प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- 'कल्याणी के चालुक्यों' के विभिन्न शासकों के विषय में बताइये।
उत्तर-
कल्याणी के चालुक्य
कल्याणी के चालुक्य वंश का उदय राष्ट्रकूटों के पतन के बाद हुआ। इस वंश का इतिहास हम साहित्य तथा लेखों के आधार पर प्राप्त कर सकते हैं। साहित्यिक ग्रंथों में विल्हण कृत विक्रमांकदेवचरित सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जिससे इस वंश के सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य षष्ठ के जीवन तथा उसकी उपाधियों के बारे में जानकारी मिलती है। रन्न के गदायुद्ध से इस काल के सामाजिक जीवन की जानकारी प्राप्त होती है।
कल्याणी के चालुक्य वंश में अनेक शक्तिशाली शासक हुये जिनका विवरण निम्नलिखित है-
(1) तैलप द्वितीय - कल्याणी के चालुक्यों का स्वतंत्र राजनैतिक इतिहास तैल अथवा तैलप द्वितीय (973-997 ई.) के समय से प्रारम्भ होता है। उसके पूर्व हमें कीर्तिवर्मा तृतीय, तैल प्रथम, विक्रमादित्य तृतीय, भीमराज, अय्यण प्रथम तथा विक्रमादित्य चतुर्थ के नाम मिलते हैं। इनमें क्रमशः तैलप प्रथम, अय्यण प्रथम तथा विक्रमादित्य चतुर्थ के विषय में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है। ये सभी राष्ट्रकूटों के सामंत थे। निलगुंड लेख से पता चलता है, कि अय्यण ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय की कन्या से विवाह कर दहेज में विलुप्त सम्पत्ति प्राप्त कर ली थी। उसके (अय्यण) पुत्र विक्रमादित्य चतुर्थ का विवाह कलचुरि राजा लक्ष्मणसेन की कन्या बोन्थादेवी के साथ सम्पन्न हुआ था। इसी से तैलप द्वितीय का जन्म हुआ। नीलकंठ शास्त्री का विचार है, कि ये सभी शासक बीजापुर तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र में शासन करते थे, जो इस वंश की मूल राजधानी के पास में था।
(2) सत्याश्रय - चालुक्य वंश के शासक तैलप द्वितीय का उत्तराधिकारी सत्याश्रय हुआ। वह अपने पिता के समान महत्वाकांक्षी एवं साम्राज्यवादी शासक था। राजा बनने के बाद उसने अपना विजय अभियान प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम उसने उत्तरी कोंकण के शीलाहारवंशी शासक अपराजित तथा गुर्जर नरेश चामुण्डराज के विरुद्ध सफलतायें प्राप्त कीं। परन्तु परमार शासक सिन्धुराज ने उसे हराकर उन प्रदेशों को पुनः अपने अधिकार में ले लिया, जिसे तैलप ने उसके भाई मुंज से जीता था। सत्याश्रय का मुख्य शत्रु चोल नरेश राजराज प्रथम था, जिसका वेंगी के चालुक्यों पर प्रभाव था। 1006 ई. में सत्याश्रय ते वेंगी पर आक्रमण किया। उसे प्रारम्भिक सफलता मिली तथा उसकी सेना ने गुन्टूर जिले पर अधिकार जमा लिया। चोल शासक राजराज ने अपने पुत्र राजेन्द्र को एक विशाल सेना के साथ पश्चिमी चालुक्यों पर अधिकार करने को भेजा। राजेन्द्र की सेना बीजापुर जिले में दोनूर तक बढ़ आई तथा उसने सम्पूर्ण देश को लूटा एवं स्त्रियों, बच्चों और ब्राह्मणों की हत्या कर दी। उसने बनवासी पर अधिकार किया तथा मान्यखेत को ध्वस्त कर दिया।
(3) विक्रमादित्य पंचम - कल्याणी के चालुक्य शासक सत्याश्रय ने 1008 ई. तक राज्य किया। उसके कोई पुत्र नहीं था। अतः उसके बाद उसका भतीजा विक्रमादित्य पंचम राजा बना। वह दशवर्मा का बड़ा पुत्र था। लेखों से उसकी किसी भी उपलब्धि की सूचना हमें नहीं मिलती है। कैथोम लेख में उसे यशस्वी तथा दानशील शासक बताया गया है।
