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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2730
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य - सरल प्रश्नोत्तर


महत्वपूर्ण तथ्य

यौन शिक्षा एक व्यापकं अवधारणा है जो मानव यौन शरीर संरचना, लैंगिक क्रिया, मानव यौन गतिविधि, प्रजनन स्वास्थ्य, प्रजनन अधिकार, यौन संयम तथा गर्भनिरोध से संबंधित विषयों की जानकारी देने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।

महिलाओं के यौन स्वास्थ्य, पुरूषों के यौन स्वास्थ्य, यौन क्रिया तथा लैंगिकता की शिक्षा, सामाजिक सेक्स एजुकेशन तथा सेक्स शिक्षा में परिवार की भूमिका जैसे विषयों को अपने में समाहित करती है।

यौन शिक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सेक्स के बारे में व्यक्ति में अच्छे मूल्यों तथा विश्वास को प्रोत्साहित करती है ताकि बच्चे को यौन व्यवहार के संबंध में किसी प्रकार की गलतफहमी न रहे।

नर जनन तंत्र के मुख्य अंगों में वृषण, अधिवृषण, शुक्रवाहियाँ, शुक्राशय, मूत्रमार्ग, शिश्न तथा कुछ सहायक ग्रंथियाँ मुख्य हैं।

पुरूषों में एक जोड़ी वृषण पाये जाते हैं जो उदरगुहा से बाहर वृषण कोष में सुरक्षित रहते हैं।

मानव वृषण कोश एक थैलीनुमा संरचना होता है जिसका तापमान शरीर के तापमान से 2-3°C कम रहता है जो शुक्राणु निर्माण में सहायक होता है क्योंकि अधिक तापमान के कारण उदरगुहा में शुक्राणुओं का निर्माण व परिपक्वन नहीं हो सकता है।

शुक्राणुओं का निर्माण वृषण की जननिक उपकला में शुक्राणु जनन क्रिया के परिणामस्वरूप होता है।

वृषण से ही नर हार्मोन 'टेस्टोस्टेरान' का स्रावण होता है।

अधिवृषण ग्रंथि में शुक्राणु परिपक्व होते हैं और उनमें गति उत्पन्न होती है।

शुक्र वाहिनियों के जरिये शुक्राणु उदर गुहा में स्थित शुक्राशय में पहुँचते हैं।

शुक्राशय एक थैलीनुमा संरचना होती है जिससे एक हल्का पीला एवं क्षारीय पोषक तरल पदार्थ का स्त्रावण होता है। इसी में शुक्राणु तैरते रहते हैं और इसके साथ मिलकर 'वीर्य' नामक पदार्थ का निर्माण करते हैं।

शुक्राणुओं को गति के लिए ऊर्जा माइट्रोकाण्ड्रिया से प्राप्त होती है।

अण्डाशय, अण्डवाहिनियाँ, गर्भाशय, यौन, बाह्य जननांग तथा कुछ सहायक ग्रंथियाँ मिलकर मादा जनन तंत्र का निर्माण करती हैं।

अण्डाणुओं (Ovum) का निर्माण मादा के अण्डाशय में होता है।

मादा सेक्स हार्मोन प्रोजेस्टेरान तथा एस्ट्रोजेन का निर्माण भी अण्डाशय में होता है।

गर्भाशय का आकार उल्टे नाशपाती के समान होता है और इसका अंतिम भाग योनि कहलाता है। भ्रूण का परिवर्धन तथा विकास गर्भाशय में होता है।

महिला में मासिक चक्र की तीन अवस्थायें होती हैं-

(1) क्रम प्रसारी अवस्था
(2) स्रावित अवस्था तथा
(3) मासिक अवस्था।

महिला में मासिक स्राव की अवस्था पांच दिन चलती है।

महिला मासिक अवस्था FSH, LH, एस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्टेरान द्वारा नियंत्रित होती है।

महिला मासिक चक्र गर्भावस्था तथा दुग्ध स्रावण की दशा में नहीं होता।

नर एवं मादा युग्मकों का संयोजन निषेचन कहलाता है, जिसके परिणामस्वरूप द्विगुणित जायगोट का निर्माण होता है।

नर शुक्राओं के मादा शरीर में पहुँचाने की क्रिया को मैथुन कहा जाता है। इस क्रिया के पश्चात नर शुक्राणु मादा की योनि में प्रवेश कर जाते हैं जो अन्ततः अण्डवाहिनी में प्रवेश करते हैं जहाँ पर निषेचन की क्रिया सम्पन्न होती है।

निषेचन के एक सप्ताह बाद निषेचित अण्ड या जायगोट गर्भाशय में स्थापित हो जाता है। यही प्रक्रिया गर्भाधान (Implantation) कहलाती है।

मानव में भ्रूण के विकास में 9 माह का समय लगता है।

परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या को सीमित करने की क्रिया जन्म नियंत्रण ( Birth Control) कहलाती है।

भारत में समलैंगिकों के संबंध में यौन शिक्षा का प्रारम्भ अभी तक नहीं हो पाया है यद्यपि समलैंगिकता को सांविधानिक मान्यता प्राप्त हो चुकी है।

यौन संचारी रोग शरीर के स्राव के माध्यम से मैथुन के समय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रेषित होते हैं।

एड्स, सिफलिस तथा गोनोरिया या सूजाक मुख्य संचारी रोग हैं।

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