बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 9 अन्तिम खाते
(Final Accounts)
आर्थिक चिट्ठा को तुलना-पत्र या स्थिति विवरण भी कहते हैं। एक निश्चित तिथि को व्यापार की आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिये जो विवरण- पत्र बनाया जाता है उसे आर्थिक चिट्ठा कहते हैं। आर्थिक चिट्ठा वर्ष के अन्त में तैयार किया जाता है। आर्थिक चिट्ठे के दो पक्ष होते हैं। बायीं ओर का पक्ष 'दायित्व' (Liabilities) तथा दायीं ओर का पक्ष 'सम्पत्ति' (Assets) कहलाता है । सम्पत्ति पक्ष की ओर व्यापार की सम्पत्ति जैसे रोकड़ हस्ते, रोकड़ बैंक में, देनदार, मशीन इत्यादि का लेखा लिया जाता है। दायित्व पक्ष की ओर लेनदार, देय विपत्र और पूंजी इत्यादि का लेखा किया जाता है।
समायोजनायें तथा उनका जर्नल और अन्तिम खातों में लेखा करना
(1) अन्तिम रहतिया ( Closing Stock) - वर्ष के अन्त में जो माल बिकने से बच जाता है उसे रहतिया कहते हैं । अन्तिम रहतिये का मूल्यांकन उसके क्रय मूल्य पर या बाजार मूल्य पर जो भी दोनों में कम होता है उस पर किया जाता है । अन्तिम रहतिये को व्यापार खाते के क्रेडिट पक्ष की ओर लिखकर आर्थिक चिट्ठे में सम्पत्ति (Assets) पक्ष की ओर दर्शाते हैं।
(2) अदत्त व्यय (Outstanding Expenses) - ये वे खर्चे होते हैं जिनका समय हो गया है परन्तु अन्तिम खाते बनाये जाने तक चुकाये नहीं गये हैं अर्थात् देने बाकी हैं। अदत्त व्यय को व्यापार खाते या लाभ-हानि खाते के डेबिट पक्ष में सम्बन्धित व्यय में जोड़ देते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष की ओर अदत्त व्यय को लिखते हैं।
(3) पूर्वदत्त व्यय ( Prepaid Expenses ) - ये वे खर्चे होते हैं जिनका भुगतान करने का समय नहीं हुआ है परन्तु पहले ही चुका दिये जाते हैं। अर्थात् वे खर्चे जिनका भुगतान सम्पूर्ण वर्ष के लिये वर्ष में एक ही बार किया जाता है। पूर्वदत्त व्यय को व्यापार खाते या लाभ-हानि खाते के ऋणी पक्ष में सम्बन्धित व्यय में से घटा देते हैं और आर्थिक चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष की ओर पूर्वदत्त व्यय को लिखते हैं।
(4) उपार्जित आय (Accrued Income) - यह वह आय होती है जिसका समय हो गया है परन्तु मिली नहीं है अर्थात् मिलनी बाकी है। उपार्जित आय को लाभ-हानि खाते के क्रेडिट पक्ष की ओर सम्बन्धित आय में जोड़ देते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष में उपार्जित आय को लिखते हैं।
(5) अनुपार्जित आय (Unearned Income) - अनुपार्जित आय वह आय है जो समय से पूर्व मिल गयी है या पेशगी मिल गयी है जिसका अभी समय नहीं हुआ है। अनुपार्जित आय को लाभ-हानि खाते में क्रेडिट पक्ष की ओर सम्बन्धित आय में से घटा देते हैं और आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष में अनुपार्जित आय लिखते हैं।
(6) ह्रास (Depreciation) - व्यापार में कुछ स्थायी सम्पत्तियाँ ऐसी होती हैं जिनका प्रयोग व्यापार में कई वर्षों तक होता रहता है और इस प्रयोग से उनके मूल्य में प्रति वर्ष कुछ कमी होती रहती है। मूल्य की इस कमी को ह्रास या घिसावट कहते हैं। सम्बन्धित सम्पत्ति पर ह्रास निकालकर लाभ-हानि खाते में ऋणी पक्ष की ओर ह्रास लिखते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष की ओर सम्बन्धित सम्पत्ति में से ह्रास को घटा देते हैं।
