बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी बीए सेमेस्टर-4 हिन्दीसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 6
अनुवाद सैद्धान्तिकी - दो
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
अनुवाद दो भाषाओं के बीच संप्रेषण की प्रक्रिया है जिसके लिए अंग्रेजी में 'ट्रांसलेशन', फ्रेंच में 'ट्रडूक्शन', अरबी में 'तर्जुमा' आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है। फिर लेखक ने अनुवाद की परिभाषा को और भी सरल और स्पष्ट किया है। 'पहले किसी भाषा में लिखी गयी या कही गयी बात को बाद में किसी अन्य भाषा में लिखना या कहना' अर्थात् भाषा के बदलाव के साथ स्रोत भाषा में कही गई बात की आत्मा में कोई बदलाव ना आते हुए उसे लक्ष्य भाषा में मूल भाषा की तरह अनूदित करना ही इसकी सार्थकता है।
जिस प्रकार नाइडा ने अनुवाद प्रक्रिया में अर्थ की महत्ता और प्रतीकों पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही है उसी प्रकार डॉ. गोपीनाथ ने भी अनुवाद में अर्थ संप्रेषण की प्रक्रिया एवं उसके अन्य पहलुओं पर महत्त्व दिया। अनुवादक, अनुवाद में अर्थ को बनाए रखते हुए अन्य भाषा में अन्तरण करता है, लेकिन इस अनुवाद में मूल प्रभाव का कुछ अंश नष्ट होने की संभावना रहती है । इसलिए अनुवादक को ऐसे उपयुक्त शब्दों को चुनना चाहिए जिनके माध्यम से मूल के अर्थ को संप्रेषित किया जा सके।
अनुवाद का विश्लेषण, वैज्ञानिक दृष्टि से करते हुए बताया गया कि अनुवाद को प्राचीन काल कुछ विद्वान कला मानते आए हैं तो आधुनिक युग में कुछ विद्वान उसे विज्ञान मानते हैं, वहीं कुछ लोग अनुवाद को कला या विज्ञान न मानकर उसे शिल्प मानते हैं। अनुवाद को कला मानने के पक्ष में थियोडोर सेवरी ने अपने 'अनुवाद की कला' नामक ग्रन्थ में अनुवाद के संदर्भ में 'निकटतम समतुल्यता' का महत्व बताया है। उनके अनुसार अनुवादक, अनुवाद में सहज समतुल्यता के आधार पर उपयुक्त शब्दों और पर्यायों का चुनाव करता है, जिससे अनुवादक का ज्ञान आधारित व्यक्तित्व भी अनुवाद में प्रकट होता है और उसकी एक शैली भी होती है। अनुवाद को कला मानने का मुख्य आधार मूल कृति की आत्मा को अनुवाद में उतारने के काम को एक कला बताया है।
अनुवाद को विज्ञान मानने वाले विद्वान इस पुस्तक में अस्पष्ट है लेकिन कहते हैं कि अनुवाद एक ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें अद्यतन कुछ निश्चित नियमों को मानकर चलना पड़ता है और अनुवादक को तटस्थ होकर, सत्यनिष्ठा के साथ, ईर्ष्या, द्वेष अथवा अंधभक्ति से बचकर अनुवाद करना होता है। अनुवाद को शिल्प मानने के पक्ष में पीटर न्यूमार्क हैं। उनके अनुसार आज अनुवाद की सामग्री तथ्यात्मक, सूचनात्मक और तर्कपूर्ण है। विशेष पत्रकारिता, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा विज्ञान के क्षेत्र में आज तत्काल अनुवाद की माँग बढ़ गयी है और अनुवाद को यांत्रिक तत्परता से करना पड़ रहा है। अतः अपने इसी तकनीकी चरित्र के कारण वह प्रायः एक शिल्प है। वहीं इयान फिनले के अनुसार अनुवाद शिल्प और कला दोनों ही है।
साहित्यिक अनुवाद में काव्यानुवाद, नाटकानुवाद, कथा साहित्य का अनुवाद तथा गद्यरूपों में जीवनी, आत्मकथा, निबन्ध, आलोचना डायरी, रेखाचित्र, संस्मरण आदि का अनुवाद किया जाता है। उनमें लेखक ने काव्यानुवाद पर प्रकाश डाला है, काव्यानुवाद करना एक कठिन कार्य है। जिसमें मिथक, आलंकारिक भाषा, काव्यपरंपरा आदि का प्रयोग किया जाता है। जो यह काम एक अत्यत संवेदनशील अनुवादक ही कर सकता है। भारतीय भाषाओं के काव्यों के अनुवाद के लिए .. रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा गीतांजलि के अनुवाद में प्रयुक्त मुक्त छन्द का एक अच्छा नमूना कहा जाता है।
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