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बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
महत्त्वपूर्ण तथ्य
दिवालिया घोषित किए जाने की विधि
आवेदन पत्र - ऋणी अथवा उसके लेनदारों में से कोई भी व्यक्ति कुछ शर्तों के अधीन न्यायालय में ऋणी को दिवालिया घोषित किए जाने के लिए आवेदन पत्र दे सकता है-
ऋणी द्वारा - एक ऋणी निम्नलिखित दशाओं में आवेदन पत्र दे सकता है-
(i) यदि उसे 500 रु० या इससे अधिक राशि दूसरों को देनी हो ।
(ii) वह ऋण का भुगतान न करने के कारण जेल में हो।
(iii) उसकी सम्पत्ति पर ऋण की वसूली के लिए डिक्री का आदेश दिया हो ।
ऋणदाता द्वारा - एक ऋणदाता निम्नलिखित दशाओं में ऋणी के विरुद्ध आवेदन पत्र दे सकता है-
(i) जबकि वह 500 रु० या इससे अधिक का लेनदार हो।
(ii) यह ऋण या तो तुरन्त या कुछ निश्चित अवधि के बाद देय हो।
(iii) ऋणी के द्वारा दिवालिया का कोई भी कार्य (Act of Insolvency) आवेदन पत्र देने की पहले की तीन महीने की अवधि में किया हो।
न्यायालय का दिवालिया होने का आदेश - आवेदन पत्र प्राप्त होने के बाद न्यायालय एक तिथि निश्चित करता है जिस पर आवेदन पत्र की सुनवाई की जाती है। यदि न्यायालय को विश्वास हो जाता है कि ऋणी को दिवालिया घोषित किया जाना चाहिए तो न्यायालय दिवालिया होने का आदेश निर्गमित करता है।
ऋणी की सम्पत्ति न्यायालय के अधिकार में - न्यायालय के उपरोक्त आदेश के अनुसार दिवालिया की सारी सम्पत्ति सरकार के हाथ में आती है। इसी आदेश के दिन न्यायालय द्वारा रिसीवर (Receiver) नियुक्त किया जाता है जिसका कार्य दिवालिया की सम्पत्ति बेचकर उसके लेनदारों को आवश्यकतानुसार भुगतान करना होता है।
स्थिति विवरण
जब किसी व्यक्ति का दिवाला निकल जाता है तो उसे अपनी आर्थिक स्थिति के आधार पर एक स्थिति विवरण तैयार करना होता है। इसमें सम्पत्तियाँ उस मूल्य पर दिखायी जाती हैं जो उनके बेचे जाने पर प्राप्त हो सकें, दायित्वों को कितना भुगतान करना है तथा कितनी राशि से उसका दिवाला निकला। दिवालिया अधिनियम के अनुसार 30 दिन के अन्दर दिवालिया घोषित किये गये व्यक्ति को इसे प्रस्तुत करना होता है।.
स्थिति विवरण को निम्न दो भागों में बाँटा जाता है-
(I) दायित्व पक्ष (Liabilities side)
(II) सम्पत्ति पक्ष ( Assets side)
न्यूनता खाता : लिस्ट 'H'
न्यूनता खाता यह स्पष्ट करने के उद्देश्य से बनाया जाता है कि प्रारम्भ से उस समय तक व्यापार में दायित्व का सम्पत्तियों से आधिक्य या न्यूनता (Deficiency) उत्पन्न होने के क्या कारण रहे हैं? किस प्रकार विभिन्न व्ययों व हानियों के कारण व्यापार की पूँजी व लाभ समाप्त हो गये और न्यूनता की स्थिति उत्पन्न हुई?
इस खाते को दो पक्षों में विभाजित करते हैं-बायें पक्ष में व्यापार की प्रारम्भिक पूँजी, व्यापारिक लाभ तथा अन्य लाभ प्रदर्शित होते हैं, दायें पक्ष में समस्त हानियाँ व आहरण आदि प्रदर्शित होते हैं। दायें पक्ष का योग बायें पक्ष से अधिक होता है इसका अन्तर न्यूनता कहलाता है। स्थिति विवरण में प्रदर्शित न्यूनता की राशि इतनी ही होती है।
पूर्वाधिकार लेनदार.
पूर्वाधिकार लेनदारों का विवरण दिवालिया पर नियन्त्रण करने के लिए बनाए गए प्रेसीडेन्सी टाउन्स दिवाला अधिनियम 1909 में तथा प्रान्तीय दिवाला अधिनियम, 1920 में दिया गया है। पूर्वाधिकार लेनदारों की गणना करने से पूर्व हमें यह देखना होगा कि दिवालिया कहाँ का रहने वाला है। यदि वह कोलकाता, मुम्बई या चेन्नई का रहने वाला है, तो प्रेसीडेन्सी टाउन्स दिवाला अधिनियम लागू होगा। यदि वह अन्य किसी स्थान पर रहने वाला है तो प्रान्तीय दिवाला अधिनियम लागू होगा। यदि प्रश्न में यह नहीं दिया है कि दिवालिया कहाँ का रहने वाला है तब भी प्रान्तीय दिवाला अधिनियम लागू होगा।
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