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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- महेन्द्रवर्मन द्वितीय वातापी के चालुक्यों के साथ संघर्ष में कहाँ तक सफल रहा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
एहोल लेख से ज्ञात होता है कि चालुक्यों का उत्कर्ष पल्लवों को पसन्द न था । महेन्द्रवर्मन् प्रथम के सिंहासन पर बैठते ही चालुक्यों से उसका संघर्ष प्रारम्भ हो गया जो लम्बे समय तक चला। इसका कारण था कि चालुक्य नरेश पुलकेशिन ने कदम्बों को जीत लिया जो पल्लवों के अधीन एक स्वतन्त्र राज्य था तथा यहाँ से गंग, जो पल्लवों के विरोधी थे, पर अंकुश लगाया जा सकता था। इस विजय के कारण मंग और चालुक्य दोनों शत्रु बनकर पल्लव नरेश के समक्ष खड़े हो गये।
पुलकेशिन द्वितीय ने कदम्बों एवं वेंगी के राज्यों पर अधिकार करने के बाद पल्लव राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में महेन्द्रवर्मन् द्वितीय को सफलता नहीं मिली और उसे कांची के किले में छिपना पड़ा। परन्तु कुछ समय बाद प्रतापी पल्लवपति महेन्द्रवर्मन द्वितीय ने पुल्लिलूर के मैदान में अपने प्रमुख शत्रु पुलकेशिन द्वितीय को पराजित कर अपनी स्थिति पुनः सुदृढ़ कर ली।
इस प्रकार महेन्द्रवर्मन प्रथम ने प्रतापी चालुक्यों से काञ्ची तथा कावेरी घाटी की रक्षा तो कर ली परन्तु दोनों शक्तियों के बीच तनाव उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। इधर पल्लवों से पराजित होने के बाद पुलकेशिन द्वितीय अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में लगा रहा क्योंकि दक्षिण की ओर से पल्लवों के आक्रमण से उसे बराबर खतरा बना हुआ था। फिर भी, महेन्द्रवर्मन द्वितीय ने चालुक्यों एवं उनके मित्र-राज्यों के सतत् दबावों के बावजूद अपने सामरिक अभियानों द्वारा पल्लव साम्राज्य को कावेरी के दक्षिण में विस्तृत करने में सफलता प्राप्त की थी।
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