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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2732
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 14  शाखा खाते

(Branch Accounts)

प्रत्येक व्यापारिक संस्था अपने लाभों में वृद्धि करना चाहती है जिसके लिए वह देश-विदेश में अपनी शाखाएँ खोलती है। विभिन्न शाखाओं का प्रबन्ध एवं नियन्त्रण मूल कार्यालय द्वारा किया जाता है जिसे प्रधान कार्यालय (Head office) कहा जाता है। विभिन्न शहरों में खुली बाटा शू कम्पनी की दुकानें तथा विभिन्न बैंक कार्यालय शाखाओं के उदाहरण हैं।

शाखा खातों का उद्देश्य प्रत्येक शाखा का लाभ-हानि ज्ञात करना, शाखा के कार्यों पर पूर्ण नियन्त्रण करना, प्रत्येक शाखा के लिए माल तथा रोकड़ की व्याख्या करना तथा शाखा की कार्य क्षमता की वृद्धि करना होता है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शाखा व प्रधान कार्यालयके बीच होने वाले व्यवहारों का उचित लेखा रखना आवश्यक है।

शाखाओं के प्रकार

(I) देशी शाखा (Indigenous Branch) - देशी शाखाओं से आशय ऐसी शाखाओं से है जो अपने देश में ही शाखायें स्थापित की जाती हैं। ऐसी शाखायें दो प्रकार की होती हैं-

(1) आश्रित शाखाएँ - ऐसी शाखाएँ, जो पूर्ण लेख-पुस्कतें नहीं रखती वरन् उनके हिसाब-किताब प्रधान कार्यालय द्वारा रखे जाते हैं, आश्रित शाखाएँ या पूर्ण खाते न रखने वाली 103 शाखाएँ कहलाती है। प्रधान कार्यालय तथा आश्रित शाखा में एजेंसी की तरह सम्बन्ध होता है। चूँकि ऐसी शाखाएँ किसी प्रकार के खाते नहीं रखती हैं, इसलिए खातों को केवल प्रधान कार्यालय द्वारा रखा जाता है । अतः ये शाखा अवयस्क पुत्र ( Minor Son) की तरह होती हैं।

(2) स्वतन्त्र शाखाएँ या पूर्ण लेखा पुस्तकें रखने वाली शाखाएँ - व्यवसाय की कुछ शाखाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें अपना व्यवसाय स्वतन्त्रतापूर्वक करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है । इस प्रकार की शाखाएँ प्रधान कार्यालय द्वारा निर्मित नीतियों के आधार पर एक स्वतन्त्र इकाई की भाँति अपने व्यापार को चलाती हैं। ऐसी शाखाएँ प्रधान कार्यालय से तो माल प्राप्त करती हैं किन्तु साथ ही उन्हें बाजार से अपनी सुविधानुसार माल खरीदने व बेचने की भी पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। इनका सम्बन्ध प्रधान कार्यालय से केवल इतना ही रहता है कि इन पर प्रधान कार्यालय का स्वामित्व रहता है और शाखा का लाभ या हानि प्रधान कार्यालय का होता है।

(II) विदेशी शाखा (Foreign Branch) - यदि कोई व्यवसायी विदेश से व्यवसाय करने के लिए अपनी शाखा खोलता है तो इस शाखा को विदेशी शाखा कहते हैं। इन शाखाओं के सम्बन्ध में विशेष बात यह है कि ये शाखाएँ अपने लेखे विदेशी मुद्रा में रखती हैं क्योंकि उसके लेन-देन उस देश की मुद्रा में ही होते हैं। अतः शाखा द्वारा भेजा हुआ तलपट विदेशी मुद्रा में ही होता है। जब तक विदेशी शाखा के तलपट को देशी मुद्रा में न बदल दिया जाय तब तक उस शाखा व प्रधान कार्यालय का सम्मिलित चिट्ठा (Consolidated Balance Sheet) नहीं बनाया जा सकता है।

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