बी ए - एम ए >> बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 12
इंद्रियों से संबंधित प्राथमिक चिकित्सा.
(First Aid Related With Sense Organs)
सेंस आर्गन्स अर्थात ज्ञानेंद्रियों का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व है। इन ज्ञानेंद्रियों में से किसी के अभाव में या किसी में विकृति आ जाने के परिणामस्वरूप हमारा पूरा जीवन प्रभावित हो जाता है और एक व्यक्ति के रूप में हम सम्पूर्ण नहीं रह जाते। हमारे शरीर का प्रत्येक भाग ज्ञानेंद्रियों का कुछ न कुछ कार्य अवश्य करता है। मानव शरीर में पायी जाने वाली पाँच ज्ञानेंद्रियाँ मुख्य हैं-
(1) आंखे
(2) कान
(3) नाक
(4) जीभ तथा
(5) त्वचा
इनमें से प्रत्येक के अपने-अपने कार्य हैं और ये सभी एक-दूसरे के पूरक हैं।
आंखे हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन्हीं के सहारे हम दुनिया की हर वस्तु को देख पाते हैं। आँखे हमारी खोपड़ी में Orbital Cavity में स्थित होती हैं। हड्डियों का यह ढांचा आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है। आंखे कैमरे के समान कार्य करती हैं और निम्न भागों में विभाजित होती हैं-
(1) श्वेत पटल या कार्निया
(2) उपतारा या आइरिस
(3) पुतली
(4) लेंस
(5) नेत्रोद या ऐक्वस हयूमर
(6) नेत्र पटल या रेटिना
(7) नेत्र का चाभ द्रव या Vitreous Humour
(8) नेत्र श्लेष्मा तथा
(8) अश्रु प्रवाही ग्रंथि।
आंखों में कार्निया तथा लेंस के बीच के दोनों कक्षों में सिलियरी बाडी द्वारा स्रावित एक साफ तरल भरा रहता है जिसे नेत्रोद कहा जाता है। इसकी निरन्तर सफाई होती रहती है। यदि किसी रुकावट की वजह से यह सफाई बंद हो जाये तो यह तरल बढ़ता जाता है जिसके कारण 'मोतियाबिंद' नामक रोग हो जाता है और आँखों से दिखायी देना बंद हो जाता है।
मानव की दूसरी मुख्य ज्ञानेंद्रिय कान है जिसके कारण हमें कोई ध्वनि सुनाई देता है। कानों का मुख्य कार्य सुनना तथा शरीर का संतुलन बनाये रखना है। कान के आन्तरिक भाग में पायी जाने वाली अर्ध-वृत्ताकार नलिकाओं द्वारा सुनने का कार्य नहीं किया जाता बल्कि जब शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है तो इन नलिकाओं में स्थित पेरीलिम्फ तथा इण्डोलिम्फ तरलों में गति होती है जो - आवेग को वेस्टबुलर द्वारा मस्तिष्क को भेज देती है जिससे प्रतिवर्ती क्रिया द्वारा तुरन्त शरीर का संतुलन कायम हो जाता है।
नाक मानव में पाया जाने वाला तीसरी ज्ञानेंद्रिय है जिसका कार्य श्वसन क्रिया में सहायता करने के साथ-साथ वस्तुओं की गंध का भी पता लगाना है।
नाक की गुहा में ऊपर की अन्तः त्वचा के नीचे आलफेक्टरी नर्व के छोर फैले रहते हैं। सभी गन्ध युक्त वस्तुओं से अत्यंत सूक्ष्म रासायनिक कण निकलते हैं जो आस-पास के वातावरण में फैले होते हैं। जब हम सांस लेते हैं गंधयुक्त वायु हमारी नाक में पहुँचती है जिससे वहाँ पाये जाने वाले स्नायुओं के क्षोर उद्वीप्त हो जाते हैं और इससे उत्पन्न प्रेरणा को मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है और हम उस गंध का अनुभव करते हैं।
जिह्वा मानव शरीर में पायी जाने वाली चौथी ज्ञानेंद्रिय है जिसका कार्य है- स्वाद की पहचान करना। जीभ पर बहुत से सूक्ष्म अंकुरक पाये जाते हैं, जिनके भीतरी भाग में स्वाद की पहचान करने वाले स्नायु तंतुओं के छोर रहते हैं। जीभ की नोक या अग्रभाग पर मीठेपन का पता लगाने वाले अंकुरक या कलिकायें पायी जाती हैं। जबकि मध्य भाग पर नमकीन का तथा पिछले भाग पर कडुवे स्वाद का पता लगाने वाले स्वाद अंकुरक या कलिकायें पायी जाती हैं।
त्वचा मानव शरीर का बाह्य आवरण एवं पाँचवीं ज्ञानेंद्रिय है जो दो परतों से मिलकर बनी होती है -
(1) बाहय त्वचा तथा
(2) अन्तः त्वचा
त्वचा हमारे शरीर को बाहरी वातावरण के दुष्प्रभावों से बचाने के साथ-साथ ठंडी, गर्मी आदि का बोध भी कराती है।
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