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बीए सेमेस्टर-4 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2740
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 9
प्रसार शिक्षा
(Extension Education) 

'प्रसार' और 'शिक्षा' दो अलग-अलग शब्द हैं, किन्तु जब यह दोनों शब्द मिलकर 'प्रसार शिक्षा' बनते हैं तब इस शब्द का अर्थ बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रसार शिक्षा का आधार ग्रामीण जीवन है, क्योंकि गाँवों के विकास के लिए ही प्रसार शिक्षा का प्रतिपादन हुआ है। औद्योगीकरण के फलस्वरूप विकास की सभी धाराएँ शहर की तरफ अग्रसर होने लगी थीं। लोगों का ध्यान खेतों और ग्रामीण उद्योगों से हटकर शहरों की तरफ अग्रसर होने लगा था। ग्रामीण उन्नति के प्रारम्भिक प्रयासों ने आगे जाकर कृषि प्रसार या प्रसार शिक्षा का रूप धारण कर लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व बहुत सारी सामुदायिक योजनाओं का प्रादुर्भाव किया गया था, जिसका सम्बन्ध ग्रामीण विकास से था। इसका उद्देश्य ग्रामीणों के जीवन को सरल, समृद्ध एवं सुखमय बनाना था। इन सभी योजनाओं के साथ ऐसी धारण जुड़ी हुई थी, जो खेती के साथ-साथ, गाँवों से जुड़े अन्य उद्योगों की उन्नति पर भी आधारित थी । प्रसार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करना है। प्रसार शिक्षा, विद्यालयों एवं नियोजित पाठ्यक्रमों के दायरे से बाहर एक ऐसी शिक्षण प्रणाली है जो ज्ञानार्जन के साथ-ही-साथ सामाजिक एवम् सांस्कृतिक विकास पर भी ध्यान देती है। इस शिक्षण प्रणाली द्वारा ग्रामीण अपने उद्योग-धन्धों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा इससे जुड़ी सभी समस्याओं का निदान भी प्राप्त कर सकते हैं। प्रसार शिक्षा द्वारा ग्रामीण अपनी कार्यकुशलता को भी आसानी से बढ़ा सकते हैं। वास्तव में प्रसार शिक्षा, शिक्षण के उस पक्ष पर आधारित है, जो व्यक्ति को जीवन भर सीखने के लिए प्रेरित करती है।

प्रसार शिक्षा का अर्थ - प्रसार शिक्षा दो शब्दों से मिलकर बनी है, पहला शब्द प्रसार (extension) लैटिन भाषा के शब्द 'Ex' तथा 'Tensio' से मिलकर बना है, जहाँ 'Ex' का अर्थ 'Out' (बाहर) तथा 'Tensio' का अर्थ 'To spread' (विस्तार करना) । प्रसार शिक्षा वह शिक्षा है जो विद्यालय या किसी संस्थान के बाहर अर्थात् विद्यालय की सीमा के बाहर दी जाने वाली शिक्षा है। प्रसार शिक्षा मुख्यतः उन लोगों को दी जाती है, जो औपचारिक शिक्षा से वंचित रह गये हैं जैसे- कृषक, पशुपालक, दुग्ध उत्पादक, गृहिणियाँ तथा स्कूल छोड़ने वाले बालक तथा बालिकाएँ। प्रसार शिक्षा द्वारा ग्रामीणों, अनपढ़ों एवं बेरोजगारों को शिक्षित किया जाता है जिसके माध्यम से वह अपनी वर्तमान परिस्थितियों में रहकर ही ज्ञान का अर्जन कर, अपने स्वयं के प्रयासों से रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। प्रसार शिक्षा द्वारा व्यक्ति अपने जीवन के स्तर को ऊँचा उठा सकता है। प्रसार शिक्षा का उद्देश्य ग्रामीण व्यक्तियों के जीवन में आने वाली समस्याओं को सुलझाना है तथा उन्हें नयी-नयी तकनीकी शोधों के बारे में जानकारी प्रदान करना है, जिससे वो इन शोधों को समझकर उनका प्रयोग करके अपने लिए नये रोजगार तथा रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकें। प्रसार शिक्षा के माध्यम से ग्रामीण विकास को एक नई दिशा मिलती है। इसके माध्यम से गाँवों की दशा निश्चित रूप से सुधरती जा रही है तथा ग्रामीणों के जीवन स्तर में भी परिवर्तन हो रहे हैं। रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होने तथा काम का समुचित मुआवजा मिलने की वजह से उनका ध्यान अपने काम-धंधों में लगने लगा है तथा उनके मन में अपने काम के प्रति आस्था जाग्रत होती है। इसलिए प्रसार शिक्षा ग्रामीणों के लिए एक वरदान जैसी है।

