लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 इतिहास

बीए सेमेस्टर-4 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2742
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-4 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 5
रेलवे का विकास एवं इसका प्रभाव
(Development of Railway and its Impact)

इंग्लैंड में 1825 के बाद रेलवे लाइनें बिछाई गई। डलहौजी ने कार्यकाल में 1853 में बंबई से थाना तक पहली रेलवे लाइन भारत में बिछाई गई। जल्द ही संपूर्ण भारत को रेलवे लाइनों के द्वारा एक सूत्र में बांध दिया गया। भारतीय सुरक्षा तथा संचार व्यवस्था के प्रसार के लिए सामरिक महत्व की लाइनों का निर्माण किया गया। इस परियोजना की विस्तृत रूपरेखा लार्ड डलहौजी द्वारा अपने प्रसिद्ध 'रेलवे पत्र' में दी गई है तथा भारत में रेलवे के भावी प्रसार का यही आधार बना रहा। अगले ही वर्ष कलकत्ता में रानीगंज कोयला क्षेत्र तक एक लाइन बिछा दी गई। मद्रास प्रेजिडेंसी में भी इसी प्रकार कुछ लाइनें बिछाई गयीं। 1856 तक कई लाइनों का सर्वेक्षण हो चुका था और कुछ बनाई जा रही थीं।

ये रेलवे लाइनें भारतीय सरकार द्वारा बनाई जा रही थीं बल्कि निजी प्रयासों के द्वारा बनायी जा रही थी। इससे भारतीय कोष पर अत्यधिक भार नहीं पड़ा तथा अंग्रेजी जनता को भारत में पूंजी लगाने का मौका मिला। कालान्तर में भारत में रेलवे लाइनें निजी कंपनियों द्वारा 'सरकारी प्रत्याभूति' के अधीन निश्चित योजनाओं के अनुसार, जिन्हें लार्ड डलहौजी ने निर्देशित किया था, ही बनाई गई।

इस रेलवे प्रणाली के द्वारा व्यापार में लाभ मिला । दूरियां कम हो गईं व भारत देश एकता के सूत्र में बंध गया। 1865 में सर एडविन आर्नल्ड के अनुसार, "रेलवे आरत में वह कार्य में समर्थ होगी जो बड़े-बड़े वंशों में नहीं किया, न ही टीपू अपने अत्याचार द्वारा करने में सफल हुआ यह भारत को एक राष्ट्र बना देगी।'

भारत में रेलों के निर्माण का इतिहास चार चरणों में विभक्त किया जा सकता है- 

प्रथम चरण ( 1853-1869 ई.) - प्रथम चरण में रेलवे लाइनों का निर्माण ज्वांइट स्टाक कम्पनियों द्वारा हुआ था । इन्होंने रेलों का निर्माण व संचालन में मितव्ययता से काम नहीं लिया, फलतः इन कम्पनियों को घाटा हुआ, जिसे भारतीय राजस्व से पूरा किया गया। इस प्रकार भारत की निर्धन जनता को व्यर्थ में आर्थिक भार उठाना पड़ा था।

द्वितीय चरण (1869-1880 ई.) - इस चरण में सरकार ने स्वयं पूँजी लेकर रेल निर्माण की नीति अपनायी । देशी रियासतों को भी अपने राज्य में रेलों के निर्माण के लिये सरकार ने प्रोत्साहित किया और सर्वप्रथम निजाम स्टेट में रियासत की रेल निर्मित की गई।

तृतीय चरण (1880-1942 ई.) - इस चरण में रेलों में अंग्रेज सरकार को लाभ प्राप्त हुआ और वह प्रतिवर्ष बढता गया। 1905 ई. में रेलों के सुप्रबन्ध हेतु रेलवे बोर्ड की स्थापना की गई। भारत में रेलवे संचालन की जाँच करने व इस दिशा में सुझाव देने के लिये 1908 ई. में मैके समिति नियुक्त की गई जिसने रेलों के विस्तार के लिये एक वृहद् योजना तैयार की, तदुपरान्त रेल लाइनों का द्रुतगति से विकास हुआ।

चतुर्थ चरण (1942-1947 ई.) - इस चरण में रेलों के प्रबन्ध व संचालन में परिवर्तन कर यात्रियों की सुख-सुविधा का विशेष ध्यान दिया गया तत्पश्चात 1947 ई. में स्वतन्त्रता प्राप्त होते ही समस्त रेल यातायात भारत के नियन्त्रण में आ गया।

अन्ततः कहा जा सकता है कि रेवले के निर्माण ने आर्थिक क्षेत्र में जहाँ अपने अच्छे प्रभावों से भारत की जनता को प्रभावित किया वहीं इसके दुष्परिणामों से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book