव प्राप्त कर लिया था। उसने उत्तराधिकार में प्राप्त चोल साम्राज्य की सीमा का विस्तार करके उसे तत्कालीन भारतीय राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली एवं वैभव सम्पन्न बना दिया। उसकी सैनिक उपलब्धियों की सूचना हमें तत्कालीन लेखों से प्राप्त होती है।

राजेन्द्र प्रथम की राजनीतिक उपलब्धियाँ

सिंहल (लंका) पर विजय - राजेन्द्र प्रथम के पिता राजराज प्रथम अपने शासन के दौरान सिंहल के कुछ ही प्रदेशों पर अधिकार कर सके थे। सम्पूर्ण सिंहल पर अधिकार करने की अभिलाषा से राजेन्द्र प्रथम ने सिंहल-विजय का कार्य पूरा किया। वहाँ का शासक महिन्द पंचम बन्दी बनाकर चोल राज्य भेज दिया गया जहाँ 12 वर्षों के बाद उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार सम्पूर्ण सिंहल पर राजेन्द्र प्रथम का अधिकार हो गया।

महावंश के विवरण से उपरोक्त विजय की पुष्टि होती है। इस विवरण के अनुसार "राजेन्द्र प्रथम ने लंका पर पूर्ण अधिकार करने के पश्चात् वहाँ के बौद्ध विहार को नष्ट कर दिया तथा सम्पूर्ण कोष अपने साथ उठा ले गया।"

केरल तथा पाण्ड्य राज्यों की विजय - राजेन्द्र प्रथम ने पाण्ड्य तथा केरल राज्यों पर विजय प्राप्त करके उन्हें एक अलग राज्य में परिणत कर दिया। इस विजय की पुष्टि तिरुवालंगाडु के ताम्रपत्राभिलेख से होती है। इसमें बताया गया है कि उसके सेनापति दण्डनाथ ने एक विशाल सेना के साथ पाण्ड्य राज्य पर आक्रमण कर वहाँ के शासक को बुरी तरह परास्त कर दिया। उसने अपने एक पुत्र को दोनों स्थानों का वायसराय बनाया तथा उसे 'चोलपाण्ड्य' की उपाधि प्रदान की।

चालुक्यों से युद्ध - राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में चालुक्यों की पश्चिमी शाखा का राजा जयसिंह द्वितीय था। वह चोलों का सबसे बड़ा प्रतिद्वन्द्वी था । पूर्वी चालुक्यों की शाखा के उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर जयसिंह द्वितीय और राजेन्द्र में संघर्ष हुआ। कहा जाता है कि शक्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के पश्चात् पूर्वी चालुक्य शाखा का राजा विमलादित्य हुआ परन्तु वह केवल सात वर्ष ही जीवित रहा। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्रों में सिंहासन के लिए ठन गई। चालुक्यों की पश्चिमी शाखा ने विजयादित्य को राजा बनाना चाहा परन्तु राजेन्द्र ने राजराज का पक्ष लिया, परिणामस्वरूप भयंकर युद्ध हुआ जो तीन-चार वर्ष तक चलता रहा। इस युद्ध में राजेन्द्र और राजराज की विजय हुई और 1022 ई. में राजराज वेंगी के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। पराजय के पश्चात् भी विजयादित्य हताश न हुआ और वह प्रयत्न करता रहा और 1031 ई. में जयसिंह द्वितीय की सहायता से वह राजराज को सिंहासन से हटाने में सफल हुआ और विष्णुवर्द्धन विजयादित्य के नाम से विख्यात हुआ। विजयादित्य भी सुख की नींद न सो सका और 4 वर्ष के पश्चात् उसे भी सिंहासन छोड़ना पड़ा। सन् 1135 ई. में राजराज पुनः सिंहसनारूढ़ हो गया। विजयादित्य ने पुनः पश्चिम के चालुक्यों की शरण ली। इस समय चालुक्यों की पश्चिमी शाखा का राजा जयसिंह द्वितीय का पुत्र सोमेश्वर प्रथम था और उसने वेंगी पर आक्रमण किया। उधर राजेन्द्र भी चुप बैठने वाला नहीं था । उसने राजराज की सहायता के लिए एक सेना भेजी पर युद्ध के बीच में ही राजेन्द्र की मृत्यु हो गयी।

पूर्वी भारत पर आक्रमण - सन् 1021 ई. और 1022 ई. के मध्य राजेन्द्र प्रथम ने पूर्वी भारत की ओर भी अभियान किया। एक विशाल सेना के साथ वह उड़ीसा होता हुआ बंगाल पहुँचा और बंगाल देश के राजा गोविन्दचन्द को पराजित करके गंगापार बंगाल के पालवंशी राजा महिपाल से भिड़ गया। दोनों के मध्य भयंकर संघर्ष हुआ और इस संघर्ष में राजेन्द्र प्रथम की विजय हुई। राजेन्द्र चोल बंगाल में अधिक दिनों तक न रहा और विजय प्राप्त करके गंगाजल लेकर स्वदेश वापस लौट गया। कहा जाता है कि बंगाल के जिन राजाओं पर उसने विजय प्राप्त की थी, ये राजा गंगाजल सिर पर रखकर उसके साथ चले। इस गंगाजल को उसने एक तालाब चोलसंगम में डलवा दिया और अपने आप को 'गंगकोण्ड' की उपाधि से विभूषित किया।

