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बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2741
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बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी - सरल प्रश्नोत्तर

 

अध्याय - 8
व्यावहारिक अनुवाद के अभ्यास

 

व्यावहारिक अनुवाद विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं के बीच संचार की सुविधा के लिए वास्तविक दुनिया के संदर्भों में अनुवाद कौशल के अनुप्रयोग को संदर्भित करता है ।

 

व्यावहारिक अनुवाद के पाँच विषय निम्न हैं-

 

(i) व्यापार और अर्थशास्त्र - अंतरराष्ट्रीय व्यापार, वित्त, विपणन और व्यापार संचार से सम्बन्धित दस्तावेजों का अनुवाद, जैसे अनुबंध, वित्तीय रिपोर्ट और विपणन सामग्री।

 

(ii) कानूनी और न्यायिक - कानूनी दस्तावेजों का अनुवाद जैसे अनुबंध, अदालती दस्तावेज और कानूनी पेशेवरों, अदालतों और कानूनी कार्यवाही में शामिल व्यक्तियों के लिए कानूनी पत्राचार |

 

(iii) चिकित्सा और स्वास्थ्य की देखभाल - बहुभाषी स्वास्थ्य देखभाल सेटिंग्स में स्वास्थ्य पेशेवरों और रोगियों के लिए रोगी रिकॉर्ड, चिकित्सा रिपोर्ट और दवा दस्तावेजों जैसे चिकित्सा दस्तावेजों का अनुवाद |

 

(iv) तकनीकी और इंजीनियरिंग - इंजीनियरिंग, आईटी और अन्य तकनीकी क्षेत्रों से सम्बन्धित तकनीकी दस्तावेजों का अनुवाद, जिसमें उपयोगकर्ता मैनुअल, तकनीकी विनिर्देश और उत्पाद प्रलेखन शामिल हैं।

 

(v) पर्यटन और आतिथ्य - अंतरराष्ट्रीय यात्रियों और पर्यटकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यटन और आतिथ्य उद्योग से सम्बन्धित यात्रा गाइडों, वेबसाइटों और अन्य सामग्रियों का अनुवाद।

 

अनुवाद प्रक्रिया अपने स्थूल रूप में अवश्य ही भाषाओं से सम्बद्ध है, क्योंकि कभी दो भाषा-भाषी व्यक्ति मिलें और एक-दूसरे को अपनी बात समझाने का प्रयत्न करें, तो वह तभी समझा सकेंगे जब दोनों किसी तीसरी भाषा का ज्ञान रखते हों। ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति पहले अपनी भाषा में सोची हुई बात का अनुवाद उस भाषा में करेगा, जिसे दूसरा भी जानता है, तब उस भाषा में अपनी बात कहेगा। यह प्रक्रिया तुरत प्रक्रिया है । दूसरा व्यक्ति भी एक ही बात का उत्तर देने के लिए इसी तुरत प्रक्रिया को अपनायेगा। यह अनुवाद क्रिया का एक व्यावहारिक पक्ष है।

 

परन्तु जब दोनों ही न तो एक-दूसरे की भाषा समझत हैं और न कोई तीसरी ऐसी भाषा जानते हैं, जो दोनों के बीच वार्तालाप करा सके। यह स्थिति अनुवाद का मौलिक व्यवहार का पक्ष है, जिसका समाधान परस्पर इशारों द्वारा ही हो सकता है, जिसमें दोनों व्यक्तियों को एक दूसरे के इशारों का अनुवाद करना पड़ता है। यदि एक को भूख लगी है और वह दूसरे से भोजन मांगता है तो वह भोजन करने के उस ढंग का संकेत करेगा, जो खाना खाने का ढंग उसकी संस्कृति में प्रचलित होगा। यदि उसके भोजन माँगने का ढंग, दोनों ही व्यक्तियों की संस्कृति में साम्य रखता तो दूसरे को इसकी बोली या संकेतों का अनुवाद करने में देर नहीं लगेगी। इसी प्रकार से और बातों के बारे में भी उदाहरण दिये जा सकते हैं। यह स्थिति उन दो गूंगे-बहरे लोगों की सी होती है जो कोई भाषा भी नहीं जानते। चूँकि गूंगे-बहरे लोग भी आपस में बातें कर लेते हैं तथा एक दूसरे के मन्तव्यों को समझ भी लेते हैं। अभ्यास से यह सम्भव हो जाता है। यह कार्य संकेतों के अनुवाद द्वारा होता है। बच्चा जब तक कुछ कह नहीं पाता उसकी बातों को भी इसी अनुवाद प्रक्रिया से समझ लिया जाता है। कभी आदिम काल में भी अनुवाद क्रिया की ऐसी ही गति रही होगी वस्तुतः ऐसे ही व्यवहार से शब्दों और सुरों का जन्म हुआ होगा और भाषाएँ बनने की भूमिका बनी होगी।

 

प्रथम अनुवाद कार्य मनुष्य जीवन के ही उस व्यावहारिक स्थिति से उत्पन्न हुआ, जो किसी क्रिया को करने या किसी वस्तु के प्रयोग में लाने पर बनी उसे करते हुए या देखकर और प्रयोग करके जो अनुभूति बनी, उसी अनुभूति के भावानुवाद द्वारा उस क्रिया और वस्तु का नामकरण हुआ । भौगोलिक भेद से यह अनुभूतियाँ मनुष्य के मन में अलग-अलग भावातिरेक की रही होगी, तभी भाषाएँ भी अलग-अलग बनीं, अलग-अलग जगहों पर एक प्रकार की क्रिया और समान प्रकार की वस्तु के नाम अलग-अलग रख लिये गये।

 

वास्तव में मनुष्य का समग्र व्यवहार ही भावातिरेक है। जब कोई व्यक्ति दूसरे से बात करता है, तो उसकी बात सुनने वाला दूसरा मनुष्य बोलने वाले की भाषा का अनुवाद, उसके बोलने के भाव-प्रसंग में अविलम्ब कर लेता है और वह सुनी हुई बात का उत्तर न देकर उसके भावानुवाद का उत्तर देता है। दूसरा व्यक्ति भी उसके उत्तर के भावानुवाद को ही अंगीकार करता है। ऐसी स्थिति में बोली हुई बात के अर्थ भावानुवादी ही होते हैं। अतः मनुष्य यदि कुछ बोलता है तो उसकी वाणी की भाषा का मर्म उसकी भावानुवादित भाषा में होता है, जब वह लिखता है तो उसकी लेखनी से प्रादुर्भूत भाषा का मर्म उसके उन शब्दों में होता है, जिनका वह लेखन के लिए चयन करता है, उस शैली में होता है, जो उसके भावानुकूल शब्दों को पंक्तिबद्ध करती है।

 

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