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बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 16 दिवालिया खाते
(Insolvency Accounts)
जब किसी व्यक्ति या फर्म के दायित्व उसकी सम्पत्तियों से अधिक हो जाते हैं तो उसकी आर्थिक स्थिति अत्यधिक खराब होने के कारण वह अपने दायित्वों का भुगतान करने में असमर्थ हो जाता है तो इस दशा में वह दिवालिया अधिनियम (Insolvency Act) का सहारा ले सकता है। अपने दायित्वों से मुक्ति पाने के लिए न्यायालय में प्रार्थना पत्र दे सकता है कि उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाए।
उक्त अधिनियम के अन्तर्गत ऋणी की सम्पत्तियों को उसके लेनदारों में यथा अनुपात में बाँट दिया जाता है और उसे समस्त दायित्वों से मुक्त घोषित कर दिया जाता है।
दिवालिया की परिभाषा ( Definition of Insolvent) - कोई भी व्यक्ति जो निम्नलिखित दोनों शर्तों को पूरा करता है, दिवालिया कहा जाता है-
(1) उसके दायित्वं उसकी सम्पत्तियों के मूल्यों से अधिक हों;
(2) अधिनियम द्वारा उसको दिवालिया घोषित किया गया हो।
उपरोक्त विवरण के आधार पर यदि एक व्यक्ति के दायित्व उसकी सम्पत्तियों से अधिक हैं, परन्तु उसे न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित नहीं किया गया है तो वह तब तक दिवालिया नहीं कहलाएगा जब तक कि उसे न्यायालय दिवालिया घोषित न कर दे।
दिवालिया अधिनियम
भारत में दिवालिया के लिए निम्नलिखित दो अधिनियम लागू होते हैं-
(1) प्रेसीडेन्सी टाऊन दिवाला अधिनियम, 1909 - यह अधिनियम कोलकाता, चेन्नई तथा मुम्बई तीन महानगरों में लागू होता है।
(2) प्रान्तीय दिवाला अधिनियम, 1920 - यह अधिनियम कोलकाता, चेन्नई तथा मुम्बई के शहरों को छोड़कर शेष भारत में लागू होता है।
यदि प्रश्न में यह नहीं दिया हुआ है कि दिवालिया कहाँ का रहने वाला है तो प्रान्तीय दिवाला अधिनियम लागू होगा।
अधिनियमों का क्षेत्र ( Scope of Acts) - ये अधिनियम व्यक्तिं, हिन्दू अविभाजित परिवार, फर्म एवं व्यक्तियों के अन्य समुदाय पर लागू होते हैं।
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