प्रसार शिक्षा का संक्षिप्त इतिहास - प्रसार शिक्षा का उद्भव ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में हुआ है। ब्रिटेन के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग सन् 1873 में किया था। कृषकों या किसानों तक कृषि से सम्बन्धित जानकारी को पहुँचाने या प्रसारित करने के संदर्भ में “Extension" (प्रसार) शब्द का प्रयोग वोरहीस ने सन् 1894 में किया था। अमेरिका में प्रसार शिक्षा का कार्य डॉ. सीमैन नैप के शैक्षणिक प्रयासों से 1880 से 1910 के बीच सम्पन्न हुआ था। ये कपास की खेती एवं उद्योग से सम्बन्धित था। कृषि प्रसार को संयुक्त राज्य अमेरिका में मान्यता सन् 1914 में स्मिथ लिवर एक्ट के पारित होने के बाद प्राप्त हुई। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यह अनुभव किया जाने लगा कि ग्रामीण जनता नगरों की ओर आकर्षित हो रही है और इन्हें शहरों के काम-धन्धे अधिक लुभा रहे हैं, इन्हें शहरों में जाने से रोकना चाहिए। ऐसा करके ही खेती-बाड़ी, ग्रामीण उद्योग धन्धों तथा ग्रामीण विकास के कार्य को सम्पन्न किया जा सकता है। ग्रामीण विकास के बिना देश के विकास की कल्पना करना असंभव है। ग्रामीणों को शहरों की ओर जाने से रोकने तथा सर्वांगीण ग्रामीण विकास की तरफ ध्यान केन्द्रित करने के उद्देश्य से राष्ट्रपति रुजवेल्ट ने एक ग्रामीण आयोग का गठन किया। इस आयोग ने गम्भीरता से इसका अध्ययन किया तथा अध्ययन के उपरान्त इसके सदस्य इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि ग्राम्य एवं नगरीय जीवन के रहन-सहन तथा जीवन के स्तर में काफी अन्तर है। इसके लिए ग्रामीणों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जाए तथा उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए अधिक से अधिक सम्भावनाओं को भी विकसित किया जाए। ऐसा करने के लिए ग्रामीणों का योगदान भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इसके लिए उन्हे प्रेरित किया जाए तथा उन्हे प्रयत्नशील बनाया जाए। यह सब तभी संभव है जब उनके ज्ञान स्तर में परिवर्तन लाया जाए, उनके काम करने के ढंग में परिवर्तन लाया जाए, उनकी मनोवृत्ति में परिवर्तन लाया जाए तथा उनके कार्य सम्पादन की सही जानकारी प्रदान की जाए। ग्रामीण आयोग की सिफारिशों से ही ऐसे शिक्षण की व्यवस्था की परिकल्पना की गयी। यह संस्थागत न हो तथा यह कृषि तथा ग्रामीण जीवन के विकास से सम्बन्धित हो। इसी आयोग की सिफारिश के आधार पर सन् 1914 में स्मिथ लिवर एक्ट पारित हुआ और ग्रामीणों के विकास के लिए संस्थागत शिक्षण व्यवस्था से बाहर, शिक्षण की व्यवस्था की गयी। बाद में इस शिक्षण व्यवस्था को कृषि प्रसार का नाम दिया गया।

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