बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
• माँग एक प्रभावशाली इच्छा है जिसमें निम्नलिखित तथ्य सम्मिलित होते हैं —
(i) वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा,
(ii) वस्तु को क्रय करने के लिए पर्याप्त साधन
(iii) वस्तु को खरीदने के लिए साधनों को व्यय करने की तत्परता
(iv) एक निश्चित समय
(v) एक निश्चित कीमत
• माँग का नियम वस्तु के कीमत और उस कीमत पर माँगी जाने वाली मात्रा के गुणात्मक सम्बन्धों को बताता है।
• माँग का नियम यह बताता है कि "अन्य बातें समान रहने पर" वस्तु की कीमत एवं वस्तु की मात्रा में विपरीत सम्बन्ध होता है।
• इस प्रकार अन्य बातें समान रहने की दशा में किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी माँग में कमी हो जाती है तथा इसके विपरीत कीमत में कमी होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। अर्थात्
P ∝ 1/Q
जहाँ P = कीमत, Q = वस्तु की माँग
माँग का नियम एक गुणात्मक कथन है, मात्रात्मक कथन नहीं, यह नियम केवल कीमत और माँग के परिवर्तन की दिशा को दर्शाता है, परिवर्तन की मात्रा को नहीं।
"अन्य बातें समान रहें" वाक्यांश का अर्थ है—
उपभोक्ताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
उपभोक्ताओं की रुचि, स्वाभाव, पसन्द आदि में कोई परिवर्तन नहीं होने चाहिए।
सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
किसी नवीन स्थानापन्न वस्तु का उपभोक्ता को ज्ञान नहीं होना चाहिए।
भविष्य में वस्तु की कीमत में परिवर्तन की सम्भावना नहीं होनी चाहिए।
रेखाचित्र में प्रदर्शित DD वक्र माँग वक्र है जो वस्तुओं की माँग तथा उसके मूल्य के बीच सम्बन्ध प्रदर्शित करता है।
DD वक्र बाएँ गिरता हुआ है। चित्र से स्पष्ट है कि जब मूल्य OP (20) है तो माँगी गयी मात्रा OQ (30) है, पर जब मूल्य घटकर OP₁ (15) हो जाता है तो माँग बढ़कर OQ₁ (40) हो जाती है।
माँग का नियम स्थली सीमांत उपयोगिता नियम पर आधारित है।
मार्शल के अनुसार उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि की स्थिति में वहाँ होगा, जहाँ
MUx / Px = MUm
अर्थात वस्तु की सीमांत उपयोगिता तथा उसके मूल्य का अनुपात मुद्रा की सीमांत उपयोगिता के बराबर हो।
वस्तु की कीमत एवं माँग के विपरीत सम्बन्ध के कारण प्रतिस्थापन प्रभाव है।
कीमत माँग — कीमत माँग से अभिप्राय वस्तु की उन मात्राओं से है, जो एक निश्चित समयावधि में निश्चित कीमतों पर उपभोक्ता द्वारा माँगी जाती है। कीमत एवं वस्तु के विपरीत सम्बन्ध होने के कारण कीमत माँग वक्र को ढाल ऋणात्मक होता है।
(चित्र में कीमत माँग वक्र, X-अक्ष पर वस्तु की माँग और Y-अक्ष पर कीमत को प्रदर्शित किया गया है।)
चित्र में DD वक्र बायें से दायें नीचे गिरता हुआ कीमत-माँग वक्र है, जो यह बताता है कि वस्तु कीमत एवं माँग में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है।
आय माँग — आय माँग का अर्थ वस्तुओं एवं सेवाओं की उन मात्राओं से लगाया जाता है जो अन्य बातों के समान रहने की दशा में उपभोक्ता ने गयी समयावधि में अपनी आय के विभिन्न स्तरों पर खरीदने की क्षमता रखता है।
आय माँग वक्र की ज्यामिति के अर्थशास्त्रियों एंजिल्स के नाम पर एंजिल वक्र भी कहा जाता है।
(चित्र में “आय माँग वक्र” को एक उत्तम वस्तु के लिए दर्शाया गया है — यह ऊपर की ओर चढ़ता हुआ होता है।)
