बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-4 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 12
yer forur at fafèrui
(Extension Teaching Methods)
प्रसार विधियों के द्वारा लोगों का सहयोग प्राप्त किया जाता है जिससे प्रेरित होकर वह कार्य करे। उन्हें नये ज्ञान से परिचित कराने के लिए तथा उनके अच्छे परिणाम दिखाने के लिए उनसे सम्पर्क बनाना आवश्यक होता है और सम्पर्क स्थापित करने के लिए प्रसार विधियों का होना आवश्यक है क्योंकि प्रसार विधियों से प्रसार कार्यकर्ता को ज्ञान होता है कि किस प्रकार सम्पर्क स्थापित किया जाये। जनसम्पर्क स्थापित करने के लिए प्रदर्शन, दृश्य-श्रव्य सामग्री आदि कई विधियों की व्यवस्था इसके अन्तर्गत की गई है। ये प्रसार विधियाँ इतनी अधिक महत्वपूर्ण हैं कि इन्हें प्रसार शिक्षा का अंग कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी । इस सन्दर्भ में एन्समिंजर ने कहा है- "प्रसार की विधियाँ प्रसार कार्यकर्ता के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी एक मैकेनिक के लिए मशीन, रिंच, पेंचकस, घन और हथौड़ा आवश्यक है।"
प्रसार विधियों का एकाकी प्रयोग प्रभावशाली नहीं होता है। अतः इस बात की अनुशंसा की गई है कि उनका संयोजित रूप में प्रयोग किया जाए। प्रसार विधियों के उचित प्रकार के संयोजित रूप में प्रयोग से सीखने वालों पर सबसे अधिक असर डालने वाला तरीका माना जाता है। विभिन्न विधियों को उपयोग में लाने से नये ज्ञान, विचार, पद्धति, कौशल की बार-बार पुनरावृत्ति भी हो जाती है। लोगों पर इस प्रकार की पुनरावृत्ति से गहन संचयी प्रभाव पड़ता है, जिससे वे उसे स्वीकार करते हैं तथा अपने कार्य में उपयोग करते हैं। यह देखा गया है कि किसी एक विधि के प्रयोग की अपेक्षा उनका उचित संयोजन अधिक उपयोगी सिद्ध होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रसार कार्यकर्ता को इन विधियों में प्रयोग करने के कौशल में प्रशिक्षित किये जाने को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए । विभिन्न शिक्षण विधियों के संयोजन में जितनी संख्या बढ़ाई जाती है, उतना ही उसका गहरा व ठोस प्रभाव होता है तथा उतना ही अधिक प्रतिशत उन परिवारों का बढ़ता है जिन्होंने प्रभावित होकर अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयोग किया है। प्रसार शिक्षण विधियों के संयोजन से सम्बन्धित विभिन्न शोध या अनुसंधान, सर्वेक्षण और अध्ययन विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर निरन्तर होते रहते हैं। इसमें अनुभवाश्रित ज्ञान और अध्ययन को भी जोड़ लिया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त अनुभव पर कई शिक्षाशास्त्रियों ने इनके सम्मिलित और संयोजित रूप की अनुशंसा की है। शिक्षाशास्त्रियों ने इस बारे में विभिन्न प्रयोग किए और कार्य के अनुरूप प्रसार शिक्षण विधियों के संयोजन को, कुछ हद तक निर्धारित करने का प्रयास किया है। प्रसार कार्यकर्ता अपने अनुभव से उन पद्धतियों में स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन भी ला सकता है। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रसारकर्ता को अनेक शिक्षण विधियों का सम्मिलित प्रयोग करना चाहिए। सूपे के अनुसार, यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रसारकर्ता ने जब मात्र एक प्रसार शिक्षण विधि द्वारा अपनी बात लोगों तक पहुँचायी है तो उसका प्रभाव ग्रामीण परिवारों के लगभग 1/3 भाग पर पड़ा है। जिन क्षेत्रों में तीन विधियों (प्रदर्शन, दृश्य माध्यम तथा छपित सामग्रियाँ) का प्रयोग किया गया वहाँ 2 / 3 लोगों की कार्य दक्षता में अन्तर पाया गया और जहाँ पाँच शिक्षण विधियों का प्रयोग किया गया वहाँ 90% परिवारों ने कार्य निष्पादन के बेहतर ढंग को अपनाया। इसके अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों में नौ शिक्षण विधियों का प्रसारकर्ता ने प्रयोग किया और उन्हें 98% सफलता प्राप्त हुई ।
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