बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 2
चिन्ता विकृतियाँ
(Anxiety Disorders)
प्रश्न- चिन्ता विकृति से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
चिन्ता विकार से आप क्या समझते हैं? आई० सी० डी०- 10 तथा डी० एस० एम-4 में इसके वर्गीकरण को संक्षेप में बताइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
टिप्पणी लिखिए-
1. चिन्ता विकृति का स्वरूप।
2. असंगत भय (Phobia)।
3. भीषिका विकृति (Panic disorder)।
अथवा
भीषिका विकृति का अर्थ।
4. सामान्यीकृत चिन्ता विकृति (GAD)।
5. मनोग्रसित बाध्यता विकृति के प्रमुख लक्षण बताइये।
6. भीषिका विकृति (Panic disorder) के अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-
(Nature of Anxiety Disorder)
चिन्ता से तात्पर्य डर एवं आशंका के दुःखद भाव से होता है। इस प्रकार चिन्ता से कई प्रकार की मानसिक विकृतियों की उत्पत्ति होती है जिसे पहले एक सामान्य नैदानिक श्रेणी स्नायुविकृति (Neurosis) या मनोस्त्रायुविकृति (Psychoneurousis) में रखा गया था। स्नायुविकृति में कई प्रकार की मानसिक विकृतियों को रखा गया है, जिसमें प्रमुख हैं-
1. चिन्ता स्नायुविकृति (Anxiety Neurosis),
2. रोगभ्रमी स्नायुविकृति (Hypochondrical Neurosis),
3. दुर्भीति स्नायुविकृति (Phobia Neurosis),
4. रूपान्तर स्नायुविकृति (Conversion Neurosis),
5. मनोग्रसित बाध्यता स्त्रायुविकृति (Obsessive-compulsive Neurosis),
6. सामान्यीकृत चिन्ता विकृति (Generalized Anxiety Disorders)
इन सभी का नैदानिक स्वरूप अलग-अलग होने के बावजूद इनकी निम्नलिखित दो प्रमुख विशेषताएँ बतलायी गयी हैं-
1. स्त्रायुविकृति केन्द्रक (Neurotic Nucleus ) - इसका तात्पर्य वास्तविकता का दोषपूर्ण मूल्यांकन तथा तनाव से निपटने के स्थान पर दूर हट जाने की प्रवृत्ति से होता है।
2. स्नायुविकृति विरोधाभास (Neurotic Paradox) - इससे तात्पर्य एक विशेष तरह के जीवन शैली को उसके कुसमायोजित तथा आत्मघातक स्वरूप को अपनाये रखने की प्रवृत्ति से होता है।
DSM - IV में स्नायुविकृति जैसी पुरानी श्रेणी को हटा दिया गया है। DSM - IV के अनुसार, चिन्ता विकृति से तात्पर्य वैसी विकृति से होता है जिसमें क्लाइंट या रोगी में अवास्तविक चिन्ता तथा अतार्किक डर की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि उसका व्यवहार असमायोजित हो जाता है तथा इसमें व्यक्ति अपनी चिन्ता की अभिव्यक्ति बिल्कुल ही स्पष्ट ढंग से करता है।
दुर्भीति
(Phobia)
दुर्भीति ( Phobia) एक सामान्य चिन्ता विकृति है जिसमें व्यक्ति किसी ऐसी विशिष्ट वस्तु या परिस्थिति से सतत एवं असन्तुलित मात्रा में डरता है जो वास्तव में उसके लिए कोई खतरा उत्पन्न नहीं करती हैं, जैसेकि व्यक्ति में चूहे से दुर्भीति उत्पन्न हो गयी हो तो, वह उस कमरे में नहीं जा सकता हो जहाँ चूहा मौजूद हो।
दुर्भीति के प्रकार (Types of Phobia) - दुर्भीति के निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-
1. विशिष्ट दुर्भीति (Specific Phobia) - विशिष्ट दुर्भीति एक ऐसा असंगत डर है जो विशिष्ट वस्तु या परिस्थिति की उपस्थिति या उसके अनुमान मात्र से ही उत्पन्न हो जाता है, जैसे चूहे से डरना, मकड़ी से डरना आदि।
