बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 इतिहास बीए सेमेस्टर-4 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 8
भारत में साम्प्रदायिकता का उदय एवं विकास
(Rise and Development of
Communalism in India)
भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना मुगलों के शासन के बाद हुई थी। मुगल काल तक भारत में हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य की स्थिति कम थी । परन्तु ब्रिटिश शासन द्वारा 1857 ई. के संग्राम के समय ही इस बात का अनुमान लगा लिया गया था कि यदि भारत में शासन बनाये रखना है तो हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ाना होगा। अंग्रेजों ने राजनीति में धार्मिक तुष्टिकरण की नीति अपनायी। इस प्रकार भारत में साम्प्रदायिक राजनीति का प्रकटीकरण व्यापक रूप में हुआ । 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में साम्प्रदायिक राजनीति को विस्तार देने के प्रयास हुए। इसी अवधि में बंग-भंग, मुस्लिम लीग की स्थापना इत्यादि प्रमुख कार्य हुए जो कि उत्तरवर्ती समय में हानिकारक सिद्ध हुए । भारत में मुस्लिम लीग की नीतियाँ व कार्य कुछ अपवादों को छोड़कर साम्प्रदायिकता को बढ़ाने वाले ही रहे। मुस्लिम लीग की स्थापना अंग्रेजों के लिए एक बड़ी सफलता थी। उन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा देना प्रारम्भ कर दिया। मुसलमानों को अपने पक्ष में बनाये रखने के लिए अंग्रेजों द्वारा अनेक प्रयास किये गये तथा सुविधाओं में वृद्धि की गयी। मुस्लिम लीग ने अपनी स्थापना के साथ ही साम्प्रदायिक संगठन के रूप में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था। राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं द्वारा मुस्लिम लीग की नीतियों एवं कार्यों का तीक्ष्ण विरोध किया गया। जिसके फलस्वरूप आगे के वर्षों में लीग की नीतियों में परिवर्तन आना प्रारम्भ हुआ। 1913 में मुस्लिम लीग ने घोषणा की, कि उसका उद्देश्य “साम्राज्य के अन्दर स्वराज्य प्राप्त करना तथा अन्य सम्प्रदायों के साथ सहयोग करना । " 1914 ई. में प्रथम विश्वयुद्ध कालीन परिस्थितियों ने मुस्लिम लीग व कांग्रेस को निकट कर दिया। सन् 1916 में लखनऊ में लीग और कांग्रेस के बीच समझौता सम्पन्न हुआ। असहयोग आन्दोलन में लीग व कांग्रेस ने मिलकर सहभागिता की तथा खिलाफत कमेटी भी इसमें शामिल हो गयी। परन्तु आगे चलकर यह निकटता पुनः दूरी में बदलने लगी। 1921 में 'मुहम्मद अली जिन्ना' ने स्वयं को कांग्रेस से अलग कर लिया। 1922 ई. में असहयोग आन्दोलन बीच में ही स्थगित कर दिये जाने से खिलाफत कमेटी भी कांग्रेस के विरुद्ध हो गयी। 1928 में 'साइमन कमीशन' के बहिष्कार के मुद्दे पर मुस्लिम लीग में मतभेद उत्पन्न हुए यह दो भागों में विभक्त हो गयी। 1937 ई. में हुए आम चुनावों में कांग्रेस की अपेक्षा मुस्लिम लीग को सफलता प्राप्त न हो सकी। इससे कांग्रेस व लीग के बीच और दूरी बढ़ गयी। 1938 में मुस्लिम लीग की कार्यकारिणी के सदस्य इंग्लैण्ड में भारत सचिव से मिले और भारत विभाजन के विषय पर चर्चा की। 22 दिसम्बर, 1939 ई. को कांग्रेस मंत्रिमण्डलों के त्यागपत्र देने पर जिन्ना ने 'मुक्ति दिवस मनाया और मुस्लिम लीग को कांग्रेस के समान अधिकार दिये जाने की माँग की। 1946 ई. के चुनावों में मुस्लिम लीग को अप्रत्याशित सफलता मिली । अतः मुस्लिम लीग द्वारा पृथक् राज्य की माँग को प्रबल कर दिया गया। इस प्रकार अन्ततः साम्प्रदायिक राजनीति चरम पर पहुँच गयी और मुस्लिम लीग की पृथक् राज्य की माँग को स्वीकार किया गया। अतः स्पष्टतया कहा जा सकता है कि मुस्लिम लीग ने अपने गठन के साथ ही साम्प्रदायिक राजनीति का सहारा लिया और अन्ततः भारत विभाजन के रूप में इसका प्रकटीकरण भी हुआ ।
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