बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
महत्त्वपूर्ण तथ्य
आर्थिक चिट्ठे की विशेषतायें
यह एक निश्चित तिथि को तैयार किया जाता है।
इसके बायें भाग को दायित्व और दायें भाग को सम्पत्ति कहते हैं।
वैसे तो आर्थिक चिट्ठा अन्तिम खाते का एक अंश है परन्तु फिर भी इसे खाता नहीं कहा जाता है क्योंकि यह कुछ खातों के शेष का विवरण होता है।
आर्थिक चिट्ठे में पूंजीगत शेष ही दिखाये जाते हैं।
इसमें ऋणी शेष सम्पत्ति की ओर तथा धनी शेष दायित्व की ओर लिखते हैं।
इसमें व्यक्तिगत और वास्तविक खातों के शेष लिखे जाते हैं।
आर्थिक चिट्टे में प्रावधानों का भी लेखा होता है।
यह व्यापार की सम्पत्ति की प्रकृति और मूल्य का बोध कराता है।
यह व्यापार के दायित्वों की प्रकृति और मात्रा का बोध कराता है।
यह इस बात का प्रतीक है कि व्यापारी आर्थिक दृष्टि से शोध क्षम्य (Solvent) है या अशोध्य क्षम्य (Insolvent) है।
आर्थिक चिट्ठे में सम्पत्ति एवं दायित्व के दोनों पक्षों के योग समान होते हैं।
इसमें 'To' और 'By' का प्रयोग नहीं होता है।
चिट्ठे का महत्व या चिट्टे को बनाने की आवश्यकता एवं उद्देश्य
आर्थिक चिट्ठा तैयार करने का प्रमुख उद्देश्य चिट्ठा बनाने की तिथि पर व्यापार की आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करना है।
चिट्ठे से व्यापारी को यह पता चल जाता है कि उसके पास कितनी रोकड़ शेष है तथा बैंक शेष कितना है।
चिट्ठे को देखने से यह भी पता चल जाता है कि व्यवसाय में व्यापारी की पूँजी की क्या स्थिति है। व्यवसायी द्वारा किये गये आहरण का ज्ञान भी इसके ही द्वारा होता है।
चिट्ठे की सहायता से व्यापारिक सम्पत्तियों का विस्तृत ज्ञान हो जाता है।
चिट्ठा बनाये जाने की तिथि पर अन्तिम रहतिये का ज्ञान भी चिट्ठे द्वारा सरलता से हो जाता है। चिट्ठे को देखकर यह भी आसानी से ज्ञात हो सकता है कि कितना धन देनदारों से लेना है और कितना धन लेनदारों को देना है।
सम्पत्तियों का वर्गीकरण
स्थायी सम्पत्तियाँ - ये वे सम्पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग व्यापार में निरन्तर होता रहता है। जिन सम्पत्तियों को स्थायी प्रयोग के लिये खरीदा जाता है न कि बेचने के लिये स्थायी सम्पत्ति कहलाती हैं। इसके मूल्य में प्रति वर्ष कमी आती रहती है। जैसे- भूमि व भवन, मशीनें, फर्नीचर तथा मोटर कारें इत्यादि ।
'अस्थायी सम्पत्तियां या चालू सम्पत्तियां - ये वे सम्पत्तियां होती हैं जो सामान्यतः वर्ष के भीतर ही शीघ्रता से रोकड़ में बदली जा सकती हैं। जैसे- कच्चा व तैयार माल, देनदार तथा अल्प समय के विनियोग इत्यादि ।
तरल सम्पत्तियाँ - तरल सम्पत्तियां वे सम्पत्तियां होती हैं जो रोकड़ हस्ते या रोकड़ बैंक के रूप में विमान हों अथवा जिनकी शीघ्रता से वसूली की जा सके। ऐसी सम्पत्तियों को सरलता से बेचा जा सकता है। जैसे-रोकड़ हाथ में, रोकड़ बैंक में, विनियोग तथा प्राप्य बिल आदि।
मूर्त सम्पत्तियाँ - जिन सम्पत्तियों का निश्चित आकार, रूप होता है तथा जो स्पर्श व दर्शनीय होती हैं उन्हें मूर्त सम्पत्तियाँ कहते हैं। जैसे-मशीनें, भूमि, भवन, फर्नीचर इत्यादि।
अमूर्त सम्पत्तियाँ - ये वे सम्पत्तियाँ हैं जिन्हें न तो देखा जा सकता है और न स्पर्श ही किया जा सकता है लेकिन फिर भी इनका मूल्य होता है। जैसे-पेटेन्ट, पट्टा, ट्रेड मार्क तथा ख्याति इत्यादि।
काल्पनिक सम्पत्तियाँ - इन्हें बनावटी या अवास्तविक सम्पत्तियाँ भी कहते हैं। जैसे-फर्म के व्यापारिक चिन्ह, कम्पनी की स्थापनार्थ किये गये प्रारम्भिक व्यय इत्यादि।
क्षयी सम्पत्तियाँ - ये वे सम्पत्तियाँ हैं जिनका मूल्य समय बीतने के साथ-साथ कम होता रहता है, जैसे- खानें, पट्टे की भूमि, कापीराइट इत्यादि।
दायित्वों का वर्गीकरण
स्थायी दायित्व - जिन देनदारियों का भुगतान काफी लम्बे समय के बाद किया जाता है अर्थात् जिनको सबसे बाद में भुगतान दिया जाता है उन्हें स्थायी दायित्व कहते हैं। जैसे- पूँजी, दीर्घकालीन ऋण इत्यादि।
अस्थायी या चालू दायित्व - जिन देनदारियों का भुगतान शीघ्र किया जाता है उन्हें अस्थायी या चालू दायित्व कहते हैं। जैसे-लेनदार, देय - विपत्र, बैंक अधिविकर्ष इत्यादि।
सम्भाव्य दायित्व - जिन देनदारियों का भुगतान किसी आकस्मिक घटना के घटित होने या न होने पर निर्भर करता है उन्हें सम्भाव्य या आकस्मिक दायित्व कहते हैं। सम्भाव्य दायित्वों को चिट्ठे में नोट के रुप में अलग से दर्शाया जाता है। सम्भावना दायित्व की रकम को आर्थिक चिट्ठे के योग में सम्मिलित नहीं किया जाता है।
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