बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 7
द्रव्य - सम्बद्ध विकृति
(Substance Related Disorder)
प्रश्न- द्रव्य-सम्बद्ध विकृति किसे कहते हैं? किसी व्यक्ति में द्रव्य निर्भरता की पहचान आप कैसे करेंगे?
अथवा
द्रव्य सम्बन्ध विकृति के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसके महत्वपूर्ण पदों की विवेचना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. द्रव्य - सम्बद्ध विकृति क्या है?
2. द्रव्य - दुरुपयोग पर टिप्पणी लिखिए।
3. द्रव्य - निर्भरता के लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
विभिन्न तरह के औषधों, या रसायन द्रव्यों के सतत् उपयोग से तरह-तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जो व्यक्ति के सामाजिक एवं व्यवसायी कार्यों में बाधा पहुँचाती हैं। उसे सामान्यतः द्रव्य-सम्बद्ध विकृति कहा गया है। द्रव्य-सम्बद्ध विकृति के लिए दो महत्वपूर्ण पदों का उपयोग किया गया है-
(1) द्रव्य-दुरुपयोग (Substance-Abuse) - द्रव्य - दुरुपयोग औषध उपयोग का एक ऐसा पैटर्न है जो ज्यादा गम्भीर तो नहीं होता है परन्तु इससे अपने घर तथा कार्यस्थल पर के जवाबदेहियों को ठीक ढंग से निर्वाह करने में व्यक्ति को बाधा पहुँचती है। विलकिंसन एवं उसके सहयोगियों (1987) के अनुसार जो लोग इन औषधों का दुरुपयोग करते हैं वे एक समय में एक से अधिक औषध का उपयोग करते हैं। इस बहुउपयोग को बहु-द्रव्य दुरुपयोग कहा गया है।
द्रव्य-दुरुपयोग की पहचान के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति सतत् औषध लेने के कारण एक साल के भीतर ही निम्नांकित में से कोई तीन समस्या से ग्रसित हो-
(i) महत्वपूर्ण जवाबदेहियों को पूरा करने में असफल रहना। जैसे व्यक्ति अपने कार्य से अनुपस्थित रहता हो या अपने बच्चों की उपेक्षा करता हो।
(ii) मदहोशी की अवस्था में व्यक्ति अपने आप को दैहिक खतरे से अनावृत करता हो।
(iii) व्यक्ति सतत् सामाजिक या अन्तर्वैयक्तिक समस्याएँ जैसे अपने पति या पत्नी से झगड़ना, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ झगड़ना आदि व्यवहार करता हो।
(iv) व्यक्ति को कानूनी समस्याओं जैसे गिरफ्तारी आदि का सामना करना पड़ा हो।
लम्बे समय तक यदि व्यक्ति में द्रव्य-दुरुपयोग की स्थिति चलती रहती है, तो इससे उसमें एक विशेष अवस्था उत्पन्न होती है जिसे द्रव्य निर्भरता कहा जाता है। यह दो प्रकार की होती है-
(1) मनोवैज्ञानिक निर्भरता (Psychological dependence)
(2) दैहिक निर्भरता (Physiological dependence)
मनोवैज्ञानिक निर्भरता में व्यक्ति औषध लेने की तीव्र लालसा दिखलाता है और उसे लेने के लिए वह मानसिक रूप से योजना बना चुका होता है। ऐसे लोग जिनमें मनोवैज्ञानिक निर्भरता उत्पन्न हो जाती है, वे अपना अधिकतर समय औषध प्राप्त करने के प्रयास में लगाते हैं, परिणामस्वरूप वे अपने स्कूल, कार्य तथा सामाजिक सम्बन्ध पर बहुत ही कम ध्यान दे पाते हैं। औषध पर मनोवैज्ञानिक निर्भरता दिखाने वाले व्यक्ति यह जानते हुए भी कि ऐसे औषध से उनमें -हृदय रोग, किडनी का रोग, पेट में थोथ (Ulcer) हो सकता है, औषध लेना जारी रखते हैं। जब व्यक्ति अत्यधिक तथा बार-बार द्रव्यों को लेता है जिससे उसमें सहनशीलता या प्रत्याहार संलक्षण विकसित हो जाते हैं, इसे दैहिक निर्भरता या व्यसन भी कहा जाता है।
द्रव्य निर्भरता की पहचान तभी होती है जब व्यक्ति में निम्नांकित सात लक्षणों में से कम - से-कम तीन अवश्य ही एक साल के भीतर ही उपस्थित हुए हों-
(i) व्यक्ति में सहनशीलता विकसित हो गयी हो।
(ii) द्रव्य को लेना बन्द कर देने पर व्यक्ति में प्रत्याहार के लक्षण विकसित हो गए हों। प्रत्याहार लक्षणों को कम करने या उससे छुटकारा पाने के लिए रोगी अन्य द्रव्य का भी सेवन करने लग सकता है।
(iii) व्यक्ति द्रव्य का उपयोग अधिक करता हो या उसका उपयोग विशेष अवधि तक न करके लम्बे समय तक करता हो।
(iv) व्यक्ति यह स्वीकार करता हो कि वह अधिक मात्रा में द्रव्य का सेवन करता है तथा रोकने का भी प्रयास किया हो परन्तु सफल नहीं हुआ हो।
(v) व्यक्ति का अधिकांश समय द्रव्य हासिल करने में बीतता हो या उसके प्रभाव से मुक्ति पाने में बीतता हो।
(vi) व्यक्ति उस परिस्थिति में भी औषध का सेवन जारी रखता हो जब उसके सेवन से अधिक दैहिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
(vii) द्रव्य के उपयोग से बहुत सारी क्रियाएँ जैसे, मनोरंजन करना, सामाजीकृत होना, दिए गए कार्यों को करना आदि की बारम्बारता में काफी कमी आयी हो।
अतः द्रव्य-निर्भरता की पहचान दैहिक निर्भरता के बिना या उसके साथ भी किया जा सकता है।
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