राजेन्द्र प्रथम की इस विजय का कोई निश्चित परिणाम न हुआ। इससे उसे केवल यश की ही प्राप्ति हुई, परन्तु अन्य विद्वानों का मत है कि यह ठीक है कि राजेन्द्र चोल बंगाल में न टिका परन्तु उसकी बंगाल विजय से कोई लाभ ही नहीं हुआ।

श्रीविजय राज्य पर विजय - श्रीविजय के अन्तर्गत मलाया, सुमात्रा, जावा प्रायद्वीप और समीपस्थ द्वीप सम्मिलित थे। श्रीविजय चोलों के राज्य और चीन के मध्य में पड़ता था, सन् 1125 ई. के लगभग राजेन्द्र चोल ने श्रीविजय पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। वहां के राजा को बन्दी बना लिया गया। बाद में जब उसने चोलों की अधीनता स्वीकार कर ली तो उसे मुक्त कर दिया गया। इस प्रकार भारत और चीन के बीच जलमार्ग सुरक्षित हो गया और 1033 ई. में राजेन्द्र चोल ने अपना एक दूतमण्डल चीन भेजा।

पाण्ड्यों और चोलों का विद्रोह - पाण्ड्य और चेर राजेन्द्र चोल की अधीनता में रहना पसन्द नहीं करते थे, फलस्वरूप उन्होंने विद्रोह कर दिया। राजेन्द्र प्रथम ने अपने पुत्र राजाधिराज को इन विद्रोहों का दमन करने के लिए भेजा और राजाधिराज इन विद्रोहों के दमन करने में सफल रहा। इस प्रकार राजाधिराज ने विद्रोहियों को कठोर दण्ड दिये।

लंका के स्वतन्त्रता संग्राम का दमन करने का प्रयास - लंका में विक्रम बाटु के नेतृत्व में पूर्ण प्रयत्न हो रहे थे। सन् 1044 के लगभग राजेन्द्र ने राजाधिराज को उनके दमन के लिए भेजा। राजाधिराज इस कार्य में पूर्ण रूप में सफल न हो सका।

इस प्रकार राजेन्द्र चोल की सेना ने अपनी विजय- वैजयन्ती गंगा से सिंहल द्वीप तक तथा बंगाल की खाड़ी के पास जावा, सुमात्रा एवं मलय प्रायद्वीप पर फहरा दिया। यह उसकी अद्भुत सैनिक सफलता थी जो प्राचीन इतिहास में सर्वथा बेजोड है। निश्चित रूप से वह प्राचीन भारत के महानतम विजेताओं में से एक था। उसके समय में चोल वंश शक्ति तथा विस्तार की दृष्टि से उन्नति के शिखर पर पहुँच गया। राजेन्द्र चोल केवल वीर साहसी ही न था बल्कि उसकी निर्माण कार्यों में भी विशेष अभिरुचि थी। उसने सिंचाई के लिए सोलह मील लम्बा एक भव्य तालाब खुदवाया। राजेन्द्र चोल विद्याप्रेमी भी था, उसने पण्डितचोल की उपाधि भी प्राप्त की थी। वह शिक्षा एवं साहित्य का महान उन्नायक भी था। उसने वैदिक साहित्य के अध्ययन के लिए एक वैदिक कालेज की स्थापना की थी जिसमें लगभग 300 छात्र अध्ययन करते थे। उसने अनेकों भवनों, मन्दिरों और तालाबों का निर्माण करवाया तथा गंगकोण्ड चोलपुरम में अपनी नवीन राजधानी स्थापित की थी। चोल वंश के इतिहास में राजराज तथा उसके पुत्र उत्तराधिकारी राजेन्द्र चोल की उपलब्धियाँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। उसके शासन काल में चोल साम्राज्य राजनैतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुँच गया तथा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का अधिकारी बना।

मृत्यु - सन् 1044 में चालुक्यों और चोलों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ। इसी में राजेन्द्र चोल की मृत्यु हो गयी।

मूल्याँकन - राजेन्द्र चोल वंश का एक महान शासक था। उसने अपने राज्य की सीमाएं बढ़ाई थीं। राजेन्द्र महान पिता की महानतम शक्ति बढ़ाने में 32 वर्ष तक संघर्षशील शासक रहा। राजेन्द्र चोल एक साम्राज्य निर्माता ही न था बल्कि वह एक विद्याप्रेमी विद्वान, कलाप्रेमी और कलाकार भी था। सार्वजनिक कार्यों में भी उसकी विशेष अभिरुचि थी।

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