श्रेष्ठ वस्तुओं के सम्बन्ध में आय माँग वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है अर्थात बायें से ऊपर चढ़ता हुआ होता है।
घटिया वस्तुओं के लिए आय माँग ऋणात्मक ढाल वाला होता है।
आड़ी अथवा तिरछी माँग में एक वस्तु की कीमत का उसके सापेक्ष सम्बंधित दूसरी वस्तु की माँग पर प्रभाव देखा जाता है। ये सम्बंधित वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं —
(i) स्थानापन्न,
(ii) पूरक वस्तुएँ
जब एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक ही समय पर एक से अधिक वस्तुओं की माँग एक साथ की जाती है, तब ऐसी माँग को संयुक्त माँग कहा जाता है।
जैसे— चूल्हा-भोजन, स्कूटर-पेट्रोल।
जब एक वस्तु की माँग से दूसरी वस्तु की माँग स्वतः उत्पन्न हो जाती है, तो इस प्रकार की माँग को व्युत्पन्न माँग कहते हैं।
जब एक वस्तु दो, या दो से अधिक उपयोगों में माँगी जाती है तब ऐसी वस्तु की माँग को सामूहिक माँग कहते हैं।
जब उपभोक्ता दो वस्तुओं में एक घटिया वस्तु हो तथा दूसरी श्रेष्ठ वस्तु हो तब निश्चित का विरोधाभास उत्पन्न होता है।
जब माँग में परिवर्तन केवल कीमत में परिवर्तन के कारण होता है, तब वह परिवर्तन एक ही माँग वक्र पर दर्शित होते हैं, इस प्रकार के परिवर्तन माँग का विस्तार एवं संकुचन दर्शाते हैं।
किसी वस्तु की कीमत में कमी के कारण उसकी माँग में वृद्धि को माँग का विस्तार कहते हैं।
वस्तु की कीमत वृद्धि के कारण माँग में कमी को माँग का संकुचन कहते हैं।
माँग का विस्तार एवं माँग का संकुचन सदैव एक ही माँग वक्र पर उपस्थिति होता है।
चित्र: माँग का विस्तार एवं संकुचन
चित्र में प्रारंभिक वस्तु कीमत PQ पर वस्तु की माँग OQ है। जब कीमत PQ से बढ़कर P₁Q₁ हो जाती है, तब वस्तु की माँग OQ से घटकर OQ₁ रह जाती है। Q से Q₁ की अवस्था माँग के संकुचन को प्रदर्शित कर रही है।
चित्र में— जब वस्तु की कीमत PQ से घटकर P₂Q₂ रह जाती है तब वस्तु की माँग OQ से बढ़कर OQ₂ हो जाती है। Q से Q₂ तक गमन माँग के विस्तार को सूचित करता है।
यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन न होने पर अन्य तत्वों के प्रभाव के कारण कीमत स्थिर रहते हुए भी माँग में परिवर्तन हो जाता है, तब माँग में वृद्धि अथवा कमी की दशा उत्पन्न होती है।
किसी वस्तु की पूर्ति से अभिप्राय उस मात्रा से होता है जो किसी निश्चित समय में निश्चित विशेष पर बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होती है।
जिस प्रकार माँग सदैव समय तथा कीमत से सम्बन्धित होती है, ठीक उसी प्रकार पूर्ति भी सदैव निश्चित समय तथा कीमत विशेष से सम्बन्धित होती है।
चित्र: पूर्ति वक्र (SS)
चित्र में पूर्ति वक्र को SS से प्रदर्शित किया गया है। यह वक्र ऊपर की ओर दायें चढ़ता हुआ है, जिसका अर्थ है कि पूर्ति की जाने वाली मात्रा तथा कीमत से सीधा सम्बन्ध होता है।
कीमत में वृद्धि होने पर पूर्ति की मात्रा भी बढ़ती है, इसके विपरीत कीमत के घटने पर पूर्ति की मात्रा भी घटती है।
चित्र में, जब वस्तु की कीमत PQ है तब वस्तु की पूर्ति OQ है। यदि वस्तु की कीमत बढ़कर P₁Q₁ हो जाती है तो पूर्ति बढ़कर OQ₁ हो जाती है। इसके विपरीत यदि वस्तु की कीमत घटकर P₂Q₂ हो जाती है तो पूर्ति घटकर OQ₂ हो जाती है।
पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तथा पूर्ति में कमी होने पर पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है।
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