(7) पूंजी पर ब्याज (Interest on Capital) - व्यापार में जो पूँजी लगाई जाती है उस पर ब्याज दिया जाता है यह यह ब्याज व्यापार के लिये हानि है । पूँजी, ऋण और बैंक अधिविकर्ष पर ब्याज निकाल कर लाभ-हानि खाते के डेबिट पक्ष में लिखते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में दायित्व की ओर पूँजी का ब्याज पूँजी में, ऋण का ब्याज ऋण में और बैंक अधिविकर्ष का ब्याज बैंक अधिविकर्ष में जोड़ देते हैं।
(8) आहरण पर ब्याज (Interest on Drawings) - एक व्यापारी अपने निजी प्रयोग के लिये कुछ रुपया व्यापार से निकालता है जिसे आहरण या निजी व्यय कहते हैं। आहरण का ब्याज आहरण पर निकालकर लाभ-हानि खाते के क्रेडिट पक्ष में लिख दिया जाता है तथा आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष में आहरण में आहरण का ब्याज जोड़ कर कुल आहरण को पूँजी में से घटा देते हैं।
(9) अशोध्य ऋण (Bad Debts) - उधार माल की बिक्री की सम्पूर्ण रकम या आंशिक रकम देनदार के दिवालिया हो जाने पर या उसकी मृत्यु हो जाने पर या उसकी नियत खराब हो जाने पर वसूल नहीं हो पाती है। अतः देनदारों द्वारा मारी जाने वाली रकम या उनसे वसूल न होने वाली रकम को डूबन्त ऋण या अप्राप्य या अशोध्य ऋण कहते हैं। अप्राप्य या अशोध्य ऋण को लाभ-हानि खाते के डेबिट पक्ष में लिखकर आर्थिक चिट्ठे में इसे कुल देनदारों में से घटा दिया जाता है।
(10) अशोध्य या संदिग्ध ऋणार्थ संचिति (Reserve for Bad & Doutful Debts or R. F.B.D. New) - प्रतिवर्ष व्यापारी का कुछ न कुछ धन मारा जाता है या डूब जाता है। एक कुशल व्यापारी अपने पिछले वर्षों के अनुभव के आधार पर कुछ प्रतिशत इस डूबन्त ऋण के लिये अथवा जिस रकम के मिलने में सन्देह होता है उस संदिग्ध ऋण के लिये संचिति का निर्माण करता है। कुल देनदारों पर नई संदिग्ध ऋण संचिति निकालकर लाभ-हानि खाते के ऋणी पक्ष में अप्राप्य ऋण में जोड़कर पुरानी संदिग्ध ऋण संचिति को घटा देते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष में कुल देनदारों में से नई संदिग्ध ऋण संचिति घटा देते हैं।
( 11 ) देनदारों पर छूट की संचिति (Reserve for Discount on Debtors or R.F.D.) – जिन देनदारों से समय से पूर्व रुपया मिल जाता है उन्हें कुछ छूट दी जाती है। एक कुशल व्यापारी इसे दी जाने वाली छूट के लिये प्रति वर्ष एक निश्चित दर से एक संचिति का निर्माण करता है । देनदारों की कुल रकम में से अशोध्य ऋणार्थ संचिति (नई) की रकम घटाकर अर्थात् शुद्ध देनदारों पर छूट की संचिति एक निश्चित दर से निकालकर उसे लाभ-हानि खाते के ऋणी (डेबिट) पक्ष में लिख देते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष में शुद्ध देनदारों में से छूट की संचिति घटा देते हैं।
(12) लेनदारों पर छूट की संचिति (Reserve for Discount on Creditors or R.F.D.C.) - व्यापार में प्रति वर्ष समय से पूर्व भुगतान करने पर कुछ छूट लेनदारों से प्राप्त होती है। अतः एक कुशल व्यापारी इस मिलने वाली छूट का अनुमान लगाकर एक संचिति की व्यवस्था करता है। लेनदारों पर छूट की संचिति को लेनदारों पर निकालकर लाभ-हानि खाते के क्रेडिट या धनी पक्ष में लिखते हैं और आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष में लेनदारों में से इस छूट की संचिति को घटा देते हैं।
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