बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 इतिहास बीए सेमेस्टर-4 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 4
कृषि का व्यावसायीकरण एवं
भारत पर इसका प्रभाव
(Commercialization of Agriculture
and its Impact on India)
कृषि के व्यवसायीकरण का अर्थ नकदी फसलों को उगाना था। नकदी फसलें उन फसलों को कहा जाता है जिनको बाजार में बेचकर किसानों को अधिक पैसा मिल सकता था। उदाहरण के लिए कपास, चाय, फल, आलू, सरसों, सब्जी आदि नकदी फसलें कहलाती हैं।
उन्नीसवीं शताब्दी में भारत की 80 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर थी। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था के ग्रामीणीकरण को ही बढ़ावा दिया। सरकार ने भारत के परम्परागत कुटीर उद्योगों को नष्ट करने की नीति अपनायी। इसके परिणामस्वरूप कृषि पर निर्भरता में वृद्धि हुई। दूसरी ओर आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व था। यदि कृषि पैदावार में वृद्धि होती थी, तो सरकार की आय में भी वृद्धि हो जाती थी। भू-राजस्व सरकार को बढ़ती हुई दर पर ही प्राप्त हुआ।
भू-राजस्व की वृद्धि का प्रमुख कारण कृषि का व्यवसायीकरण करना था। कृषि का व्यवसायीकरण कृषि विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया का परिणाम नहीं था, बल्कि सरकार ने अपने लाभ के लिए उसे थोपा था। अब प्रश्न यह है कि कृषि व्यवसायीकरण के क्या कारण थे?
कृषि के व्यवसायीकरण का प्रमुख कारण भारत में ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीति थी जो ब्रिटेन में प्रचलित राजनीतिक दर्शन तथा विचारधाराओं से प्रभावित थी। इसका मुख्य आधार साम्राज्यवाद की आवश्यकता को पूरा करना था। सरकार ने भू-राजस्व की जो प्रणालियाँ लागू की उनका उद्देश्य अपनी आय की वृद्धि करना तथा अपने समर्थक जमींदारों को प्रसन्न करना था। इस काल में ब्रिटिश नीति ब्रिटेन की आवश्यकताओं के लिए कृषि उत्पादन के प्रयोग की थी। कृषि उत्पादन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने के लिए सरकार ने रेलों का जाल बिछा दिया। ब्रिटेन के वस्त्र तथा उद्योग शहरी आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कच्चे कपास को भारत के विभिन्न क्षेत्रों से रेलों द्वारा बन्दरगाहों तक पहुँचाया जाता था। वहाँ से उनको ब्रिटेन भेजा जाता था। इस प्रकार उन्नीसवीं शताब्दी में भारत का ब्रिटेन के एक कृषि उपनिवेश के रूप में उदय हुआ।
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