(4) जयसिंह द्वितीय - कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य पंचम के बाद उसका भाई जयसिंह द्वितीय शासक बना। उसने कई युद्ध किये। मालवा के परमार शासक भोज ने उसके राज्य पर आक्रमण किया तथा लाट और कोंकण पर अधिकार कर लिया। परन्तु बाद में जयसिंह ने उसे पराजित कर पुनः अपने प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।
(5) सोमेश्वर प्रथम - कल्याणी के चालुक्य शासक जयसिंह द्वितीय के बाद उसका पुत्र सोमेश्वर प्रथम 1043 ई. में राजा हुआ। उसने अपनी राजधानी मान्यखेत से कल्याणी में स्थानांतरित की तथा वहाँ अनेक सुन्दर भवन बनवाये। विल्हण के अनुसार उसने कल्याण नगर को इतना सजाया कि, संसार के सभी नगरों में श्रेष्ठ बन गया। वह एक विजेता था। उसकी विजयों का एक विवरण नान्देर (हैदराबाद) के लेख में मिलता है, जिसके अनुसार सोमेश्वर ने मगध, कलिंग और अंग के शत्रुओं की हत्या कर दी, कोंकण पर आक्रमण कर वहाँ के राजाओं को अपने पैरों पर गिरने के लिए विवश किया, मालवा के राजा ने अपनी राजधानी धारा में हाथ जोड़कर उससे याचना की, उसने चोल शासक को युद्ध में पराजित किया तथा वेंगी और कलिंग के राजाओं को अपनी ओर मिला लिया। इसी लेख में उसके सेनापति नागवर्मा का उल्लेख है। बताया गया है, कि वह राजा का दाहिना हाथ था। इसे विन्ध्याधिपतिमल्ल, धारावर्षादर्पोत्पाटन, मारसिंहमर्दन, शिरच्छेदन, चक्रकूट - कालकूट जैसी उपाधियाँ प्रदान की गयी हैं। यद्यपि यह विवरण अतिरंजित है, तथापि इसके कुछ अंशों को प्रमाणिक माना जा सकता है। सोमेश्वर की विजयों का कालक्रम निर्धारित करना कठिन है।
(6) सोमेश्वर द्वितीय - कल्याणी के चालुक्य वंश के शासक सोमेश्वर प्रथम के बाद उसका बड़ा पुत्र सोमेश्वर द्वितीय (1068-1076 ई.) राजा बना। उसका छोटा भाई विक्रमादित्य प्रारम्भ से ही महत्वाकांक्षी था। चोलनरेश वीर राजेन्द्र ने सोमेश्वर प्रथम के राज्य पर आक्रमण किया। सोमेश्वर के भाई विक्रमादित्य ने कुछ सामंतों के साथ चोल नरेश से संधि कर ली। वीर राजेन्द्र ने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया तथा सोमेश्वर द्वितीय पर दबाव डालकर विक्रमादित्य को चालुक्य राज्य के दक्षिणी भाग पर युवराज के रूप में शासन करने का अधिकार दिला दिया। इस तरह चालुक्य राज्य दो भागों में विभाजित हो गया। ऐसा लगता है कि सोमेश्वर ने पुनः अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली तथा चोल सेनाओं को अपने राज्य के बाहर भगा दिया। उसके एक लेख से सूचित होता है, कि उसकी घुड़सवार सेना ने वीर राजेन्द्र चोल को कल्याणी से खदेड़ दिया। इसके बाद सोमेश्वर तथा विक्रमादित्य बंकापुर से भुवनैकमल्ल ( सोमेश्वर ) की सेवा कर रहा था। सोमेश्वर ने मालवा के परमार राजा जयसिंह पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया, जिससे वह उसकी अधीनता स्वीकार करने लगा। इस युद्ध में कलचुरि शासक कर्ण ने सोमेश्वर की सहायता की थी। किन्तु कुछ समय बाद चाहमानों के सहयोग से मालवा ने पुनः स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।
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