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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 5
चोल राजवंश
(Chola Dynasty)

प्रश्न- चोल राजवंश का इतिहास जानने में हमें किन ऐतिहासिक साक्ष्यों से सहायता प्राप्त होती है? इस वंश की उत्पत्ति के विषय में भी बताइये।

अथवा
चोल इतिहास के साधनों का उल्लेख करते हुए इनकी उत्पत्ति के विषय में बताइये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. चोल राजवंश का इतिहास जानने के साधन बताइए।
2. चोलों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं?
3. चोल कौन थे?
4. चोल इतिहास को समझने में अभिलेख किस प्रकार उपयोगी हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

चोल इतिहास के साधन

चोल राजवंश के इतिहास को समझने में तत्कालीन अभिलेख, साहित्यिक ग्रन्थ, सिक्के तथा विदेशी विवरण बहुत उपयोगी हैं, जिनका विवरण निम्नवत् है-

अभिलेख - चोल इतिहास के सर्वाधिक प्रामाणिक साधन अभिलेख, हैं जो बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। इन अभिलेखों की भाषा संस्कृत, तमिल, तेलगु तथा कन्नड़ है। राजराज प्रथम ने अभिलेखों द्वारा अपने पूर्वजों के इतिहास को संकलित करने तथा अपने समय की उपलब्धियों और घटनाओं को लेखों में जोड़ने की प्रथा को प्रारम्भ किया। इनका अनुकरण बाद के राजाओं ने भी किया।

इन लेखों में लेडन दानपत्र तथा तन्जौर मन्दिर में उत्कीर्ण लेख अधिक महत्वपूर्ण हैं। राजेन्द्र प्रथम के समय के प्रमुख लेख तिरुवालंगाडु तथा करन्डै दानपत्र हैं जो उसकी उपलब्धियों का विवरण देते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण लेख राजराज तृतीय के समय का तिरुवेन्दिपुरम् अभिलेख है जो चोलों के उत्कर्ष का तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत करता है। इसी प्रकार राजाधिराज प्रथम के समय के मणिमंगलम् अभिलेख से उसकी लंका विजय तथा चालुक्यों के साथ संघर्ष की जानकारी मिलती है।

साहित्यिक ग्रन्थ - तत्कालीन साहित्यिक ग्रन्थों से भी हमें चोलों के इतिहास का ज्ञान प्राप्त होता है। इनमें सबसे उल्लेखनीय संगम साहित्य है जिससे हमें प्रारम्भिक चोल शासक करिकाल के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। जयंगोण्डार के 'कलिंगत्तुपराणि' से कुलोत्तुंग प्रथम की वंश-परम्परा तथा उसके समय में कलिंग पर हुए आक्रमण के विषय में पता चलता है। शेक्किलार द्वारा रचित 'पेरियपुराणम्' के अध्ययन से तत्कालीन धार्मिक परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त होता है। बुधमित्र के व्याकरण ग्रन्थ 'वीरशोलियम्' से वीर राजेन्द्र के समय की कुछ ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी होती है। इसी प्रकार बौद्ध ग्रन्थ 'महावंश' से परान्तक तथा राजेन्द्र प्रथम की विजय का विवरण मिलता है।

सिक्के - चोलकालीन सिक्कों से तत्कालीन समाज की आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है। राजाधिराज प्रथम के कुछ सिक्के लंका से प्राप्त हुए हैं जिनसे वहाँ उसके अधिकार की पुष्टि होती है। सामान्यतः चोल सिक्कों से सम्पूर्ण दक्षिण भारत पर उनका अधिपत्य सूचित होता है।

विदेशी विवरण - चोल इतिहास को जानने में विदेशी विवरण भी बहुत हद तक सहायक हैं। चीन की एक अनुश्रुति के अनुसार राजराज प्रथम तथा कुलोत्तुंग प्रथम के काल में एक दूतमण्डल चीन की यात्रा पर गया था। चीनी यात्री चाऊ-जू कूआ के विवरण से भी चोल देश तथा वहाँ की शासन व्यवस्था से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

चोलों की उत्पत्ति

चोलों की उत्पत्ति के विषय में इतिहासकारों में मतभेद हैं। चोल शब्द की उत्पत्ति 'चल' से हुई है जिसका अर्थ है - 'भ्रमण करने वाले। कुछ विद्वान चोलों की उत्पत्ति 'चोलम' से मानते हैं। इन कथनों के आधार पर इतिहासकार चोलों को अनार्य ( द्रविड़ ) सिद्ध करते हैं।

चोल वंश भारत के दक्षिण में अति प्राचीन कालीन वंश है। महाभारत में चोलों का उल्लेख हुआ है। महाभारत के सभापर्व तथा भीष्मपर्व में कई जगहों पर चोलों का वर्णन मिलता है। बिम्बसार ने चोलों को अपने अधीन करने का प्रयास किया था परन्तु वह सफल न हुआ। यूनानी लेखक मेगस्थनीज ने भी चोलों का उल्लेख किया है। अशोक के कलिंग आक्रमण के समय चोलों ने कलिंग की सहायता की थी। अशोक ने अपने अभिलेखों में चोलों के राज्य को सीमान्त राज्य के अन्तर्गत रखा है। प्रसिद्ध इतिहासकार टालमी ने भी चोलों का उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि एक राज्य 'सोरनागों' (चोल नागों) का था जिसकी राजधानी ओर्थारा थी। सर जौन कनिघंम का मत है कि त्रिचलनापल्ली के समीप का 'उरइपुर' ही ओर्थोरा था। टालमी ने यह भी बताया हैं चोलों का एक अन्य राज्य भी था जिसकी राजधानी अर्कटीज थी। सम्राट अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल राज्य और लंका के राज्य में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध था। एक सिंहली ग्रन्थ भी इस तथ्य का साक्षी है।

श्री निवासचारी और रामास्वामी अयंगर ने लिखा है कि - "Any attempt at present to complete the history of Cholas from the very commencement of their carrier is *but futile."

इसमें किंचितमात्र भी सन्देह नहीं है कि एक युग ऐसा अवश्य था जब चोल बहुत अधिक शक्तिशाली थे और उन्होंने दक्षिण भारत पर अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी।

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