2. एगोराफोबिया (Agoraphobia) - इसका शाब्दिक अर्थ भीड़-भाड़ या बाजार स्थलों से डर होता है । परन्तु वास्तविकता में एगोराफोबिया में कई प्रकार के डर सम्मिलित हैं जिसका केन्द्र सार्वजनिक स्थान होता है।
3. सामाजिक दुर्भीति (Social Phobia) - इस प्रकार की दुर्भीति में व्यक्ति को अन्य लोगों की उपस्थिति से डर लगता है कि लोग उसका मूल्यांकन करेंगे।
भीषिका विकृति
(Panic Disorder)
भीषिका विकृति चिन्ता विकृति का एक प्रमुख प्रकार है। इसमें रोगी को अचानक आतंक या भीषिका का दौरा पड़ता है। जब इस तरह का दौरा रोगी को बार-बार पड़ता है तो इसे भीषिका विकृति कहते हैं। भीषिका दौरा को 13 प्रमुख दैहिक संवेदनाओं के रूप में परिभाषित किया गया है। इन 13 में यदि कम से कम तीन दैहिक संवेदन भी कोई व्यक्ति अनुभव करता है तो उसे भीषिका दौरा कहते हैं।
(Generalized Anxiety Disorder or GAD)
GAD एक ऐसी विकृति है जिसमें रोगी चिरकालिक ( Chronic) अवास्तविक चिन्ता से ग्रस्त रहता है। इस तरह की चिन्ता को परम्परागत रूप से स्वतन्त्र प्रवाही चिन्ता (free-floating anxiety) भी कहते हैं। इससे ग्रसित व्यक्ति हमेशा तनाव, चिन्ता तथा अवास्तविकता की दुनिया में होता है। DSM-IV के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के जीवन में कम से कम गत छह महीने ऐसे बीते हों जिसमें अधिकतर अवधि में उसे अवास्तविक तथा अत्यधिक चिन्ता बनी हुयी हो तो निश्चित रूप से उसे GAD का रोगी कह सकते हैं।
(Obsessive-compulsive Disorder or OCD)
आरम्भिक नैदानिक मनोवैज्ञानिकों तथा मनोचिकित्सकों का विचार था कि मनोग्रस्तता तथा बाध्यता अलग-अलग दो स्वतन्त्र रोग हैं। परन्तु बाद के अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि ये दोनों स्वतन्त्र रोग नहीं हैं बल्कि एक ही विकृति के दो पहलू हैं। इन दोनों का अलग-अलग वर्गीकरण निम्नलिखित है-
1. मनोग्रस्तता (Obsession) - मनोग्रस्तता एक ऐसी अवस्था है जिसमें रोगी बार-बार किसी अतार्किक विचारों को न चाहते हुये भी मन में दोहराता रहता है। रोगी ऐसे विचारों को अर्थहीनता तथा अतार्किकता के स्वरूप को भली-भाँति समझता है तथा उनसे छुटकारा भी पाना चाहता है परन्तु वह लाचार रहता है और अतार्किक विचार बार-बार आकर उसमें मानसिक अशान्ति उत्पन्न करते हैं।
2. बाध्यता (Compulsion ) - बाध्यता एक प्रकार की व्यवहारात्मक प्रतिक्रिया है जिसमें रोगी अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी क्रिया को बार-बार करते रहने के लिये बाध्य रहता है। ऐसी क्रियाएँ अवांछित ही नहीं बल्कि अतार्किक तथा असंगत भी होती हैं। साफ-सुथरे हाथ बार- बार धोना, चुराने की बाध्यता, आग लगाने की बाध्यता आदि बाध्यता के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
किस्कर (1985) के अनुसार - "मनोग्रस्तता जब कार्य में बदल दिये जाते हैं तो बाध्यता कहा जाता है। बाध्यता से ग्रसित लोग एक ही कार्य बार-बार करते हैं हालांकि वे यह महसूस करते हैं कि ऐसा करने का कोई अर्थ नहीं है।"
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