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बीए सेमेस्टर-4 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2737
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण प्रश्न

आर्थिक भूगोल मानव भूगोल की सशक्ततम शाखा है।

इसके अन्तर्गत मानव समाज का गुणात्मक जीवन स्तर परिलक्षित होता है।

गुणात्मक जीवन स्तर आर्थिक विकास की दीर्घकालीन प्रक्रिया का परिणाम होता है।

इस विकास प्रक्रिया के क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों की आधारभूत भूमिका होती है।

आर्थिक विकास स्तर इस प्रक्रिया का समुच्चायिक परिणाम है।

आर्थिक विकास के स्तर के अनुरूप ही क्षेत्र विशेष का भूवैन्यासिक संगठन होता है।

आर्थिक भूगोल का अस्तित्व आर्थिक कार्य-कलाप पर आश्रित है।

ऐसे सभी आर्थिक कार्य-कलाप जो भूतल पर अपना चिह्न छोड़ते हैं, आर्थिक भूगोल के मूलाधार हैं।

आर्थिक भूगोल का विषय क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है।

आर्थिक भूगोल अपना प्रत्येक कार्य-वर्ग अथवा तत्व के क्षेत्रीय वितरण प्रतिरूप पर ध्यान केन्द्रित करता है।

भूवैन्यासिक संगठन के कार्यात्मक स्वरूप का अध्ययन आर्थिक भूगोल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है।

रिचार्ड मारिल के अनुसार भूवैन्यासिक संगठन का तात्पर्य मानव समाज द्वारा क्षेत्र में समाकलित उपयोग है।

अर्थतन्त्र का क्षेत्रीय संगठन मानव कार्य-कलाप के परस्पर अन्तर्संबंधित पुन्ज का द्योतक है।

अर्थतन्त्र का संगठन, आवागमन एवं परिचालन से प्रारम्भ होता है।

अर्थतन्त्र का सामान्य स्वरूप संसाधन समुच्चय एवं उसके क्षेत्रीय वितरण पर निर्भर करता है।

पृथ्वी तल पर प्राकृतिक, जैविक अथवा मानवीय तत्व एवं प्रक्रिया में प्रत्येक क्षेत्रीय स्तर पर असमानता है।

विभिन्न क्षेत्रीय इकाइयों में उक्त संसाधन तत्वों का परस्पर अन्तर्सम्बन्ध भी भिन्न-भिन्न ढंग का होता है।-

प्राविधिकी मूलतः ऊर्जा के उपयोग एवं नियंत्रण पर निर्भर है।

विश्व के अधिकतर प्रदेशों में उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक कृषि अर्थतन्त्र का ही प्राधान्य रहा।

प्रादेशिक अर्थशास्त्र एवं तज्जनित गुणात्मक जीवन स्तर का अध्ययन बिना प्राविधिकी विकास क्रम के पूर्ण नहीं हो सकता।

आर्थिक भूगोल का एक महत्वपूर्ण पक्ष आर्थिक क्रियाकलाप एवं प्राविधिकी की अन्तर्क्रिया एवं तज्जनित अर्थतन्त्र के स्वरूप में प्रादेशिक एवं काल-क्रमिक विभिन्नता का अध्ययन करना

प्रादेशिक अर्थतन्त्र विलग एवं विशिष्ट होते हैं हुए भी एक वृहदतन्त्र से आबद्ध हैं। आर्थिक भूगोल को प्रादेशिक आर्थिक क्रिया एवं उसके भूवैन्यासिक संगठनात्मक परिणामों का अध्ययन करने वाला विषय माना जा सकता है।

अर्थतन्त्र तथा प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण में घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा परस्पर अनुक्रियात्मक प्रभाव पड़ता है।

अर्थतन्त्र की मूल विशेषतायें पर्यावरण प्रदत्त संसाधनों पर आधारित होती है जिसके परिणामस्वरूप अर्थशास्त्र में कार्यात्मक गहनता का दबाव पर्यावरण पर पड़ता है।

