बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 12 किराया क्रय पद्धति
(Hire-Purchase System)
किराया क्रय पद्धति के अन्तर्गत सम्पत्ति का समस्त भुगतान नकद न करके किस्तों में किया जाता है। क्रेता और विक्रेता आपसी ठहराव द्वारा यह तय करते हैं कि प्रत्येक किस्त कितनी रकम की होगी और किस्तों का भुगतान कितने-कितने समय बाद होगा। ये किस्तें मासिक, त्रैमासिक, छमाही या वार्षिक हो सकती हैं। विक्रय का ठहराव होने पर क्रेता को माल सौंप दिया जाता है और उसे माल का प्रयोग करने का अधिकार मिल जाता है परन्तु जब तक वह सम्पूर्ण किस्तों का भुगतान नहीं कर देता तब तक माल का स्वामित्व (Ownership) विक्रेता के पास ही रहता है। यदि क्रेता किसी भी किस्त का भुगतान नहीं करता तो विक्रेता को माल वापिस लेने का अधिकार रहता है और उस समय तक के क्रेता द्वारा चुकाई गई सभी किस्तों का विक्रेता माल का किराया (Rent) मानकर जब्त कर लेता है। अतः इस पद्धति में क्रेता को किराया क्रय क्रेता (Hire Purchaser) और विक्रेता को किराया विक्रेता (Hire Vendor) कहा जाता है।
ब्याज की गणना
किराया -क्रय समझौते के अन्तर्गत किराया-क्रेता किराया-विक्रेता को किश्तों में भुगतान करता है। किराया - विक्रेता किश्तों में माल के मूल्य के साथ-साथ ब्याज की धनराशि भी वसूल करता है। यदि किराया क्रय अनुबन्ध करते समय किराया क्रेता कुछ धनराशि का भुगतान करता है, तो अगली किश्त की देय तिथि पर क्रय करने की तिथि पर बची हुई शेष धनराशि पर दी हुई दर से ब्याज की धनराशि निकाली जाती है और यदि किश्त की धनराशि में ब्याज सम्मिलित हैं तो किश्त की धनराशि में से इस प्रकार से निकाली गई ब्याज की धनराशि घटाकर किस्त की मूल राशि (Principal Value) ज्ञात कर ली जाती है और इस प्रकार प्रत्येक किश्त की देय तिथि पर उसके पिछली किश्त को देय तिथि पर बचे हुये शेष पर ब्याज की गणना करते हैं । अन्तिम किश्त देय होने पर इस विधि के अनुसार ब्याज की गणना नहीं करनी चाहिये अपितु किश्त की धनराशि में से सम्पत्ति के रोकड़ मूल्य की उस धनराशि को घटा देना चाहिये जो अन्तिम किश्त की देय तिथि तक भुगतान होने से बच गई है। इस प्रकार घंटाने के बाद प्राप्त शेष धनराशि को ही ब्याज की धनराशि मान ली जाती है।
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