पर्यावरण पर पड़ रहे इस दबाव से पारिस्थितकी असन्तुलन की आशंका उत्पन्न हो जाती है। संसाधन एवं गुणात्मक जीवन स्तर का सम्यक् समीकरण स्थापित करना अपरिहार्य हो गया है। मक

विकास की दृष्टि से आर्थिक भूगोल को चार चरणों में बाँटा गया है।

आर्थिक भूगोल का सर्वप्रथम उद्भव वाणिज्य भूगोल के रूप में हुआ था।

Andree की 'विश्व व्यापार का भूगोल' नामक पुस्तक 1862 में प्रकाशित हुई। 1882 ई. में जर्मनी के गोत्स्ट ने सर्वप्रथम आर्थिक भूगोल की वाणिज्य भूगोल से भिन्न अर्थों में व्याख्या की।

गोत्स्ट के अनुसार आर्थिक भूगोल का मुख्य उद्देश्य विभिन्न भागों की प्रकृतिगत विशेषताओं का अध्ययन हो गया न कि मात्र व्यापारिक आँकड़ों का संग्रह।

गोत्स्ट के आर्थिक भूगोल का प्रभाव जर्मनी तक ही सीमित रहा।

श्री ब्रिटेन में चिसोम तथा अमेरिका में आइटबैंक, स्मिथ आदि ने वाणिज्य भूगोल को ही प्रश्रय दिया था। 

1952 ई. के बाद आर्थिक भूगोल के अध्ययन में तीव्र प्रगति हुई थी।

1925 ई. में ही हेटनर एवं कार्ल सावर ने भूगोल को क्षेत्रीय विषमता का अध्ययन करने वाला विषय बताया था।

सी. एफ. जोन्स के अनुसार आर्थिक भूगोल उत्पादक व्यवसायों का अध्ययन करता है।

1970 के दशक तक विकसित देशों में आर्थिक विकास की तीव्र प्रगति एवं विकासशील देशों में आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर होने की होड़ थी।

आर्थिक विकास की तीव्र प्रगति के परिणामस्वरूप विश्व के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ने लगा।

1980 के दशक से विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक-पारिस्थितकीय सन्दर्भों में आर्थिक कार्यों का विवेचन किया जाने लगा।

वर्तमान में आर्थिक भूगोल स्वभावतया, भूमण्डलीय प्रवृत्तियों के स्थानीय प्रभावों पर अधिक ध्यान देने लगा है।

रूसी भूगोलवेत्ता साउस्किन के अनुसार आर्थिक भूगोल का गहरा सम्बन्ध क्षेत्रीय-सामाजिक आर्थिक तन्त्र से है।

स्पेन्सर के अनुसार सम्पूर्ण पृथ्वी के संसाधन उपयोग हेतु प्रयुक्त प्रक्रियाओं को दो वर्गों में बाँटा गया है।

आर्थिक भूगोल की सर्वप्रधान आधारभूत संकल्पना आर्थिक भूदृश्य की है।

आर्थिक भूदृश्य की संकल्पना का उद्भव जर्मन शब्द 'Landschaft' से हुआ।

आर्थिक भूदृश्य में विशिष्ट क्षेत्र की सुस्पष्ट आर्थिक विशेषताओं की अभिव्यक्ति होती है।

किसी भी प्रदेश के अर्थतन्त्र के विविध पक्षों जैसे-कृषि, उद्योग, उत्खनन, व्यापार इत्यादि से सम्बन्धित विभिन्न तत्वों का समुच्चयिक स्वरूप आर्थिक भूदृश्य में उमड़ता है।

आर्थिक भूदृश्य में प्रादेशिक आर्थिक तन्त्र की समष्टि का निरूपण होता है।

आर्थिक भूदृश्य केवल कल्पना की वस्तु नहीं वरन् गोचर तत्व है।

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